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जंगल सफारी का रोमांचक लम्हा

स्तों! छुट्टियां आते ही कहां घूमने जायें, इस पर लंबी चर्चाओं का दौर छिड़ जाता है. बच्चों वाले परिवार जहां पहाड़ों में सुकून का हॉलिडे तलाशते हैं, वहीं हमारे यंगस्टर्स कुछ एडवेंचर वाला हॉलिडे चाहते हैं. इस बार मैं आपको एक ऐसे ही एडवेंचर और थ्रिल से भरपूर हॉलिडे डेस्टिनेशन के बारे में बतानेवाली हूं. […]

स्तों! छुट्टियां आते ही कहां घूमने जायें, इस पर लंबी चर्चाओं का दौर छिड़ जाता है. बच्चों वाले परिवार जहां पहाड़ों में सुकून का हॉलिडे तलाशते हैं, वहीं हमारे यंगस्टर्स कुछ एडवेंचर वाला हॉलिडे चाहते हैं. इस बार मैं आपको एक ऐसे ही एडवेंचर और थ्रिल से भरपूर हॉलिडे डेस्टिनेशन के बारे में बतानेवाली हूं.

प्रकृति ने मध्य प्रदेश को खूबसूरत जंगलों से नवाजा है. यहां देश के कुछ महान वन्य जीव अभ्यारण्य मौजूद हैं. यहां एक नहीं, दो नहीं, पूरी 25 वाइल्ड लाइफ सेंचुरी हैं. ऐसी अनमोल धरोहरें भारत में किसी और राज्य के पास नहीं हैं. इसलिए तो मध्य प्रदेश को वाइल्ड लाइफ के लिए अग्रिम माना जाता है. जब 1973 में भारत सरकार और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ) फंड ने भारत में लुप्तप्राय वन्य प्रजातियों को बचाने के लिए काम करना शुरू किया, तब इसकी शुरुआत मध्य प्रदेश से ही हुई.
यहां वाइल्ड लाइफ संरक्षित है. आज ऐसे ही एक वन्य जीव अभ्यारण्य यानि वाइल्ड लाइफ सेंचुरी- बांधवगढ़ लेकर चलती हूं. सतपुड़ा के जंगलों से आबाद- बांधवगढ़. टाइगर का घर- बांधवगढ़.
बांधवगढ़ नेशनल पार्क को 1968 में नेशनल पार्क का दर्जा मिला था. हमने रात को भोपाल से ट्रेन पकड़ी और सुबह पांच बजे जबलपुर पहुंच गये. जबलपुर से बांधवगढ़ का रास्ता 163 किमी का है, जिसे हमने लगभग पांच घंटों में कवर किया. रास्ता लंबा नहीं है, पर खूबसूरत पहाड़ों के बीच से होकर गुजरता है. सतपुड़ा के पहाड़ी जंगल बरबस ही अपनी ओर ध्यान खींचते हैं. यह जंगल वर्ष भर हरे रहते हैं. यहां सागोन और बांस के पेड़ बहुतायत में हैं.
हम दोपहर तक मध्य प्रदेश टूरिज्म के रिजॉर्ट ह्वॉइट टाइगर में पहुंच गये थे, यह एक खूबसूरत जगह है और बांधवगढ़ नेशनल पार्क के बहुत नजदीक है. शाम की सफारी पर जाने के लिए कैंटर बुक किया हुआ था. यह एक प्रकार की खुली बस होती है, जिसमें बैठकर आप जंगल सफारी का आनंद ले सकते हैं. बांधवगढ़ नेशनल पार्क आकार में कान्हा नेशनल पार्क से छोटा है, लेकिन यहां टाइगर की संख्या बहुत है.
जंगल सफारी ऊर्जा भर देती है.
जंगल से आती वनस्पतियों की खुश्बू से मन महक जाता है. इस जंगल में बाघ (टाइगर) के अलावा, तेंदुआ, चीतल, हिरन, लंगूर और अन्य जंगली जानवर हैं. हमारी सफारी दोपहर तीन बजे से शुरू हुई और शाम छह बजे तक चली. पर कोई भी बाघ नहीं दिखा. शाम ढल रही थी और हमने पार्क से वापसी की राह पकड़ ली थी. उत्साह ठंडा हो चुका था. बाघ देखना इतना आसान थोड़े ही होता है. जंगल का राजा ऐसे ही दर्शन नहीं देता. पर मेरे मन में एक आस बाकी थी. कुदरत हमेशा फोटोग्राफर का साथ देती है.
हम सोच ही रहे थे कि तभी पार्क के गेट से हजार मीटर पहले हम देखते हैं कि सामने अपनी पूरी आन, बान और शान के साथ एक नर बाघ कच्ची रोड के बीच लेटा हुआ है. सब तरफ सन्नाटा. जैसे सबकी सांसें रुक गयी हों. बाघ को देखना एक ऐसा अनुभव है, जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता, सिर्फ महसूस किया जा सकता है.
हम सब में खुशी और उत्साह की लहर दौड़ गयी और हम सबने बड़े आराम से बाघ की फोटो क्लिक की. और इस तरह बांधवगढ़ नेशनल पार्क की हमारी यात्रा सफल हुई.
हम सोच ही रहे थे कि तभी पार्क के गेट से हजार मीटर पहले हम देखते हैं कि सामने अपनी पूरी आन, बान और शान के साथ एक नर बाघ कच्ची रोड के बीच लेटा हुआ है. सब तरफ सन्नाटा. जैसे सबकी सांसें रुक गयी हों.
बांधवगढ़ नेशनल पार्क और बाघ के बारे में कुछ तथ्य
भारत में सबसे ज्यादा बाघ बांधवगढ़ नेशनल पार्क में ही पाये जाते हैं.
बांधवगढ़ नेशनल पार्क विंध्याचल की पहाड़ियों में 450 स्क्वाॅयर किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है.
किसी जमाने में बांधवगढ़ नेशनल पार्क रीवा राजघराने का पर्सनल अभ्यारण्य होता था, जिसका प्रयोग शाही परिवार अपने शिकार के शौक के लिए करता था.
वर्ष 1951 में रीवा के महाराजा श्री मार्तंड सिंह ने इसी जंगल में एक सफेद बाघ मारा था. उसी बाघ को महाराजा के संग्रहालय में भूसा भरकर रखा गया है.
वर्ष 1968 में इसे नेशनल पार्क का दर्जा दिया गया. वर्ष 1972 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के आने के बाद बाघों की लगातार घटती संख्या को कड़े कानूनों द्वारा रोका गया और इस तरह यह पार्क भारत में सबसे ज्यादा बाघों की जनसंख्या के लिए जाना जाता है.
इस पार्क का नाम यहां के प्राचीन दुर्ग-बांधवगढ़ के नाम पर पड़ा है.
बांधवगढ़ नेशनल पार्क में जीप और कैंटर की सफारी के अलावा हाथी पर बैठकर सफारी भी की जा सकती है.
यह पार्क जुलाई और अगस्त के महीने को छोड़कर पूरे सालभर खुला रहता है.
बांधवगढ़ नेशनल पार्क सबसे बड़ी जैव विविधता के लिए भी मशहूर है.
बाघ को देखना रोमांच से भर देनेवाला अनुभव है. लेकिन इनके जीवन के लिए भी कई खतरे होते हैं. जैसे जन्म के बाद नन्हें शावकों को अन्य बाघ व तेंदुए अपना शिकार बना लेते हैं. बाघ की खाल, दांत और हड्डियां तस्करी की जाती हैं. इन तस्करों से भी खतरा हमेशा बना रहता है. यह लोग जंगल के पानी के स्रोतों में जहर मिला देते हैं. जंगल में आग लगा देते हैं.
इन सभी खतरों से निबटने के लिए वन विभाग के कर्मचारी मुस्तैदी से जंगल की निगरानी करते हैं. इन वन प्रहरियों के कारण ही आज इस जीव की रक्षा-संरक्षा हो सकी है.
डॉ कायनात काजी
सोलो ट्रेवेलर

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