श्रावणी मेला से दूर हो रही धार्मिक भावना : व्यासदेव महाराज

देवघर : श्रावणी मेले की शुरुआत में मारवाड़ी लोग अपने परिवार के साथ आते थे. खेती का समय होता था. व्यवसाय भी मंदा चलता था. यह धीरे-धीरे व्यावसायिक वर्ग से किसान वर्ग में परिवर्तित हो गया. इससे भक्त बाबाधाम की पूजा के नियम का पालन सही तरीके से नहीं करते हैं. रात में भोजन ग्रहण […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 11, 2018 5:55 AM
देवघर : श्रावणी मेले की शुरुआत में मारवाड़ी लोग अपने परिवार के साथ आते थे. खेती का समय होता था. व्यवसाय भी मंदा चलता था. यह धीरे-धीरे व्यावसायिक वर्ग से किसान वर्ग में परिवर्तित हो गया. इससे भक्त बाबाधाम की पूजा के नियम का पालन सही तरीके से नहीं करते हैं. रात में भोजन ग्रहण कर कतार में लग जाते हैं.
नवयुवक पिकनिक समझ कर आते हैं. पूजा के बाद शराब की दुकान खोजने लगते हैं. अब श्रद्धा व विश्वास की कमी देखी जा रही है. कैसेट्स में भी देवी-देवताओं को नाचते-गाते दिखाया जाता है. यह गलत है. इससे नयी पीढ़ी में पिकनिक की भावना बढ़ रही है. श्रावणी मेला अब धार्मिक यात्रा नहीं रहा, यह देवघर का सबसे बड़ा व्यवसाय का केंद्र बन गया है. हालांकि इससे आर्थिक व्यवस्था मजबूत हो रही है, लेकिन धार्मिकता की दृष्टि से भक्ति भावना दूर हो रही है.

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