पंचतत्व में विलीन हुए अटल…
।। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ।। अटल जी अब नहीं रहे. मन नहीं मानता. अटल जी, मेरी आंखों के सामने हैं, स्थिर हैं. जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, जो स्नेह से, मुस्कराते हुए मुझे अंकवार में भर लेते थे, वे स्थिर हैं. अटल जी की ये स्थिरता मुझे झकझोर रही है, अस्थिर कर […]
।। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ।।
अटल जी अब नहीं रहे. मन नहीं मानता. अटल जी, मेरी आंखों के सामने हैं, स्थिर हैं. जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, जो स्नेह से, मुस्कराते हुए मुझे अंकवार में भर लेते थे, वे स्थिर हैं. अटल जी की ये स्थिरता मुझे झकझोर रही है, अस्थिर कर रही है.
एक जलन-सी है आंखों में, कुछ कहना है, बहुत कुछ कहना है, लेकिन कह नहीं पा रहा. मैं खुद को बार-बार यकीन दिला रहा हूं कि अटलजी अब नहीं हैं, लेकिन ये विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहा हूं. क्या अटलजी वाकई नहीं हैं? नहीं. मैं उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहा हूं, कैसे कह दूं, कैसे मान लूं, वे अब नहीं हैं.
वे पंचतत्व हैं. वे आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सबमें व्याप्त हैं, वे अटल हैं, वे अब भी हैं. जब उनसे पहली बार मिला था, उसकी स्मृति ऐसी है जैसे कल ही की बात हो.
इतने बड़े नेता, इतने बड़े विद्वान. लगता था जैसे शीशे के उस पार की दुनिया से निकल कर कोई सामने आ गया है. जिसका इतना नाम सुना था, जिसको इतना पढ़ा था, जिससे बिना मिले, इतना कुछ सीखा था, वे मेरे सामने था. जब पहली बार मुंह से मेरा नाम निकला तो लगा, पाने के लिए बस इतना ही बहुत है. बहुत दिनों तक मेरा नाम लेती हुई उनकी वह आवाज मेरे कानों से टकराती रही. मैं कैसे मान लूं कि वह आवाज अब चली गयी है. कभी सोचा नहीं था, कि अटल जी के बारे में ऐसा लिखने के लिए कलम उठानी पड़ेगी. देश और दुनिया अटल जी को एक स्टेट्समैन, धाराप्रवाह वक्ता, संवेदनशील कवि, विचारवान लेखक, धारदार पत्रकार और विजनरी जननेता के तौर पर जानती है. लेकिन मेरे लिए उनका स्थान इससे भी ऊपर था. सिर्फ इसलिए नहीं कि मुझे उनके साथ बरसों तक काम करने का मौका मिला, बल्कि मेरे जीवन, मेरी सोच, मेरे आदर्शों-मूल्यों पर जो छाप उन्होंने छोड़ी, जो विश्वास उन्होंने मुझ पर किया, उसने मुझे गढ़ा है, हर स्थिति में अटल रहना सिखाया है. हमारे देश में अनेक ऋषि, मुनि, संत आत्माओं ने जन्म लिया है. देश की आजादी से लेकर आज तक की विकास यात्रा के लिए भी असंख्य लोगों ने अपना जीवन समर्पित किया है. लेकिन स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र की रक्षा और 21वीं सदी के सशक्त, सुरक्षित भारत के लिए अटलजी ने जो किया, वह अभूतपूर्व है.
उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था – बाकी सब का कोई महत्व नहीं. इंडिया फर्स्ट – भारत प्रथम, ये मंत्र वाक्य उनका जीवन ध्येय था. पोखरण देश के लिए जरूरी था तो चिंता नहीं की प्रतिबंधों और आलोचनाअों की, क्योंकि देश प्रथम था. सुपर कंप्यूटर नहीं मिले, क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिले तो परवाह नहीं, हम खुद बनायेंगे, हम खुद अपने दम पर अपनी प्रतिभा और वैज्ञानिक कुशलता के बल पर असंभव दिखनेवाला कार्य संभव कर दिखायेंगे. और ऐसा किया भी. दुनिया को चकित किया. सिर्फ एक ताकत उनके भीतर काम करती थी – देश प्रथम की जिद. काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत, हिम्मत और चुनौतियों के बादलों में विजय का सूरज उगाने का चमत्कार उनके सीने में था तो इसलिए क्योंकि वह सीना देश प्रथम के लिए धड़कता था. इसलिए हार और जीत उनके मन पर असर नहीं करती थी. सरकार बनी तो भी, सरकार एक वोट से गिरा दी गयी तो भी, उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगनभेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतनेवाला भी हार मान बैठे.
अटल कभी लीक पर नहीं चले. उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में नये रास्ते बनाये और तय किये. ‘आंधियों में भी दीये जलाने’ की क्षमता उनमें थी. पूरी बेबाकी से वे जो कुछ भी बोलते थे, सीधा जनमानस के हृदय में उतर जाता था. अपनी बात को कैसे रखना है, कितना कहना है और कितना अनकहा छोड़ देना है; इसमें उन्हें महारत हासिल थी. राष्ट्र की जो उन्होंने सेवा की, विश्व में मां भारती के मान सम्मान को उन्होंने जो बुलंदी दी, इसके लिए उन्हें अनेक सम्मान भी मिले. देशवासियों ने उन्हें भारत रत्न देकर अपना मान भी बढ़ाया. लेकिन वे किसी भी विशेषण, किसी भी सम्मान से ऊपर थे. जीवन कैसे जीया जाये, राष्ट्र के काम कैसे आया जाये, यह उन्होंने अपने जीवन से दूसरों को सिखाया. वे कहते थे, हम केवल अपने लिए ना जीयें, औरों के लिए भी जीयें… ‘‘हम राष्ट्र के लिए अधिकाधिक त्याग करें. अगर भारत की दशा दयनीय है तो दुनिया में हमारा सम्मान नहीं हो सकता. किंतु यदि हम सभी दृष्टियों से सुसंपन्न हैं तो दुनिया हमारा सम्मान करेगी’’.
देश के गरीब, वंचित, शोषित के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए वे जीवनभर प्रयास करते रहे. वे कहते थे ‘‘गरीबी, दरिद्रता गरिमा का विषय नहीं है, बल्कि यह विवशता है, मजबूरी है और विवशता का नाम संतोष नहीं हो सकता’’. करोड़ों देशवासियों को इस विवशता से बाहर निकालने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किये. गरीब को अधिकार दिलाने के लिए देश में आधार जैसी व्यवस्था, प्रक्रियाओं का ज्यादा से ज्यादा सरलीकरण, हर गांव तक सड़क, स्वर्णिम चतुर्भुज, देश में विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर, राष्ट्र निर्माण के उनके संकल्पों से जुड़ा था.
आज भारत जिस टेक्नोलॉजी के शिखर पर खड़ा है उसकी आधारशिला अटलजी ने ही रखी थी. वे अपने समय से बहुत दूर तक देखते थे – स्वप्न दृष्टा थे, लेकिन कर्म वीर भी थे. कवि हृदय, भावुक मन के थे तो पराक्रमी सैनिक मन वाले भी थे. उन्होंने विदेश की यात्राएं कीं. जहां-जहां भी गये, स्थायी मित्र बनाये और भारत के हितों की स्थायी आधारशीला रखते गये. वे भारत की विजय और विकास के स्वर थे.
अटल जी का प्रखर राष्ट्रवाद और राष्ट्र के लिए समर्पण करोड़ों देशवासियों को हमेशा से प्रेरित करता रहा है. राष्ट्रवाद उनके लिए सिर्फ एक नारा नहीं था बल्कि जीवन शैली थी. वे देश को सिर्फ एक भूखंड, जमीन का टुकड़ा भर नहीं मानते थे, बल्कि एक जीवंत, संवेदनशील इकाई के रूप में देखते थे.
‘‘भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है.’’ यह सिर्फ भाव नहीं, बल्कि उनका संकल्प था, जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन न्योछावर कर दिया. दशकों का सार्वजनिक जीवन उन्होंने अपनी इसी सोच को जीने में,धरातल पर उतारने में लगा दिया. आपातकाल ने हमारे लोकतंत्र पर जो दाग लगाया था उसको मिटाने के लिए अटल जी के प्रयास को हमेशा याद रखा जायेगा.
राष्ट्रभक्ति की भावना, जनसेवा की प्रेरणा उनके नाम के ही अनकूल अटल रही. भारत उनके मन में रहा, भारतीयता तन में. उन्होंने देश की जनता को ही अपना आराध्य माना. भारत के कण-कण, कंकर-कंकर, भारत की बूंद-बूंद को, पवित्र और पूजनीय माना.
जितना सम्मान, जितनी ऊंचाई अटल जी को मिली, उतना ही अधिक व जमीन से जुड़ते गये. अपनी सफलता को कभी भी उन्होंने अपने मस्तिष्क पर प्रभावी नहीं होने दिया. प्रभु से यश, कीर्ति की कामनना अनेक व्यक्ति करते हैं, लेकिन ये अटल जी ही थे जिन्होंने कहा,
‘‘हे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई मत देना.
गैरों को गले ना लगा सकूं, इतनी रुखाई कभी मत देना.’’ अपने देशवासियों से इतनी सहजता और सरलता से जुड़े रहने की यह कामना ही उनको सामाजिक जीवन के एक अलग पायदान पर खड़ा करती है.
वे पीड़ा सहते थे, वेदना को चुपचाप भीतर समाये रहते थे, पर सबको अमृत देते रहे जीभन भर. जब उन्हें कष्ट हुआ तो कहने लगे – ‘‘देह धारण को दंड है, सब काहू को होये, ज्ञानी भुगते ज्ञान से मूरख भुगते रोये.’’ उन्होंने ज्ञान मार्ग से अत्यंत गहरी वेदनाएं भी सहन कीं और वीतरागी भाव से विदा ले गये.
यदि भारत उनके रोम-रोम में था तो विश्व की वेदना उनके मर्म को भेदती थी. इसी वजह से हिरोशिमा जैसी कविताओं का जन्म हुआ. वे विश्व नायक थे. मां भारती के सच्चे वैश्विक नायक. भारत की सीमाओं के परे भारत की कीर्ति और करुणा का संदेश स्थापित करनेवाले आधुनिक बुद्ध. कुछ वर्ष पहले लोकसभा में जब उन्हें वर्ष के सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से सम्मानित किया गया था तब उन्होंने कहा था, ‘‘यह देश बड़ा अद्भुत है, अनूठा है. किसी भी पत्थर को सिंदूर लगा कर अभिवादन किया जा रहा है, अभिनंदन किया जा सकता है.’’.
अपने पुरुषार्थ को, अपनी कर्तव्यनिष्ठा को राष्ट्र के लिए समर्पित करना उनके व्यक्तित्व की महानता को प्रतिबिंबित करता है. यही सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए उनका सबसे बड़ा और प्रखर संदेश है. देश के साधनों, संसाधनों पर पूरा भरोसा करते हुए, हमें अब अटल जी के सपनों को पूरा करना है, उनके सपनों का भारत बनाना है. नये भारत का यही संकल्प, यही भाव लिये मैं अपनी तरफ से और सवा सौ करोड़ देशवासियों की तरफ से अटल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, उन्हें नमन करता हूं.