जल्द ही अपना 129वां जन्मदिन मनाने वाली है ये महिला, इस उम्र में भी हैं सक्रिय

जिंदगी की चाहत तो हर किसी को होती है, लेकिन रूस में एक बुजुर्ग महिला को मौत का इंतजार है. रूस के चेचेन्या में रहने वाली महिला कोकू इस्तामबुलोवा अगले महीने 129 वां जन्मदिन मनायेगी. अपने जन्मदिन को वह एक सजा के रूप में देखती हैं. कोकू बताती हैं कि उनकी जिंदगी में कोई भी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 18, 2018 5:46 PM

जिंदगी की चाहत तो हर किसी को होती है, लेकिन रूस में एक बुजुर्ग महिला को मौत का इंतजार है. रूस के चेचेन्या में रहने वाली महिला कोकू इस्तामबुलोवा अगले महीने 129 वां जन्मदिन मनायेगी. अपने जन्मदिन को वह एक सजा के रूप में देखती हैं. कोकू बताती हैं कि उनकी जिंदगी में कोई भी ऐसा दिन नहीं रहा, जब वह खुशी महसूस की हो. लंबी आयु को वह भगवान का देन मानती हैं.

कोकू इस्तामबुलोवा के इस दावे का समर्थन रूस की सरकार भी करती है. उनके पासपोर्ट में जन्म का वर्ष 1889 है. द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त उनकी आयु 55 साल की थी और जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो उनकी आयु 102 साल थी. द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त भयानक युद्ध को लेकर उनकी कई यादें हैं. कोकू इस्तामबुलोवा ने कहा कि स्टालिन ने उनके परिवार नाजियों के साथ संबंध होने के कारण चेचेन्या को सौंप दिया था.

लंबी आयु का यह राज

कोकू इस्तामबुलोवा अपनी लंबी आयु को लेकर बताती है, बहुत सारे लोग ज्यादा दिन तक जीने के लिए स्पोर्ट्स, खान – पान और कई बातों पर ध्यान देते हैं लेकिन मुझे खुद पता नहीं मै इतने लंबे सालों तक कैसे जी गयी. मैंने जीवन भर कठोर मेहनत किया. बगीचों में काम किया. कोकु के मुताबिक अब वह थक चुकीं हैं और उनकी यह लंबी आयु उपहार नहीं बल्कि सजा है. खास बात यह है कि वह अभी भी सक्रिय हैं.
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मुझे याद है कि जर्मन टैंक मेरे घर के बगल से गुजरा करते थे. कजाखस्तान में मेरी जिंदगी और कठिन थी. जब मैं निर्वसन में जी रही थी – उस दौरान साइबेरिया में रही. कजाखस्तान में मुझे अहसास हुआ कि लोग मुझे नफरत कर रहे हैं. हर दिन मैं घर वापस लौटने का इंतजार करती थी. बगीचों में काम करते हुए मैंने अपने उदासी से लड़ना सीख लिया था. मैंने बिना आनंद का जीवन भर काम किया.
हमारा लालन – पालन बेहद खख्त माहौल में हुआ. मुझे याद है कि एक बार मेरी नानी ने सिर्फ मुझे इस वजह से फटकार लगायी थी, क्योंकि मेरा गरदन दिख गया था. जब सोवियत संघ का समय आया तो वक्त बदलने लगा और हम कपड़े पहनने के लिए स्वतंत्र हो गये थे. मैं पीछे मुड़कर अपनी जिंदगी को देखता हूं तो लगता है मुझे जवानी में ही मर जाना चाहिए. पूरे रूस में 110 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों की संख्या 37 है.

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