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#AtalBihariVajpayee : अटलजी की ऋणी रहेगी हमारी राजनीति

रामबहादुर राय , वरिष्ठ पत्रकार अटल जी का भारतीय राजनीति में बहुत बड़ा योगदान है. साल 1998 में पहली बार उनके ही नेतृत्व में केंद्र में वास्तव में एक गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी, जब वह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे. पहली बार 1996 में वह प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन तब उसे केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकार […]

रामबहादुर राय , वरिष्ठ पत्रकार

अटल जी का भारतीय राजनीति में बहुत बड़ा योगदान है. साल 1998 में पहली बार उनके ही नेतृत्व में केंद्र में वास्तव में एक गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी, जब वह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे. पहली बार 1996 में वह प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन तब उसे केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकार नहीं कहा जा सकता, क्योंकि तब राष्ट्रपति जी ने एक सिद्धांत के आधार पर सरकार बनाने का न्योता दिया था और लोगों ने अटल जी को स्वीकार किया. साल 1998 से पहले भी केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थीं, लेकिन अपने मूल चरित्र में वे गैर-कांग्रेसी सरकारें नहीं थीं. मोरारजी देसाई को गैर-कांग्रेसी नहीं कहा जा सकता. वीपी सिंह को भी इसी श्रेणी में रख सकते हैं. लेकिन, अटल जी के नेतृत्व में 1998 में जो सरकार बनी, वही केंद्र में पहली वास्तविक गैर-कांग्रेसी सरकार थी. इसका श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी जी को ही जाता है. इस तरह से भारतीय राजनीति दो ध्रुवों पर खड़ी हुई- कांग्रेस और भाजपा. भारतीय राजनीति की यह सबसे बड़ी घटना थी, क्योंकि आजादी के बाद से यही माना जाता रहा कि केंद्र में कांग्रेस का कोई विकल्प है ही नहीं. अटलजी ने इस विकल्पहीनता को तोड़ा और बताया कि- ‘विकल्प’ है. उन्होंने 24 दलों के गंठबंधन वाली एनडीए सरकार को चलाया और किसी को कोई शिकायत नहीं हुई.

भाजपा भारतीय राजनीति में जिस विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है, उसके बारे में लोगों ने जो भ्रम पैदा किया था और खासकर कम्युनिस्टों ने जो गलत धारणाएं फैलायी थीं, अटलजी की सरकार बनने के बाद वह सब टूट गयीं. अटलजी ने अपने शासनकाल में अपने आचरण से और नीतियों से भाजपा पर लगे उन तीन मुख्य आरोपों को पूरी तरह से गलत साबित कर दिया कि भाजपा एक सांप्रदायिक पार्टी है, मुसलमानों के खिलाफ है और इसकी आर्थिक नीतियां गरीबों के हक में नहीं हैं. अटल जी कहा करते थे कि इस देश में आजादी के पहले जिस तरह से मुसलमान रहते आये थे, ठीक उसी तरह आगे भी वे रहेंगे, उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा. यही अटलजी का सबके लिए समान सोच वाला व्यक्तित्व था.

अटलजी की नेतृत्व क्षमता का आयाम ऐसा था, जो उन्हें बाकी बड़े नेताओं से अलग बनाती थी. अटलजी न सिर्फ सहयोगियों को साथ लेकर चलते थे, बल्कि विपक्षी नेताओं का भी सम्मान करते थे. अटलजी के पूरे राजनीतिक जीवन में कोई एक ऐसा अवसर खोजना मुश्किल है, जिसमें अटलजी ने अपने किसी सहयोगी को नाराज किया हो. जिस पृष्ठभूमि में भारतीय जनसंघ भारतीय जनता पार्टी बनी और काम करती रही है, उसको अगर कोई ठीक से पहचान ले, तो लंबे समय तक राजनीति में बने रहने में कोई अड़चन नहीं आयेगी. अटलजी ने यह जान लिया था, लेकिन यह सूझ-बूझ और समझ दूसरे नेताओं में नहीं थी. यही वजह है कि बलराज मधोक और अटलजी के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता थी, लेकिन अटलजी बने रह गये और मधोक बाहर हो गये.

हर राजनीतिक दल का अपना एक स्वभाव होता है. अटलजी ने अपनी वैचारिक शक्ति के चलते भाजपा का स्वभाव समझ लिया था और उसके अनुरूप उन्होंने अपने को ढाल लिया था. यह चीज उनके निर्णयों में दिखायी पड़ता था. अटलजी की यह नेतृत्व क्षमता ही थी कि उन्होंने पार्टी के भीतर अपना कोई धड़ा या गुट नहीं बनाया, जैसा कि कुछ पार्टियों के नेता ऐसा करते हैं और पार्टियां कई धड़ों में बंटी नजर आती हैं. अयोध्या आंदोलन को लेकर भाजपा ने जो भी निर्णय किया, उससे अटल जी असहमत थे. उस वक्त दो ही लोग असहमत थे- अटल जी और जसवंत सिंह. जसवंत सिंह ने तो अपनी असहमति खुलकर जतायी, लेकिन अटलजी की खूबी यह थी कि उन्होंने अपनी असहमति सार्वजनिक रूप से जाहिर नहीं होने दी. हां, व्यवहार में अटल जी अयोध्या आंदोलन के किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए. लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा में कहीं नहीं दिखे. लेकिन, इससे भाजपा में जो उनका स्थान था, वह कम नहीं हुआ, बल्कि बढ़ा ही. कह सकते हैं कि एक तरह से अटलजी ने अपनी अपरिहार्यता बनाये रखी. इसी का परिणाम था कि नवंबर 1995 में जब भारतीय जनता पार्टी का मुंबई में अधिवेशन हुआ, तब लालकृष्ण आडवाणी को यह कहना पड़ा कि अगर भविष्य में भाजपा की सरकार बनती है, तो अटलजी ही प्रधानमंत्री बनेंगे. इसके बाद अटलजी ने आडवाणी जी से पूछा भी कि आपने ऐसी घोषणा क्यों की? आडवाणी ने जवाब दिया कि भले ही आंदोलन के कारण भाजपा में मेरा स्थान ऊंचा हो गया है, लेकिन जनमानस में अाप ही छाये हुए हैं और सरकारें जनमानस के लिए ही बनती हैं. यही अटलजी के व्यक्तित्व का आयाम था, जो उन्हें बाकी सभी भाजपा नेताओं से ऊंचा बनाता है. जाहिर है, अटल जी जैसा जन नेता ही एक कुशल राजनीतिक नेतृत्व की क्षमता रखता है.

गुजरे समय के व्यक्तित्व से खाली हुए स्थान को आनेवाले समय का कोई व्यक्तित्व पूरा नहीं कर सकता. देशकाल में हर समय और हर स्थान की अपनी अहमियत होती है. जब भाजपा को अटलजी के नेतृत्व की जरूरत थी, तब अटलजी दे रहे थे. उनके मार्गदर्शन में जितना भाजपा को फायदा हुआ, वह बेहद शानदार रहा. अब भी उनके दिखाये रास्ते पर ही ही भाजपा आगे बढ़ रही है. निश्चित रूप से भारतीय राजनीति में अटलजी जैसा व्यक्तित्व खोज पाना मुश्किल है. भारतीय राजनीति हमेशा उनकी ऋणी रहेगी और उनका राजनीतिक सिद्धांत हमें हमेशा रास्ता दिखाता रहेगा. उनके अवसान से मैं दुखी और आहत हूं. मेरी विनम्र श्रद्धांजलि!
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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