भारत-म्यांमार के बीच सात समझौते, सू की से मिलीं सुषमा, द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने पर हुई चर्चा
नेपीताव : भारत और म्यांमार के बीच शुक्रवार को सात समझौतों पर दस्तखत हुए. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने शीर्ष नेतृत्व के साथ राखिने प्रांत में घटनाक्रम, शांति और सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर चर्चा की. पिछले साल हिंसा के कारण राखिने से हजारों रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश की ओर पलायन कर गये थे. सुषमा ने शुक्रवारको […]
नेपीताव : भारत और म्यांमार के बीच शुक्रवार को सात समझौतों पर दस्तखत हुए. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने शीर्ष नेतृत्व के साथ राखिने प्रांत में घटनाक्रम, शांति और सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर चर्चा की. पिछले साल हिंसा के कारण राखिने से हजारों रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश की ओर पलायन कर गये थे.
सुषमा ने शुक्रवारको म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सांग सू की से मुलाकात की और विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने के उपायों पर चर्चा की. विदेश मंत्री दो दिन के दौरे पर गुरुवारको म्यांमार पहुंची थीं. उन्होंने राष्ट्रपति यू विन मिंट से गुरुवारको मुलाकात की थी. एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि द्विपक्षीय बैठकों में सीमा से जुड़े मुद्दे, राखिने प्रांत के घटनाक्रम सहित विस्थापित लोगों की वापसी, शांति और सुरक्षा, म्यांमार के विकास में भारत की सहायता, मौजूदा परियोजनाओं और आपसी हितों के अन्य मुद्दों पर चर्चा हुई. उन्होंने म्यांमार के सैन्य बल के कमांडर इन चीफ जनरल मिन उंग ह्लाइंग से भी मुलाकात की.
दौरे के दौरान सात समझौते/ एमओयू पर दस्तखत हुए. इसमें सरहद के आर-पार आवाजाही पर एक समझौता, बागन में भूकंप से क्षतिग्रस्त पगौड़ा (स्तूप) के संरक्षण और मरम्मत पर एक एमओयू, संयुक्त संघर्षविराम निगरानी कमेटी पर सहायता के लिए एमओयू तथा म्यांमार के विदेश सेवा के अधिकारियों को प्रशिक्षण पर एक एमओयू भी शामिल है. मोन्यावा में औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र (आईटीसी) स्थापित करने के लिए एमओयू पर भी हस्ताक्षर हुए. द्विपक्षीय संबंधों में सरहद पार करने पर हुआ समझौता महत्वपूर्ण है. बयान में कहा गया कि इससे दोनों देशों के लोग पासपोर्ट और वीजा के साथ स्वास्थ्य, शिक्षा सुविधा, धार्मिक यात्रा और पर्यटन के लिए सरहद पार आ-जा सकेंगे.
सुषमा ने राखिने प्रांत से जुड़े मुद्दों के समाधान के लिए म्यांमार सरकार को मदद के लिए प्रतिबद्धता जतायी. सेना की कार्रवाई के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा के कारण पिछले साल 7,00,000 रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार के राखिने प्रांत से पलायन करना पड़ा था. बड़ी संख्या में शरणार्थियों के पनाह लेने के कारण पड़ोसी बांग्लादेश में संकट उत्पन्न हो गया था.