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थम गया काल के कपाल पर लिखने वाले पूर्व पीएम वाजपेयी की जिंदगी का सिलसिला

नयी दिल्ली/रांची : काल के कपाल लिखने-मिटाने वाले और मौत से दो-दो हाथ करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आखिरकार गुरुवार यानी 16 अगस्त को मौत से हार गये. करीब 93 साल की उम्र में काल के कपाल पर लिखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने दिल्ली के एम्स में गुरुवार की शाम करीब पांच […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 16, 2018 6:09 PM

नयी दिल्ली/रांची : काल के कपाल लिखने-मिटाने वाले और मौत से दो-दो हाथ करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आखिरकार गुरुवार यानी 16 अगस्त को मौत से हार गये. करीब 93 साल की उम्र में काल के कपाल पर लिखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने दिल्ली के एम्स में गुरुवार की शाम करीब पांच बजकर पांच मिनट पर अंतिम सांसें ली.

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को हुआ था. उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी के मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक थे. वहीं शिंदे की छावनी में 25 दिसम्बर, 1924 को ब्रह्ममुहूर्त में उनकी सहधर्मिणी कृष्णा वाजपेयी की कोख से अटल जी का जन्म हुआ था. पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में अध्यापन कार्य तो करते ही थे, इसके अतिरिक्त वे हिंदी और ब्रजभाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे. बेटे में काव्य के गुण वंशानुगत परिपाटी से प्राप्त हुए.

महात्मा रामचंद्र वीर ने बदल दी अटल जी की जिंदगी

महात्मा रामचंद्र वीर द्वारा रचित अमर कृति विजय पताका पढ़कर अटल जी के जीवन की दिशा ही बदल गयी. अटल जी की बीए की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) में हुई. छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे. कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एमए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की.

दीनदयाल उपाध्याय और मुखर्जी के सान्निध्य में राजनीति का पाठ पढ़ी

एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपने पिताजी के साथ-साथ कानपुर में ही एलएलबी की पढ़ाई भी प्रारम्भ की, लेकिन उसे बीच में ही विराम देकर पूरी निष्ठा से संघ के कार्य में जुट गये. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ तो पढ़ा ही, साथ-साथ पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन का कार्य भी कुशलता पूर्वक करते रहे.

जनसंघ को स्थापित करने वाले नेताओं में अहम रहे वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वाले महापुरुषों में से एक हैं और 1968 से 1970 तक उसके अध्यक्ष भी रहे. वे जीवन भर भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे. उन्होंने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया. उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने तक उस संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया.

एनडीए के पहले प्रधानमंत्री बने

वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के पहले प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमंत्री पद के 5 साल बिना किसी समस्या के पूरे किये. उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनायी थी, जिसमें 81 मंत्री थे. कभी किसी दल ने आनाकानी नहीं की. इससे उनकी नेतृत्व क्षमता का पता चलता है.

भाजपा की तिकड़ी में सबसे प्रचलित थे वाजपेयी

भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा में पहली पंक्ति नेताओं में बनी तीन नेताओं की तिकड़ी में हमेशा अहम रहे. भाजपा की पहली पंक्ति में अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की तिकड़ी भारतीय राजनीति में काफी प्रचलित रही. 1990 के दशक भारतीय राजनीति में और खासकर भाजपा में एक नारा काफी प्रचलित था और वह था ‘भाजपा की तीन धरोहर-अटल, आडवाणी, मुरली मनोहर.’ यह वही वक्त था, जब भाजपा देशभर एक राजनीतिक शक्ति बनकर राष्ट्रीय फलक पर उभरी थी. उसे गंभीरता से लिया जाने लगा था.

भाजपा को राष्ट्रीय फलक पर लाने में निभायी अहम भूमिका

भारत में बदलते राजनीतिक परिवेश के बीच अगर हम गौर करें, तो भाजपा की विचारधारा को भारतीय राजनीति की मुख्यधारा में लाने का श्रेय अलग-अलग व्यक्तित्व के धनी पहली पंक्ति के इन तीन नेताओं की तिकड़ी को ही जाता है और इसमें भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका अहम रही है. कांग्रेसी समाजवाद और वामपंथी साम्यवाद के बीच उन्होंने दक्षिणपंथ और हिंदू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के लिए भारत में राजनीतिक जगह बनायी. वाजपेयी, आडवाणी और जोशी अलग-अलग रास्तों से शिखर तक पहुंचे. वाजपेयी ने 1947 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पत्रिका राष्ट्र धर्म और एक साल बाद पाञ्चजन्य का संपादक बनकर शुरुआत की. उस वक्त आडवाणी राजस्थान में संघ के व्यस्त प्रचारक थे और जोशी उत्तर प्रदेश में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में सक्रिय थे.

1957 में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे अटल

भाजपा की पहली पंक्ति के तीनों नेताओं में अटल बिहारी वाजपेयी अव्वल रहे. वे लखनऊ का चुनाव हारे, मथुरा में जमानत गंवायी और बलरामपुर से जीतकर लोकसभा पहुंचे. यह सब एक ही वक्त 1957 के चुनाव में हुआ. आडवाणी ने उनके सहायक की भूमिका निभाते हुए 1967 में दिल्ली महानगर परिषद की सदस्यता से सियासी सफर शुरू किया. इस बीच जोशी यूपी में जनसंघ की कतारों में काम करते हुए ऊंचे उठते गये.

1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में किया गया विलय

वर्ष 1977 में अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी ने इंदिरा गांधी का मुकाबला करने के लिए जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कर दिया. आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में जनसंघ के 93 सदस्य चुनकर लोकसभा में पहुंचे.

6 अप्रैल, 1980 को भारतीय राजनीति में हुआ भाजपा का उदय

वर्ष 1980 का ‘गुड फ्राइडे’ घटना भाजपा के लिए प्रधान साबित हुआ. इसी दिन जनता पार्टी ने आरएसएस के साथ दोहरी सदस्यता को मुद्दा बनाकर जनसंघ के सदस्यों को सूली पर चढ़ा दिया. 6 अप्रैल, 1980 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा का गठन किया गया और जनसंघ के बदले राजनीतिक शक्ल के साथ उन्होंने नयी जिंदगी की शुरुआत की. शिखर नेताओं की तिकड़ी एक बार फिर अपने विलक्षण व्यक्तित्व और कौशल से राष्ट्रीय फलक पर नये सिरे से उभरकर आयी.

1984 में भाजपा को दो सीटों पर मिली थी जीत

वर्ष 1984 के चुनाव में भाजपा को दो सीटें मिलीं. यही वह सबसे निचला राजनीतिक पड़ाव था, जहां से भाजपा ने लंबी कूच की तैयारी की. 1986 में लाल कृष्ण आडवाणी पार्टी अध्यक्ष बने और आरएसएस के एजेंडे को पूरी आक्रामकता के साथ आगे बढ़ाया.

1990 में रथयात्रा के समय आडवाणी को दिया था संयम बरतने की सलाह

वर्ष 1990 में जब भाजपा की इस तिकड़ी की दूसरी अहम कड़ी लाल कृष्ण आडवाणी रथयात्रा निकाली थी, तब अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें संयम बरतने की सलाह देते हुए कहा था कि यह रथयात्रा अयोध्या जा रही है श्रीलंका नहीं. हालांकि, रथयात्रा की अपार लोकप्रियता पर सवार आडवाणी ने वाजपेयी की तेजस्विता को भी पीछे छोड़ दिया. वह अपने दम पर पार्टी का एजेंडा तय करने लगे. यहां तक कि उन्होंने खुद ही वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. भारतीय राजनीति के इस अविराम यात्री का सफर जून, 2013 में अपने अंत पर पहुंचा, जब उन्होंने मोदी को रोकने की नाकाम कोशिश की.

जोशी ने 1991 में निकाली थी एकता यात्रा

वर्ष 1991 में आडवाणी के बाद जोशी भाजपा के अध्यक्ष बने. उन्हें भी युद्धातुर राष्ट्रवाद से प्रेम है और उन्होंने भी एकता यात्रा जैसी यात्राएं निकालीं. आज जब पूरा देश आजादी के 72वें साल के जश्न के दूसरे दिन यानी 16 अगस्त को भाजपा की पहली पंक्ति के नेताओं के प्रमुख नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

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