षड्यंत्र के छह यंत्र

विभिन्न कार्यो की सिद्धि के लिए निर्मित किये जानेवाले यंत्र हमेशा ठोस मशीनी शक्ल में हों, यह जरूरी नहीं. हम पहले ही बता चुके हैं कि यंत्र उसे कहते हैं जो नियंत्रण में करने, दमन करने, रोकने, बांधने, कसने, बाध्य करने आदि के काम आये. यंत्र में महत्वपूर्ण यह है कि वह काम क्या करता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 18, 2014 12:25 PM

विभिन्न कार्यो की सिद्धि के लिए निर्मित किये जानेवाले यंत्र हमेशा ठोस मशीनी शक्ल में हों, यह जरूरी नहीं. हम पहले ही बता चुके हैं कि यंत्र उसे कहते हैं जो नियंत्रण में करने, दमन करने, रोकने, बांधने, कसने, बाध्य करने आदि के काम आये. यंत्र में महत्वपूर्ण यह है कि वह काम क्या करता है, न कि उसका स्वरूप. यंत्र का तंत्र से गहरा संबंध रहा है.

तंत्र साधना के लिए यंत्र बनाये जाते थे. इन्हें यंत्र इसलिए कहा जाता था क्योंकि ये काम, क्रोध आदि दोषों से उपजनेवाली बुराइयों पर ‘नियंत्रण’ के काम आते थे. ये यंत्र रहस्यमयी चित्र होते थे जो विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों से बने होते. ये आकृतियां अलग-अलग प्राकृतिक तत्वों और शक्तियों का प्रतीक होती थीं. एक तरह से यंत्र तांत्रिक चिह्न् होते थे. इन चिह्नें के जरिये किसी विचार या दर्शन को मस्तिष्क से ‘बांधा’ जाता था.

लेकिन, समय के साथ तंत्र ने जादू-टोने का रूप ले लिया. इसका प्रयोग खुद को जीतने की जगह, शत्रु पर विजय के लिए होने लगा. जादू-टोने में शत्रु पर काबू पाने के लिए षट्कर्म बताये गये हैं- शांति, वशीकरण, स्तम्भन, विद्वेष, उच्चाटन तथा मारण. इन छह कर्मो को पूरा करने के लिए छह विधियां या यंत्र हैं जिन्हें षड्यंत्र कहा जाता है. हम सभी जानते हैं कि षड् का अर्थ छह की संख्या है. जिस कर्म से रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि शांति होते हैं, उसको शांति कर्म कहा जाता है. जिससे किसी को वश में किया जाये, उसको वशीकरण कहते हैं. जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाये यानी उन्हें जड़ या निश्चेष्ट कर दिया जाये, उसको स्तम्भन कहते हैं. दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला कर्म विद्वेष है. जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाये, उसे जड़ से उखाड़ दिया जाये, उसे उच्चाटन कहते हैं. और, जिस कर्म से प्राण हरण किया जाये, उसको मारण कर्म कहते हैं.

इस तरह देखें, तो षड्यंत्र में वो सभी तरीके शामिल हैं जिससे शत्रु पर विजय पायी जा सकती है. इनमें उसे शांत करने से लेकर खत्म कर देने तक के तरीके शामिल हैं. समय के साथ षड्यंत्र ने साजिश का अर्थ ले लिया. प्राचीन तंत्र में षड्यंत्र की कोई जगह नहीं थी. इसका सबूत यह है कि संस्कृत शब्दकोशों में यह शब्द नहीं मिलता. बौद्ध धर्म अपने पतनकाल में तंत्र-मंत्र के जाल में फंस गया था. माना जाता है कि उसी दौर में टोने-टोटके के रूप में षड्यंत्र चलन में आया होगा. जादू-टोने के षट्कर्म से अलग ब्राह्मणों के लिए षट्कर्म हैं जिनमें उनके लिए उचित कर्म बताये गये हैं. योगाभ्यास के भी षट्कर्म हैं. बोलचाल में इन्हें खटकर्म कहा जाता है (जैसे षड्यंत्र को खड्यंत्र कहते हैं). योगाभ्यास और ब्राह्नाणों के षट्कर्म को जनता ने झंझट या बखेड़ा माना, इसलिए खटकर्म को एक अर्थ यह भी मिल गया.

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