नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से बचना है जरूरी

आज एक अच्छी जॉब के लिए जरूरी मानकों की परिभाषा बदल चुकी है. अब केवल आपको अपनी शैक्षणिक योग्यता ही नहीं, बल्कि कुछ और मानकों पर भी खरा उतरना पड़ेगा. आज से कुछ वर्ष पहले तक ‘इंटेलिजेंस क्वोशेंट’ को बड़ी कंपनियों में जॉब के लिए जरूरी समझा जाता था, ताकि यह जांचा जाये कि दबाव […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 29, 2014 12:17 PM

आज एक अच्छी जॉब के लिए जरूरी मानकों की परिभाषा बदल चुकी है. अब केवल आपको अपनी शैक्षणिक योग्यता ही नहीं, बल्कि कुछ और मानकों पर भी खरा उतरना पड़ेगा. आज से कुछ वर्ष पहले तक ‘इंटेलिजेंस क्वोशेंट’ को बड़ी कंपनियों में जॉब के लिए जरूरी समझा जाता था, ताकि यह जांचा जाये कि दबाव में आप किस प्रकार अपनी बुद्धिमता का प्रयोग करते हैं.

फिर यह समझा गया कि कोई भी व्यक्ति किसी कंपनी के लिए पूरे डेडिकेशन से काम तब तक नहीं कर सकता, जब तक वह कंपनी से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ न हो, जिसके फलस्वरूप ‘इमोशनल क्वोशेंट’ की जांच की जाने लगी. इसके बाद एक स्तर ऐसा आया, जब यह समझा गया कि जब तक हम अपने देश, समाज, परिवार और धर्म के प्रति उत्तरदायी नहीं होंगे, हम अपने काम के प्रति भी पूर्ण रूप से जवाबदेह नहीं हो सकते, इसी सोच ने स्पिरिचुअल क्वोशेंट को जन्म दिया.

कई बार हम समझते हैं कि स्पिरिचुएलिटी का मतलब है पूजा-पाठ करना, क्योंकि इसका हिंदी शाब्दिक अर्थ है-अध्यात्म. परंतु, हकीकत में यह बिल्कुल अलग है. यह केवल हमारे व्यक्तित्व का एक रूप है, जिसे विकसित कर शायद हम हर उस ऊंचाई को छू सकते हैं, जिसकी परिकल्पना हमने कभी की होगी. आइये, इस बात को एक सच्ची कहानी के माध्यम से समझते हैं.

कई दशक पहले की बात है. एक ट्रेन दिल्ली से पटना के लिए खुली. थर्ड क्लास का डब्बा था. ट्रेन में बहुत भीड़ नहीं थी. तभी एक व्यक्ति ने अपना बैग खोला, उसमें से पान का डब्बा निकाला और पान खाने लगा. थोड़ी देर के बाद उसने पान की पीग वहीं थूक दी. उस व्यक्ति के ठीक सामने एक बूढ़ा व्यक्ति चुपचाप बैठा हुआ था. उस बूढ़े व्यक्ति ने देखा, पर कुछ नहीं कहा. थोड़ी देर बाद उस व्यक्ति ने फिर वही हरकत की और पान का पीग थूक दिया.

वह बूढ़ा व्यक्ति बेहद नम्रता से बोला, ‘भाई, आपके यहां थूकने से बाकी लोगों को परेशानी हो रही है, कृपया पान खिड़की से बाहर थूकें.’ उस व्यक्ति ने सोचा यह बूढ़ा क्या करेगा. उसने फिर से पान का पीग थूक दिया. अब, उस बूढ़े व्यक्ति ने अपनी जेब से एक कपड़ा निकाला और उस पीग को साफ करने लगा. अब तो उस व्यक्ति को और मजा आने लगा. जब वह थूकता, वह बूढ़ा व्यक्ति चुपचाप उसे अपने कपड़े से साफ कर देता.

खैर, रात गुजरी, सुबह ट्रेन पटना स्टेशन पहुंची. उस व्यक्ति ने देखा स्टेशन पर काफी गहमागहमी थी. तभी स्टेशन पर एक व्यक्ति की निगाह उस बूढ़े व्यक्ति पर पड़ी. उसने अपने साथियों को कुछ कहा और काफी लोग उस डब्बे के पास आ गये और झुक कर उस बूढ़े व्यक्ति को नमन करने लगे. पीग थूकनेवाले व्यक्ति ने सोचा कि यह कौन आदमी है, जिसे लेने इतने लोग आये हैं. उसने किसी से पूछा, ‘कौन है यह व्यक्ति. भीड़ में उसे किसी से जवाब मिला, अरे तुमने पहचाना नहीं, ये गांधी जी हैं.’ यह सुन कर उस व्यक्ति के पैर के नीचे से जमीन खिसक गयी. वह दौड़ा-दौड़ा गया और बापू के पैर पर गिर गया और अपनी गलती के लिए क्षमा याचना करने लगा. बापू ने उसे उठाया और अपने गले से लगाते हुए कहा, ‘भाई, कोई बात नहीं, इस घटना से हम दोनों का फायदा हुआ है.’ व्यक्ति को कुछ समझ में नहीं आया. बापू ने आगे कहा, ‘इसमें मेरा फायदा यह हुआ कि मैंने अपने अंदर के धैर्य को परखा कि मेरे अंदर कितनी सहनशक्ति है और तुम्हारा फायदा यह हुआ कि तुमको अपनी गलती का एहसाह हो गया.’ बापू की बात सुन कर वह व्यक्ति अवाक रह गया.

यदि यह कहा जाये कि कठिन परिस्थितियों में धैर्य रखना और नकारात्मक शक्तियों का अपने ऊपर प्रभाव नहीं पड़ने देना ही स्पिरिचुअल क्वोशेंट का एक सशक्त उदाहरण है, तो गलत नहीं होगा. जीवन में उन लोगों ने ही ऊंचाइयों को प्राप्त किया है, जिनमें इस बातों का सम्मिश्रण है. देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपने किसी वक्तव्य में कहा था, ‘धैर्य सही समय के इंतजार को नहीं कहते, बल्कि इस इंतजार में आपके व्यवहार का ही दूसरा नाम धैर्य है.’

आशीष आदर्श

कैरियर काउंसेलर

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