#Vajpayee: हमेशा सक्रिय रही वाजपेयी की विदेश नीति
शशांक, पूर्व विदेश सचिव अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति में एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने यह कोशिश की कि विदेश नीति के मामले में पक्ष और विपक्ष के बीच कोई बड़ा मतभेद न हो. यही चीज आज की राजनीति में गायब है और अब तो पक्ष-विपक्ष के बीच हर स्तर पर भारी मतभेद है. उनकी […]
परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका के साथ अन्य कई देशों ने भारत पर कुछ प्रतिबंध लगाये थे. तब वाजपेयी की पहली प्राथमिकता थी कि ये प्रतिबंध हटें. इसके लिए जरूरी था कि पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते सुधारे जाएं. इस नीति के तहत मानना यह था कि परमाणु परीक्षण सिर्फ अपनी सामरिक शक्ति बढ़ाने के लिए और ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए है, किसी के साथ युद्ध करने के लिए नहीं है. और इसी नीति पर चलकर वाजपेयी ने पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को बेहतर से बेहतर बनाते चले गये. यह उनकी विदेश नीति की बड़ी उपलब्धियों में थी. इसका नतीजा यह हुआ कि सिक्किम को चीन ने माना कि यह भारत का हिस्सा है, जबकि इसके पहले वह सिक्कीम को भारत से अलग मानता था. अरुणाचल मसले पर भी चीन मान गया था. दरअसल, वाजपेयी के पास बात करने का बेहतरीन हुनर था, इसलिए उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर बात करने पर ज्यादा बल दिया, जबकि वह पहले सचिव स्तर पर होती थी. अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका के साथ भारत के रिश्तों में नया आयाम गढ़ने में वाजपेयी की महत्वपूर्ण भूमिका को हमेशा याद किया जायेगा.
बात करने की उनकी लगातार कोशिशों ने ही देशों के बीच व्यापार, वाणिज्य, सांस्कृतिक आदान-प्रदान आदि को बढ़ावा दिया, जिसके चलते सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं सुधरीं और यह डर खत्म हो गया कि भारत की तरफ से परमाणु हमले हो सकते हैं. हालांकि, संबंध सुधारने के इस क्रम में कारगिल में हमें झटका लगा, लेकिन हमने पाकिस्तान को करारा जवाब देकर फिर से आगे बढ़ गये. फिर तो विदेशों में भारत की यह छवि बनी कि भारत एक सहनशील देश है और यह वाजपेयी की कश्मीर नीति, पाकिस्तान नीति, चीन नीति आिद के चलते ही संभव हो सका.
भारत की हितों की रक्षा करनेवाले वाजपेयी ने कश्मीर में ‘कश्मीरियत, इंसानियत, जम्हूरियत’ का नारा दिया था. यह बहुत शानदार पहल थी, कश्मीर मसले को हल करने की कोशिश में. यह बात अलग है कि बाद के वर्षों में स्थितियां वैसी नहीं रह गयीं. दुनिया के जिस भी देश में भारतीय मूल के लोग हैं, उन देशों को उन्होंने अपने साथ जोड़ा. भारतीय मूल के लोगों के लिए वह दोहरी नागरिकता चाहते थे. उनका मानना था कि इससे भारत की सांस्कृतिक विरासत को संभालने-संवारने में मदद मिलेगी और हम पूरी दुनिया में अपनी छवि बेहतर बना सकेंगे. इसका बहुत फायदा हुआ और आर्थिक के साथ सांस्कृतिक संबंध सुधरे.