#DifferentlyAbled: बिना टांगों के कैसे ड्यूटी करते हैं ये थानेदार?

<p>शाम का समय. चंडीगढ़ के सेक्टर 36 का थाना. अचानक फोन की घंटी बजती है. थाने में सुडौल जिस्म वाला थानेदार फोन उठाकर बोलता है – &quot;हैलो, इंस्पेक्टर राम दयाल स्पीकिंग, हाउ कैन आई हेल्प यू&quot;</p><p>राम दयाल भारतीय पुलिस के उन अधिकारियों में शामिल हैं जिनकी बिना टांगों के अपने कर्तव्यों का निर्वाहन पूरी मुस्तैदी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 6, 2018 7:03 AM

<p>शाम का समय. चंडीगढ़ के सेक्टर 36 का थाना. अचानक फोन की घंटी बजती है. थाने में सुडौल जिस्म वाला थानेदार फोन उठाकर बोलता है – &quot;हैलो, इंस्पेक्टर राम दयाल स्पीकिंग, हाउ कैन आई हेल्प यू&quot;</p><p>राम दयाल भारतीय पुलिस के उन अधिकारियों में शामिल हैं जिनकी बिना टांगों के अपने कर्तव्यों का निर्वाहन पूरी मुस्तैदी से कर रहे हैं. </p><p>चंडीगढ़ में थानेदार के रूप में काम कर चुके राम दयाल इससे पहले शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों को पकड़ने के लिए अभियान चलाने समेत कई ऑपरेशंस को अंजाम दे चुके हैं. </p><p>आजकल वह चंडीगढ़ पुलिस के जनसंपर्क अधिकारी हैं.</p><p>बीबीसी पंजाबी सेवा से बात करते हुए राम दयाल कहते हैं, &quot;मेरा पुश्तैनी गांव हुकड़ां होशियारपुर ज़िले में है.&quot;</p><p>&quot;मैंने अपना बचपन गरीबी में बिताया है. इसकी वजह से मैं अपने बड़े भाइयों के साथ अनाज मंडी में मजूदरी करने लगा.&quot;</p><p>राम दयाल बताते हैं कि गरीबी और ग्रामीण जीवन की दुश्वारियों से संघर्ष करते हुए वह कॉलेज में पहुंचकर अच्छे-खासे एथलीट बन गए और पढ़ाई और खेलों में उपलब्धियों की बदौलत ही वह चंडीगढ़ पुलिस में असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर के पद पर भर्ती हो गए. </p><h1>शांति सेना ने पहुंचाया कोसोवो </h1><p>राम दयाल जी इसके बाद सयुंक्त राष्ट्र की ओर शांति सेना में शामिल होकर कोसोवो में डेप्यूटेशन पर गए. </p><p>इसी दौरान वह छुट्टियों में घूमने के लिए जर्मनी गए और वहां पर वह एक रेल हादसे का शिकार हो गए. </p><p>वह बताते हैं, &quot;मैं प्लेटफॉर्म पर गाड़ी का इंतजार कर रहा था तभी एक गाड़ी की चपेट में आ गया.&quot;</p><p>यह बताते-बताते राम दयाल अजीब से दर्द की गहराई में डूब जाते हैं और फिर संभल कर आगे बोलते हैं. </p><p>&quot;मुझे नहीं पता कि मेरे साथ क्या हुआ, मैं कई हफ़्ते कोमा में रहा. जब होश आया तो अपने पांव पर खड़ा होने लायक नहीं था. मेरे दोनों पांव काटे जा चुके थे. एक आंख भी खराब हो गई थी. और सिर में कई ऑपरेशन किए गए थे.&quot;</p><p>इतना कहते हुए वह एक गहरी सांस लेते हैं और कमरे में एक बार चुप्पी पसर जाती है. </p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-41265175">पैसे मिलें तो क्या विकलांग से शादी करेंगे?</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-43287942">ख़ामोश हुई विकलांगों को हक दिलाने वाली आवाज़</a></p><h1>दूसरों के लिए शुरू किया ज़िंदगी जीना</h1><p>राम दयाल खुद ही चुप्पी तोड़ते हुए कहते हैं, &quot;यह मेरी ज़िंदगी के सबसे मुश्किल दिन थे. ज़िंदगी से मौत बेहतर लगने लगी थी. बिस्तर पर पड़े-पड़े और व्हील चेयर में बैठे हुए ज़िंदगी धीरे-धीरे ख़त्म हो रही थी.&quot;</p><p>&quot;मेरे भाइयों और परिवार ने मुझे जीने का मकसद दिया, मुझे समझ में आया कि अगर मुझे अपने दुख से उबरना है तो दूसरों के लिए जीना सीखना होगा.&quot;</p><p>राम दयाल ने अपने तीनों भाइयों के साथ मिलकर पैसे इकट्ठे किए और गांव के बच्चों की सेवा का काम शुरू किया. </p><p>ऐसे बच्चों जिनके पास पढ़ने लिखने की सुविधा नहीं थी, उनको किताबें और कॉपियां, यूनिफॉर्म बांटी गईं. </p><p>इसके साथ ही जवाहर नवोदय विद्यालय में दाखिला करवाने के लिए कोचिंग दी गई. </p><p>इस वक्त उनका यह मिशन छह ज़िलों में चल रहा है. </p><p>राम दयाल कहते हैं, &quot;मैं पढ़ा-लिखा था और मेरे पास रोज़गार था, इसी वजह से मैं निराशा से निकल पाया. उन लोगों के बारे में सोचिए जो खेतों में काम करते हुए विकलांग हो जाते हैं, उनकी ज़िंदगी कितनी बदतर हो जाती है.&quot;</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-42292273">‘मैं विकलांग हूँ पर सेक्स मेरी भी ज़रूरत है’</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-41149004">‘तुम विकलांग हो, तुम्हारे बलात्कार से क्या मिलेगा?’</a></p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/BBCnewsHindi/">फ़ेसबुक</a><strong> और </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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