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मॉनसून साथ न दे, तो भी अच्छी खेती करें

डॉ प्रवीण कुमार द्विवेदी झारखंड और बिहार में मॉनसून की आंखमिचौली एक तरह से स्थायी समस्या बन गयी है. इन परिस्थितियों में फसलों की बरबादी और कम उत्पादन की आशंकाएं रहती हैं. इस विषम परिस्थिति से निबटने का सही तरीका कुशल प्रबंधन है. यह प्रबंधन किसानों को करना है. इस बार मौसम पूर्वानुमान में मॉनसून […]

डॉ प्रवीण कुमार द्विवेदी

झारखंड और बिहार में मॉनसून की आंखमिचौली एक तरह से स्थायी समस्या बन गयी है. इन परिस्थितियों में फसलों की बरबादी और कम उत्पादन की आशंकाएं रहती हैं. इस विषम परिस्थिति से निबटने का सही तरीका कुशल प्रबंधन है. यह प्रबंधन किसानों को करना है. इस बार मौसम पूर्वानुमान में मॉनसून का ज्यादा साथ देने की संभवना कम व्यक्त की गयी है. ऐसे में किसान संयम, समझ और जागरूकता से काम लें, तो स्थिति को अनुकूल बनाया जा सकता है. किसान सबसे पहले बीजों का चयन मिट्टी के प्रकार और पानी की उपलब्धता के आधार करें. अगर मॉनसून देर से आता है, तो आप इन विधियों को अपना सकते हैं. ये वैज्ञानिक दृष्टि से ज्यादा उपयोगी है :

सामान्य मॉनसून

मॉनसून जब सामान्य रहे, तब कोई परेशानी नहीं है. तब आप मकई, अरहर, उड़द, सूर्यमुखी, मूंगफली एवं सब्जी की बोआई करें.

मॉनसून में विलंब की स्थिति में

दो सप्ताह का विलंब : मॉनसून के आने में अगर दो सप्ताह का विलंब हो यानी 20 जून से दो जुलाई के बीच मॉनसून आये, तो उस स्थिति में किसान इन विधियों को अपनाएं : धान के अधिक उपज और कम समय में (110-115 दिन) में तैयार होने वाले प्रभेदों का चयन करें. जैसे : पूसा 2,21, पूसा 33, आइआर 36, हीरा, कलिंग, आदित्या, साकेत-4, राशि, रिझारिया, धन लक्ष्मी, आइइटी-83 सरोज, गौतम आदि. धान के हाइब्रीड प्रभेदों, जैसे पूसा आरएच-10, केआरएच-2, एमजीआर-1, केआरएच आदि की बोआई करें. जीवन रक्षक सिंचाई देते हुए बिचड़े को बचा कर रखें. चार सप्ताह का विलंब : अगर मॉनसून के आने में चार सप्ताह का विलंब हो यानी छह से 20 जुलाई के बीच यह आये, तो कम समय (105-110 दिन) में फसल तैयार होने वाले धान के प्रभेदों की बुआई करें. जैसे : पूसा-2, 21, पूसा-33, आइइटी-83. मई में कम समय (75-80 दिन) वाले प्रभेद को बुआई के लिए चुनें. जैसे : दियारा कंपोजिट, स्वान, कंचन, नवनीत आदि. जिन जगहों पर धान की रोपनी हो गयी हो, वहां धान के जीवन रक्षक की सिंचाई करें. सिंचाई फसलों की क्रांतिक अवस्था के समय अवश्य करें. जैसे कल्ला निकलना, पुष्प गुच्छा बनना, फूल आना एवं दाना भरना आदि.

छह सप्ताह का विलंब : मॉनसूनी वर्षा में अगर छह सप्ताह का विलंब हो, तो बचे हुए धान में जीवन रक्षक सिंचाई करें. इसमें अंकुरित बीजों की सीधी बोआई की जा सकती है. आप डैयोग विधि से तैयार कर 10-15 दिन तक के बिचड़ों की रोपनी भी कर सकते हैं. इसके साथ ही बहुत ही कम समय में तैयार होने वाले प्रभेद के अंकुरित बीजों की सीधी बोआई करें. इसमें तुरंत (70-75 दिन),, प्रभात (90-95 दिन), रिछारिया (95-100 दिन), धनलक्ष्मी (95-100 दिन) आदि को चुन सकते हैं. तीसरी बात कि बिचड़ा उपलब्ध हो, तो उससे धान की रोपनी करें, परंतु दूरी कम कर दें. साथ ही एक जगह तीन-चार बिचड़ा लगावें. चौथी बात कि धान के बदले जरूरत के मुताबिक अरहर, मक्का आदि के कम समय में तैयार होने वाले उपयुक्त प्रभेदों तथा कुल्थी सब्जी इत्यादि की खेती की जा सकती है. इसमें उरद-टी-9, पंत उरद- 30, नवीन आदि की बोआई करें.

आठ सप्ताह का विलंब : अगर मॉनसून की वर्षा में आठ सप्ताह की देरी हो यानी वर्षा छह अगस्त से 20. अगस्त के बीच हो, तो और बिचड़ा उपलब्ध हो, तो उससे रोपनी कर सकते हैं, लेकिन पौधों के बीच की दूरी कम करें. साथ ही एक जगह पर चार-पांच बिचड़ा लगाएं. धान के अत्यंत अल्प अवधि वाले प्रभेदों को चुनना ज्यादा सही होगा. जैसे प्रभात, तुरंत, धनलक्ष्मी, रिचारिया, पूसा- 2 21, साकेत-4 आदि. इनके बिचड़ों को डेपोग विधि से तैयार करें और 15 अगस्त तक उससे रोपाई करें. इसमें अंकुरित बीज का 75-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सीधी बोआई करें.

इसके अलावा धान की प्रकाश संवेदी किस्में, जैसे बीआर-8. बीआर-39, बीआर-9, बीआर-10, वैदही जानकी, सुधा, सुगंधा, कामनी कतरनी, तुलसी मंजरी, सोनाचूर बरोगर,जागर आदि के अंकुरित बीजों की सीधी बोआई 15 अगस्त तक कर सकते हैं. बीज दर 75-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें.

बचे हुए बिचड़े से करें धान की खेती

मॉनसून की वर्षा में देरी या अनियमितता की स्थिति में किसानों को बहुत घबराने की जरूरत नहीं है. उन्हें इस स्थिति से निबटने के लिए बड़े धैर्य से फसलों का उचित प्रबंधन करना चाहिए. इसमें सबसे महत्व की बात यह होती है कि आप ऐसे प्रभेद के संकर बीजों का चयन करें, जो कम समय और कम पानी में अच्छी उपज दे सके. इसके लिए आपके पास कई विकल्प हैं. विकल्प भी खरीफ की खेती के लिए बचे हुए समय के अनुसार हैं. दूसरा कि अगर आपके पास बिचड़ा उपलब्ध है, तो आप उससे भी खेती कर सकते हैं, लेकिन उसकी रोपनी में उन विधियों को अपनाएं, जो कृषि वैज्ञानिकों के प्रयोग में सफल साबित हुई हैं. इसमें बिचड़े का चुनाव भी अहमियत रखता है.

अल्पावधि प्रभेद : अगर आपके पास 100-150 दिन का समय बचा हुआ है और आप इस अल्प अवधि में सही उत्पादन चाहते हैं, तो वैसे बिचड़ों को चुनें, जो 30-35 दिन के हैं.

मध्यावधि प्रभेद : अगर आप 130-140 दिन के बीच फसल तैयार करना चाहते हैं, तो 40-50 दिन के बिचड़ों को चुनें और उससे ही बुआई करें.

लंबी अवधि प्रभेद : अगर आपके पास 140-160 दिन हैं और आपको इतने दिनों में फसल का उत्पादन प्राप्त करना है, तो आप वैसे प्रभेद वाले बिचड़ों को चुनें, जो 50-55 दिन के हैं. प्रकाश संवेदी प्रभेद वाले बीजों से तैयार 60-70 दिनों के बिचड़े की रोपनी भी रोपनी की जा सकती है. इसमें सुगंधा, बीआर-8, बीआर-36, कामनी आदि प्रभेद के बिचड़े उपयुक्त हैं. अगर ज्यादा दिनों तक वर्षा नहीं होती है और आपने खेतों में बीज डाल दिया है, तो उससे तैयार बिचड़ों को लेकर बहुत निराश न हों. अधिक उम्र के बिचड़ों से भी रोपनी हो सकती है, लेकिन उसमें इन बातों का ध्यान रखें :

पहला : बिचड़े गुच्छे में लगाएं. एक गुच्छे में 4-5 बिचड़े होने चाहिए.

दूसरा : पौधों की दूरी कम कर दें.

तीसरा : रोपनी के समय एनपी के तीनों खाद डालें.

लंबी अवधि तक सुखाड़ की स्थिति

मॉनसून का बिगड़ा मिजाज केवल यह संकट पैदा नहीं करता है कि वह देर से आता है. अक्सर समय पर या थोड़े देर से आने के बाद भी मॉनसून खेती की बीच की अवधि में धोखा दे जाता है. यानी शुरू में वर्षा हो जाती है, लेकिन बीच में सुखे की स्थिति बन जाती है. अगर लंबी अवधि तक मॉनसून के बीच सुखाड़ की स्थिति बने, तो किसान इस विधि को अपनाएं :

बुआई के दो-तीन सप्ताह बाद : अगर बोआई के दो-तीन सप्ताह बाद तक यानी 29 जुलाई से चार अगस्त तक वर्षा न हो, तो आप संकर बीज की बोआई करें. इसके लिए एचएचबी-62, एमबीएच-110 एवं बीडी-163 प्रभेद उपयुक्त हैं. जब वर्षा हो, तो यूरिया से उपरिबोशन करें. यदि धान की पूरी फसल नष्ट हो गयी हो, तो अल्प अवधि वाले धान के प्रभेद, जैसे पूसा, सुगंधा-2, प्रभात, तुरंता, हीरा, एमटीयू, 1001 एवं 1010, इत्यादि की सीधी बोआई करें. पी- 83, 1040, 1107, पीएनआर-32 नवीन, पंतधान-10 भी इसके लिए उपयुक्त हैं.

इस स्थिति में आप वर्षा होने पर बचे हुए बिचड़े से धान की रोपनी करें. धान एवं मकई के बदले आप कलाई, कुल्थी, अरहर की भी बोआई कर सकते हैं. खरहन विधि से धान की रोपनी ज्यादा उपयुक्त है. साथ ही डैपोग विधि से बिचड़ा तैयार कर 15 दिन में इससे रोपनी करें.

बुआई के चार-छह सप्ताह बाद : बोआई के चार-छह सप्ताह बाद यानी 12 अगस्त से 25 अगस्त तक वर्ष न हो, तो पौधे होने की स्थिति में यूरिया से उपरिबेशन करें. यदि धान की पूरी फसल नष्ट हो गयी हो, तो धान तथा मकई के बदले सरसों, तोरिया, सूर्यमुखी, रब्बी मकई, अगात आलू, चना, तीसी आदि की बोआई प्रारंभ कर देनी चाहिए. इसके साथ ही वर्षा हो जाने पर खुरहन विधि से खाली स्थानों में रोपनी करें. बचे हुए बिचड़े से धान की रोपनी करें. अल्पावधि प्रभेद (100-115 दिन) के लिए 30-35 दिन के बिचड़े, मध्यावधि प्रभेदों के (1130-140 दिन) के लिए 40-50 दिन के बिचड़े, लंबी अवधि (140-160 दिन) के लिए 50-55 दिन के बिचड़े तथा प्रकाश संवेदी किस्में जैसे सुगंधा, बीआर 8, बीआर 36, कामनी आदि के 60-70 दिनों के बिचड़े की रोपनी की जा सकती है. अधिक उम्र के बिचड़ों से रोपनी करनी हो, तो सीधी बोआई या बिचड़ा तैयार करने के लिए 25-30 प्रतिशत अधिक बीज का व्यवहार करें. साथ ही एक जगह तीन-चार बिचड़ा देना चाहिए और आवश्यकतानुसार बोने की दूरी भी कम रखनी चाहिए.

वैकल्पिक फसल को अपनाना उचित

मॉनसून अगर साथ न दे, तो ऐसे में किसान धान की परंपरागत खेती की जगह वैकल्पिक फसलों की खेती करें. इसमें कम समय और कम पानी की जरूरत होगी और मॉनसून के बिगड़े मिजाज के बावजूद किसान आर्थिक नुकसान की अच्छी भरपाई कर सकते हैं.

इसमें आप अपनी जरूरत, सुविधा और बाजार के हिसाब से कुल्थी, संकर बाजरा, कलाई तील, राई, तोरिया, आगात आलू तथा अन्य सब्जियों की खेती कर सकते हैं.

किसान मकई के कम समय में तैयार होने बीजों से खेती कर सकते हैं. इसमें 75-80 दिन वाले फसल देने वाले मकर्द के बीजों के प्रभेद उपलब्ध हैं. जैसे दियारा कंपोजिट, कंचन, नवनीत, स्वान आदि.

अगर आप दलहन की बुआई कर रहे हैं, तो अरहर के प्रभेद पूसा 9-1 एवं शरद की बोआई करें. यह ज्यादा लाभदायक है.

हथिया नक्षत्र से पूर्व वर्षा की समाप्ति

अक्सर हथिया नक्षत्र से पहले, यानी 22 सितंबर से 10 अक्तूबर के पहले समाप्त हो जाये, तो किसान इन उपायों को अपनाएं :

पहला : जमा किये गये जल का उपयोग पौधे की गंभीर हालत में ही करें. जैसे कल्ला निकालना, गाभा निकलना, फूल आना एवं दाना बनना.

दूसरा : सिंचाई नालों की सफाई करें, ताकि सिपेज से पानी का नुकसान नहीं हो और अन्य कारणों से भी पानी की बरबादी को बचाया जा सके.

तीसरा : निकौनी लगातार हो, ताकि खरपतवारों की वृद्धि नहीं हो और लेवलिंग भी हो सके.

चौथा : जुताई सुबह में करें तथा जुताई के तुरंत बाद पाटा चला दें.

पांचवां : सूखे से धान तथा अन्य फसल बरबाद हो चुकी हो, तो अगात रब्बी जैसे-तोड़ी, अगात आलू, तीसी, रब्बी मकई आदि की बोआई प्रारंभ की जानी चाहिए.

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