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महानायक थे अटल बिहारी वाजपेयी

सार्वजनिक जीवन में मेरा सक्रिय प्रवेश 12वीं लाेकसभा में भारतीय जनता पार्टी के एक प्रत्याशी के रूप में हुआ था. जमशेदपुर लाेकसभा क्षेत्र से जीतकर लाेकसभा पहुंची. 1998 से 2004 तक हमारा संसदीय सफरनामा था, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी काे राष्ट्र के एक महानायक के रूप में देखा. उन्होंने भारत ही नहीं वरन विश्व काे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 17, 2018 2:33 PM

सार्वजनिक जीवन में मेरा सक्रिय प्रवेश 12वीं लाेकसभा में भारतीय जनता पार्टी के एक प्रत्याशी के रूप में हुआ था. जमशेदपुर लाेकसभा क्षेत्र से जीतकर लाेकसभा पहुंची. 1998 से 2004 तक हमारा संसदीय सफरनामा था, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी काे राष्ट्र के एक महानायक के रूप में देखा.

उन्होंने भारत ही नहीं वरन विश्व काे अपनी अद्वितीय मेधा संकल्प एवं कुशलता से यह प्रमाणित किया था कि वह राष्ट्र के महानायक हैं. मेरे पति (शैलेंद्र महताे) जिस झारखंड आंदाेलन से जुड़े थे, उसमें एक उपेक्षित वर्ग, शाेषित क्षेत्र की व्यथा-पीड़ा एवं आक्राेश का भाव था, जब मैं ब्याह कर जमशेदपुर आयी आैर झारखंड की वन व खनिज संपदा के बाहुल्य के बावजूद भी गरीबी, अशिक्षा, बेकारी आैर बीमारी देखी ताे मेरे मन में भी जनता की समस्याआें से जुड़ने एवं उनके निराकरण हेतु प्रयास करने की प्रेरणा जगी.

देश की राष्ट्रीय पार्टियां झारखंड आंदाेलन के प्रति उदासीन एवं संवेदनहीन रही. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने क्षेत्र की जनता की आशाआें, आकांक्षाआें, अपेक्षाआें काे समझा. विकास एवं प्रशस्ति के निमित झारखंड अलग राज्य की मांग काे प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में झारखंड राज्य के नाम से मुहर लगी. वह दिन मेरे जीवन का सबसे आनंंदमय दिन था, जिस दिन लाेकसभा में गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने अलग झारखंड राज्य का बिल पेश किया था.अटलजी हमेशा से प्रशासनिक दृष्टिकाेण से बेहतर विकास, उत्थान एवं उत्कर्ष हेतु छाेटे राज्याें के गठन के पक्षधर थे.

यहां तक कुछ मामलाें काे सांप्रदायिक रूप देने तक प्रयास किया गया, किंतु अटलजी के नेतृत्व की क्षमता पर आस्था, विश्वास एवं श्रद्धा रखने वाले अल्पसंख्यकाें काे भड़काने में वह नाकामयाब रहे. सभी के लिए न्याय आैर किसी का तुष्टिकरण नहीं, यह हमारी मान्यता है आैर इसी के तहत राष्ट्र में विभिन्न सांप्रदायाें के बीच सदभाव, शांति एवं सहयाेग काे प्राेत्साहन मिलेगा, यह अटलजी का उदगार था. समूचा हिंदुस्तान आज एक प्रश्न का उत्तर चाहता है. 13 माह के छाेटे से कालखंड में चली केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार काे जिस प्रकार छल, कपट धाेखे का नंगा नृत्य करते हुए मात्र एक वाेट द्वारा विश्वासमत में परास्त कर भ्रम एवं भ्रांति पैदा की गयी, आखिर उसकी आवश्यकता क्याें पड़ी? मैं अटलजी के शब्दाें काे उद्घृत करना चाहती हूं.

हम पड़ाव काे समझे मंजिल

लक्ष्य हुआ आंखाें से आेझल,

वर्तमान के माेहजाल में,

आने वाले कल न भुलायें

आआे मिलकर दीया जलायें

आभा महताे, पूर्व सांसद, जमशेदपुर लाेकसभा

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