पाक ग्राउंड ज़ीरो से ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ का सच
EPA सितंबर 2016 के महीने में विवादित कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पार जाकर भारतीय सेना की चरमपंथी ठिकानों पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक की ख़बरें सुर्ख़ियों में छाई रहीं. अब दो साल बाद उसके एक नए वीडियो का दावा किया गया है. आठ मिनट के इस वीडियो में भारतीय सेना के कमांडो चरमपंथियों के […]
सितंबर 2016 के महीने में विवादित कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पार जाकर भारतीय सेना की चरमपंथी ठिकानों पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक की ख़बरें सुर्ख़ियों में छाई रहीं.
अब दो साल बाद उसके एक नए वीडियो का दावा किया गया है.
आठ मिनट के इस वीडियो में भारतीय सेना के कमांडो चरमपंथियों के लॉन्च पैड्स को तबाह करते दिख रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक सर्जिकल स्ट्राइक के इंचार्ज रहे लेफ़्टिनेंट जनरल डी एस हूडा (रिटायर्ड) ने कहा, "ये वीडियो असली हैं. मैं इस बात की पुष्टि करता हूं."
सितंबर 2016 में जब भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक का दावा किया था तब बीबीसी संवाददाता पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में उन जगहों पर गए थे जहां की ये घटना थी.
पढ़िए वो रिपोर्ट जो उन्होंने उस समय लिखी थी…
कुछ दिनों पहले ही चरमपंथियों ने भारत प्रशासित कश्मीर में सेना के एक कैंप पर हमला किया था जिसमें 19 जवानों की मौत हो गई थी. भारत ने इसके लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार बताया जिसके बाद दोनों मुल्कों के बीच तनाव बढ़ गया.
भारतीय समर्थकों का कहना था कि फ़ौज की कार्रवाई ने पाकिस्तान को एक ऐसा सबक़ सिखाया है जिसकी ज़रूरत लंबे वक़्त से थी, हालांकि पाकिस्तान ने इसे एक ‘भ्रम’ बताया.
भारत ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ शब्द का इस्तेमाल कर रहा है, लेकिन उसने चरमपंथी ठिकानों पर हमले के लिए विमान के ज़रिए कमांडोज़ नहीं उतारे थे, न ही पाकिस्तान प्रशासित हिस्से में बहुत अंदर जाकर किसी तरह की ज़मीनी कार्रवाई की थी, लेकिन उन्होंने लाइन ऑफ़ कंट्रोल को पार किया था. कुछ मामलों में वो पाकिस्तानी बॉर्डर पोस्ट्स पर हमला करने के लिए एक किलोमीटर तक भीतर गए थे.
पाकिस्तान की ओर के पुलिस अधिकारी निजी तौर पर यह मानते हैं कि पुंछ सेक्टर के मदारपुर-तितरिनौत क्षेत्र में हमला हुआ था. ये श्रीनगर के पश्चिम में है. हमले में एक पाकिस्तानी पोस्ट तबाह हो गया और एक जवान की मौत हो गई.
सर्जिकल स्ट्राइक का नया वीडियो सामने आया
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद वापस लौटने की चुनौती
लेपा घाटी के नागरिकों ने कहा कि भारतीय जवान नियंत्रण रेखा पार करके आए थे और मुंदाकली गांव के ठीक सामने के इलाक़े में बंदूकें तैनात कर दी थीं. गांव के पूरब में कुछ दूरी पर मौजूद एक पाकिस्तानी चौकी को निशाना बनाया गया था. वहां से ऊपर पहाड़ियों पर मौजूद दो दूसरी चौकियां को भी निशाना बनाया गया.
स्थानीय लोगों ने बताया कि इस कार्रवाई में कम से कम चार पाकिस्तानी जवान घायल हुए और पूरी कार्रवाई सुबह पांच से आठ बजे तक चली.
भारतीय जवानों की ओर से इसी तरह की कार्रवाई की कोशिश नीलम घाटी के दुधनिआल क्षेत्र में भी की गई थी, लेकिन पाकिस्तानी उन्हें रोकने और पीछे धकेलने में कामयाब रहे.
हमले में एक पाकिस्तानी जवान घायल हो गया था. एक जवान के मारे जाने की रिपोर्ट की बीबीसी स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर सका.
पाकिस्तानी फ़ौज ने इन कार्रवाइयों को नियमित गोलीबारी से ज्यादा और कुछ नहीं बताया, हालांकि उनका कहना था कि इसे पहले के मुक़ाबले अधिक व्यवस्थित तरीक़े से अंज़ाम दिया गया था.
अधिकारियों का कहना था कि हमले में दो जवान मारे गए थे – एक पुंछ में और दूसरा भीमबेर सेक्टर में.
रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ़ ने बाद में कहा कि कार्रवाई में नौ सैनिक घायल हो गए थे.
अधिकारियों का कहना था कि भारतीय फ़ौज चढ़ाई वाले इन इलाक़ों पर बिना किसी नुक़सान के हमला नहीं कर सकती थी. उनके लिए बिना किसी नुक़सान के वापिस जाना इतना आसान नहीं था.
ऑपरेशन में हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल मुमकिन नहीं था क्योंकि एक तो यह एक दुर्गम क्षेत्र है और दूसरा पाकिस्तानी जवान हेलीकॉप्टर को मार गिराते.
दोनों मुल्कों के दावों को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है. संभव है कि सच्चाई दोनों ही पक्षों के दावों के बीच में कहीं छुपी हो.
जैसे कि पाकिस्तानी फ़ौज ने कैसे जवाब दिया जब कई इलाक़ों में हमला अचानक हुआ.
लेपा घाटी में मौजूद गांववालों का कहना था कि भारतीय जवानों की तरफ़ से पहली गोलीबारी पांच बजे शुरू हुई जिसमें उन्होंने मुंदाकली गांव में मौजूद पोस्ट को निशाना बनाया और उसके नज़दीक एक मस्जिद को उड़ा दिया.
उनका कहना था कि एक पाकिस्तानी जवान सुबह की नमाज़ की तैयारी में था, उसे गोली लगी और वो घायल हो गया. पहाड़ियों में मौजूद दो दूसरी फौजी चौकी को निशाना बनाया गया. स्थानीय लोगों का कहना था कि चौकी के पास मौजूद बंकर पूरी तरह से बर्बाद हो गए और उनका दूरसंचार सिस्टम कुछ वक़्त के लिए ठप्प हो गया.
इसका नतीजा ये हुआ कि घाटी के नीचे मौजूद ब्रिगेड हेटक्वार्टर्स को कुछ देर तक पता ही नहीं चला कि हो क्या रहा है.
मुंदाकली पोस्ट पर घायल हुए जवान का गांववालों ने शुरुआती इलाज़ किया और फिर उसे लेपा के फ़ौजी अस्पताल में मोटरसाइकिल पर पहुंचा दिया.
क़रीब दो दर्जन गांववाले ने मस्जिद की आग पर क़ाबू पाया.
पाकिस्तानियों ने जवाबी कार्रवाई करने में ज्यादा वक़्त नहीं लगाया और बचे बंकरों से भारतीय फ़ौज के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई की और जवानों को पीछे धकेलने में कामयाब हुए.
नीलम घाटी के दुधनियाल के पहाड़ों पर गांव से दूर ये कार्रवाई हुई.
कई गांववालों की तो नींद ही गोलियों की आवाज़ के साथ खुली.
उस दिन के वाकये से वाकिफ एक अधिकारी ने बताया कि जब तक भारतीय फ़ौज की कार्रवाई का हमें पता चलता, वे नियंत्रण रेखा से अच्छी-खासी दूरी तय कर चुके थे.
उन्होंने बताया, "पाकिस्तानी जवाबी कार्रवाई ने उन्हें अपने बंकरों में वापस जाने को जल्दी ही मजबूर कर दिया."
दक्षिण में पुंछ, कोतली और भीमबेर के क्षेत्र की कमोबेश यही कहानी थी.
अचानक हुए इस ज़बरदस्त हमले ने बेख़बर पाकिस्तानी फ़ौज को चौंका दिया और जैसे की पाकिस्तानी फ़ौज जवाब देने की स्थिति में आई भारतीय सैनिक पीछे हट गए.
बिना तैयारी के पाकिस्तानी सेना ने जवाबी कार्रवाई में गोलाबारूद के साथ अपनी पूरी ताकत झोंक दी.
स्थानीय लोगों ने बताया कि हमले के बाद दिन के वक़्त सैकड़ों गांववाले सीमा पर मौजूद पोस्टों को गोलाबारूद और दूसरे हथियार पहुंचाने के काम में लग गए थे.
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में सालों से कश्मीर की तरफ़ झुकाव रखने वाले चरमपंथियों का जमावड़ा रहा है. नब्बे के दशक में वे नियंत्रण रेखा पार करके भारतीय फ़ौज पर धावा बोलने के लिए नियंत्रण रेखा पार कर आए थे.
साल 2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष-विराम समझौते के बाद से उनकी गतिविधियां कम दिखती हैं. भले ही पाकिस्तान इससे इंकार करता हो, लेकिन आत्मघाती हमले करने में उनकी दक्षता को देखते हुए पाकिस्तान की रणनीति के लिहाज़ से उनकी प्रासंगिकता बनी हुई है.
चरमपंथियों ने सीमा से कुछ दूरी पर मौजूद मुज़फ़्फ़राबाद जैसे बड़े शहरों में अपने लिए सुरक्षित ठिकाने बना रखे हैं, लेकिन अब वे ज़्यादातर नियंत्रण रेखा से लगी फ़ौजी छावनियों के नज़दीक अपने ठीकाने बनाते हैं. ये वो इलाके हैं जहां स्थानीय लोग लंबे समय से चले आ रही इस लड़ाई से लगभग थक चुके हैं.
भारतीय मीडिया में आए दावों के बावजूद बीबीसी को इस बात के बहुत कम सबूत मिल सके हैं कि चरमपंथियों को निशाना बनाया गया था.
भीमबेर के सामाहनी क्षेत्र या पूंछ-कोतली के इलाके में चरमपंथियों के कैंप पर किसी भी तरह के हमले की रिपोर्ट नहीं आई है. लगभग ये सारे कैंप पहाड़ की चोटियों के पीछे मौजूद हैं. ये भारतीय सेना को स्वभाविक रूप से सीधी कार्रवाई करने से रोकते हैं.
लेपा घाटी में चनियान और मुंदाकली गांवों के बीच मौजूद चरमपंथियों के पांच से छह लकड़ी के घरों को निशाना नहीं बनाया गया है. पास ही की नदी के पूर्वी किनारे पहाड़ के इस पृष्ठ से नियंत्रण रेखा पर स्थित सैनिक ठिकानों से होने वाले हमलों से ये बच जाते हैं.
इसी तरह नीलम घाटी के क्षेत्र में झंबार, दोसुत और गुरेज़ घाटी में ज़्यादातर चरमपंथियों के कैंप नियंत्रण रेखा से सुरक्षित दूरी पर मौजूद हैं.
बीबीसी लेपा घाटी के खैराती बाग़ गांव और नीलम घाटी के पश्चिमी छोर पर मौजूद दुधनिआल गांव में लश्कर-ए-तैयबा के कैंप पर हमले होने के भारतीय मीडिया के दावे की भी पुष्टि नहीं कर सका, हालांकि दुधनिआल में कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने पाकिस्तानी पोस्ट के पास एक या दो जगहें देखीं जिन्हें नुकसान पहुंचा था. वे मानते हैं कि ये 29 सितंबर की सुबह ही हुआ होगा.
इन गांववालों ने पाकिस्तानी फ़ौज को हमले के बाद गोलाबारूद पहुंचाने में मदद की थी, लेकिन वे भारतीय मीडिया के इन दावों पर बात नहीं करना चाहते हैं कि जिन जगहों को उड़ाया गया था वे चरमपंथियों के ठिकाने थे या फिर ये कि इस हमले में पांच या छह लोग मारे गए थे.
बीबीसी ने पाकिस्तानी फ़ौज से इस इलाके में चरमपंथी गतिविधियों के बारे में जब पूछा तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
29 सितंबर के बाद से यहां बने तनाव में कोई कमी नहीं आई है.
लेपा घाटी के स्थानीय लोगों ने बीबीसी से कहा कि हमले के बाद घाटी में चरमपंथियों की तादाद बढ़ गई थी. क्या वे नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना के साथ झड़पों की सूरत में पाकिस्तानी फ़ौज की मदद के लिए आए हैं. इस बारे में किसी के पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं है.
नीलम घाटी में ज़िला प्रशासन के एक शीर्ष अधिकारी ने बैठक बुलाकर स्थानीय लोगों को अपने घर के पास बंकर बनाने की सलाह दी है ताकि तनाव बढ़ने की हालत में उसका इस्तेमाल किया जा सके.
इस बैठक में शामिल होने वाले एक स्थानीय शिक्षक ने बताया कि बैठक लेने वाले अधिकारी से कहा गया कि इलाके से चरमपंथियों को हटाना भारतीय फ़ौज के हमले से गांवों को बचाने का ज्यादा बेहतर और सस्ता तरीका होगा.
अधिकारी ने जवाब में कहा कि रणनीति गोपनीय होती है. इसका फ़ैसला सरकार पर छोड़ दें.
(नोटः ये ख़बर 25 अक्तूबर 2016 को प्रकाशित की गई थी)
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