सीरिया पर बमबारी कर क्या हासिल करना चाहता है अमेरिका ?
अमेरिका ने सीरियाई सरकार पर रासासनिक हथियार रखने का आरोप लगाते हुए आज हमला कर दिया. सात अप्रैल को सीरियाई के विद्रोही इलाके ड्यूमा में रासायनिक हथियार के इस्तेमाल से 70 लोगों की जान चली गयी थी. अमेरिका ने इस रासायनिक हमले का आरोप सीरिया के बशर – अल – असद पर लगाया. ट्रंप ने […]
अमेरिका ने सीरियाई सरकार पर रासासनिक हथियार रखने का आरोप लगाते हुए आज हमला कर दिया. सात अप्रैल को सीरियाई के विद्रोही इलाके ड्यूमा में रासायनिक हथियार के इस्तेमाल से 70 लोगों की जान चली गयी थी. अमेरिका ने इस रासायनिक हमले का आरोप सीरिया के बशर – अल – असद पर लगाया. ट्रंप ने बशर अल – असद को ‘जानवर’ कहकर तल्खी बढ़ा दी. अमेरिका के इस हमले में फ्रांस और ब्रिटेन का साथ मिल रहा है.
क्या बम गिराकर शांति लायी जा सकती है
वहीं दुनियाभर के विशेषज्ञ अमेरिका के इस गतिविधी को शक के नजरिये से देख रहे हैं. विशेषज्ञों की मुताबिक बम गिराकर शांति लाने के प्रयास अमेरिका पहले भी कर चुका है, लेकिन उनका रिकार्ड इस मामले में बेहद खराब है. बता दें कि इराक में जार्ज बुश ने सद्दाम हुसैन पर रासायनिक हथियार रखने का आरोप लगाकार हमला बोला था. लेकिन बाद में अमेरिका रासायनिक और जैविक हथियार दिखा पाने में अक्षम रहा. उलटे इस फैसले से इराक में इस्लामिक स्टेट मजबूत हुआ.
कहां – कहां फेल हुई यूएस की रणनीति
अमेरिकी अतिक्रमण से अब तक इराक में सद्दाम हुसैन और लीबीया के शासक गद्दाफी को सत्ता से हटाया है. दोनों देशों पर मामला शांत होने की बजाय लोगों की तकलीफें बढ़ने लगी. अमेरिका के इस हमले को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया आ रही है. कहा जा रहा है कि अमेरिका इस हमले से रूस को भी साधने की कोशिश कर रहा है. जानकारों के मुताबिक ट्रंप यह साबित करने की कोशिश में लगे हैं कि वह अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा से अलग है. साल 2013 में रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल का असद पर आरोप लगने के बाद भी सीरिया में हस्तक्षेप न करने के अमरीका के फैसले से सऊदी अरब के नेता भी नाराज थे.
सीरिया में अब तक मारे जा चुके हैं पांच लाख
सात सालों में लगातार गृहयुद्ध को लेकर पांच लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. सुन्नी बहुल सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद शिया हैं. इसी संघर्ष में शिया बनाम सुन्नी की भी स्थिति पैदा हुई. सीरिया पूरी दुनिया का अखाड़ा बन चुका है. सिंतबर 2015 से रूस ने बशर – अल – असद को समर्थन देने का ऐलान किया. रूस के समर्थन के साथ ही यह संघर्ष और जटिल हो गया. रूस के दखल के बाद बीते 18 महीनों में असद सरकार ने विद्रोहियों के कब्जे वाले इलाके को फिर से हासिल कर लिया.