आख़िर क्यों हुई सिंघल की वापसी?

अंकुर जैन अहमदाबाद से, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उनकी सरकार पर असहमति रखने वाले अधिकारियों को दुर्भावनापू्र्ण तरीके से निशाना बनाने का आरोप लगता रहता था. हाल ही में गुजरात सरकार ने एक चौंकाने वाला फ़ैसला लेते हुए भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के निलंबित अधिकारी जीएल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 30, 2014 4:50 PM

नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उनकी सरकार पर असहमति रखने वाले अधिकारियों को दुर्भावनापू्र्ण तरीके से निशाना बनाने का आरोप लगता रहता था.

हाल ही में गुजरात सरकार ने एक चौंकाने वाला फ़ैसला लेते हुए भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के निलंबित अधिकारी जीएल सिंघल को बहाल करने का आदेश दिया है.

मंगलवार को लिए गए इस फ़ैसले के बाद गुजरात सरकार और इशरत जहाँ मुठभेड़ मामले में कथित तौर पर शामिल पुलिस अधिकारियों को लेकर एक बहस छिड़ गई है.

सिंघल पर मुठभेड़ में शामिल होने के आरोप में मुक़दमा चल रहा है. पिछले साल नवंबर में उठे ‘स्नूपगेट'(एक महिला की कथित जासूसी) मामले के केंद्र में भी सिंघल ही थे.

इस मामले को लेकर मोदी सरकार पर काफ़ी तीखे हमले हुए थे. फिलहाल, सिंघल को गांधीनगर में राज्य रिज़र्व पुलिस में ग्रुप कमांडेंट का पद दिया गया है.

लेकिन गुजरात सरकार ने आख़िरकार उन्हें बहाल क्यों किया?

क्या यह क़ानूनी मज़बूरी थी?

फरवरी, 2013 में सिंघल की गिरफ़्तारी के बाद केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) इशरत जहाँ मुठभेड़ मामले में 90 दिनों के अंदर प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज करने में विफल रही. सीबीआई की विफलता के कारण सिंघल को अपने आप ज़मानत मिल गई.

हालांकि गिरफ़्तारी के बाद सिंघल को तत्काल निलंबित कर दिया गया. निलंबन के बाद सिंघल ने सरकार के बर्ताव के प्रति नाराजगी व्यक्त करते हुए नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया. राज्य सरकार ने उनका इस्तीफ़ा स्वीकार नहीं किया.

उनके इस्तीफ़े ने नरेंद्र मोदी की सरकार और अमित शाह को परेशानी में डाल दिया. यह भी अफ़वाह उड़ी थी कि सिंघल कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामलों में व्हिसल ब्लोअर बन गए हैं.

एक निजी वेबसाइट ने अमित शाह और सिंघल के बीच की निजी बातचीत को सार्वजनिक किया था. यह बातचीत अन्य कई दस्तावेज़ों के साथ सीबीआई के छापे में सिंघल के घर से बरामद हुई थी.

निलंबन और इस्तीफ़ा

‘स्नूपगेट’ विवाद और शाह और सिंघल की बातचीत को लेकर गुजरात सरकार की काफ़ी किरकरी हुई थी. उस समय मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे.

हालांकि यह स्पष्ट होता जा रहा था कि इनकम टैक्स अफ़सर से पुलिस अफ़सर बने सिंघल गुजरात सरकार से उलझने के मूड में थे और बहुत संभावना थी कि वो मोदी और शाह के लिए नई मुसीबतें खड़ी कर दें.

इस साल मार्च में सिंघल ने एक बार फिर गुजरात सरकार को पत्र लिखकर कहा कि या तो उनका इस्तीफ़ा स्वीकार किया जाए या फिर उन्हें बहाल किया जाए.

गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) एसके नंदा कहते हैं, "हर साल कई अफ़सरों को बहाल किया जाता है, सिंघल उनमें से एक हैं. उन्हें ज़मानत मिल गई है और उनका निलंबन वापस लिया जा चुका है. इसलिए नियमों के अनुसार उन्हें विभाग में वापस बहाल कर दिया गया." नंदा ने सिंघल पर लगे आरोपों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

हालांकि गुजरात के गृह विभाग के राज्यमंत्री रजनीकांत पाटिल, सिंघल की बहाली के सवाल को टाल गए. पिछले हफ़्ते गुजरात को आनंदीबेन पटेल के रूप में नया मुख्यमंत्री मिला. यह माना जा रहा है कि भले ही सिंघल की बहाली के आदेश पर आनंदीबेन के दस्तखत हों लेकिन प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने से पहले मोदी इसके लिए अनुमति दे चुके थे.

गृह विभाग के सूत्रों के अनुसार सिंघल की बहाली इसलिए भी ज़रूरी थी क्योंकि जिन-जिन अन्य वरिष्ठ आईपीएस अफ़सरों को फ़र्ज़ी मुठभेड़ के कथित मामलों में ज़मानत मिल चुकी है उनके लिए रास्ता तैयार किया जा सके. इस समय कुल 30 पुलिस अधिकारी साल 2002 से 2005 के बीच गुजरात में हुए कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामलों के चलते जेल में हैं. इनमें पाँच आईपीएस अफ़सर भी शामिल हैं.

सिंघल के बाद कौन?

जेल में बंद आईपीएस अफ़सर डीजी वंजारा को छोड़कर जितने भी अफ़सर फ़र्ज़ी मुठभेड़ों के मामले में जेल में हैं उन्हें अगर ज़मानत मिलती है तो उन्हें बहाल किया जा सकता है.

वंजारा ने ज़मानत की अर्जी दी है, सीबीआई अदालत उनकी अर्जी पर अगले हफ़्ते सुनवाई करेगी. सीबीआई पहले उन्हें ज़मानत देने का विरोध कर चुकी है. लेकिन तक़रीबन सात साल से जेल में हैं और इस महीने वो रिटायर होने वाले हैं. वो भी सरकार को अपना त्यागपत्र दे चुके हैं और उन्होंने रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले लाभ भी न लेने की बात कही थी.

उम्मीद जताई जा रही है कि सिंघल के बाद बहाल होने वाले आईपीएस अफ़सर अभय चुड़ासमा हो सकते हैं. अभय को अमित शाह का करीबी माना जाता है.

गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत दयाल कहते हैं, "सिंघल की बहाली चुड़ासमा, विपुल अग्रवाल, पीपी पांडेय और ऐसे ही दूसरे अफ़सरों की राह प्रशस्त करेगी जो ऐसे ही दूसरों मामलों में जेल में हैं. चुड़ासमा को ज़मानत मिल चुकी है और दूसरे भी जल्द ही इसके लिए प्रयास करेंगे. अगर सिंघल को सरकार नापसंद भी करती हो तो भी सरकार के क़रीबी दूसरे अफ़सरों को बहाल करने के लिए ऐसा करना ज़रूरी था."

प्रशांत दयाल कहते हैं कि मोदी और उनकी टीम सिंघल के अगले क़दम को लेकर चिंतित होंगी. वो कहते हैं, "अगर दूसरे अफ़सरों को उनसे पहले बहाल किया जाता तो बहुत संभावना थी कि वो सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल या कोर्ट में इस मामले को लेकर जाते, जिससे एक बार फिर गुजरात सरकार को असहज स्थिति का सामना करना पड़ता."

गुजरात सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार संभव है कि राज्य सरकार सतीश वर्मा और राहुल शर्मा जैसे अधिकारियों के प्रति दोस्ताना रवैया अपनाए. माना जाता है कि इन दोनों अफ़सरों को सरकार की नीतियों से नाइत्तेफाकी रखने के कारण हाशिए पर डाल दिया गया था.

क्या पहल ख़ुद सिंघल ने की?

सिंघल को बहाल करने के गुजरात सरकार के फ़ैसले की मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आलोचना की है. हालांकि कई लोगों का कहना है कि ख़ुद सिंघल ने राज्य सरकार के साथ चल रहे अपने शीत युद्ध को ख़त्म करने की पहल की.

सिंघल के क़रीबी लोगों का कहना है कि साल 2012 में जब उनके बेटे ने आत्महत्या कर ली उसके बाद वो टूट गए. उस घटना के बाद से वो व्हिसलब्लोवर के रूप में सामने आने लगे.

हालांकि सिंघल ने ‘स्नूपगेट’ मामले की जाँच कर रहे दो सदस्यों वाले जांच पैनल से सामने पेशी की तारीख बढ़वा ली थी.

सिंघल और शाह की निजी बातचीत के टेप सामने आने के बाद गुजरात सरकार विवादों में घिर गई थी. इस बातचीत में शाह सिंघल से एक महिला वास्तुविद की कथित तौर पर जासूसी करने के लिए कह रहे थे.

इस टेप को जारी करने वाली वेबसाइटों गुलाल एंड कोबरापोस्ट के अनुसार उस समय अमित शाह गुजरात के गृह विभाग के राज्यमंत्री थे और सिंघल अहमदाबाद की अपराध शाखा में काम करते थे.

वेबसाइट पर जारी किए टेप में अमित शाह कहते हैं कि ‘साहेब’ उस लड़की के बारे में पल-पल की जानकारी चाहते हैं. हालांकि अब तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि टेप में ‘साहेब’ किसे कहा गया है. माना जाता है कि सिंघल ने सीबीआई को इन टेप का सुराग दिया.

गुजरात के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया, "जब इस मामले की जाँच कर रहे पैनल ने सिंघल को पूछताछ के लिए बुलाया तो उसने 16 मई के बाद की कोई तारीख मांगी. ऐसा लगता है कि वो शाह और उनके ‘साहेब’ को चुनाव परिणाम आने से पहले किसी तरह के विवाद में पड़ने से बचाना चाहते थे. शायद यह वह पहला क़दम रहा जिसका पुरस्कार सिंघल को बहाली के रूप में मिला है."

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