बलरामपुर में गुरुवार से नहीं जला चूल्हा-चौका, 1957 में इसी सरजमीं से पहला चुनाव जीते थे अटल…
बलरामपुर : देश के राजनीतिक क्षितिज पर करीब छह दशकों तक धूमकेतु के समान चमकने वाले दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का बलरामपुर से गहरा नाता रहा है. आलम यह है कि इस गांव में गुरुवार से लोगों के घर चूल्हा नहीं जला है. हर घर में गम का माहौल है. इसी सरजमीं से […]
बलरामपुर : देश के राजनीतिक क्षितिज पर करीब छह दशकों तक धूमकेतु के समान चमकने वाले दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का बलरामपुर से गहरा नाता रहा है. आलम यह है कि इस गांव में गुरुवार से लोगों के घर चूल्हा नहीं जला है. हर घर में गम का माहौल है. इसी सरजमीं से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले वाजपेयी की यादें यहां के बाशिंदों के जहन में अब भी ताजा हैं.
वाजपेयी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत बलरामपुर से की थी और वर्ष 1957 में पहली बार यहीं से सांसद चुने गये थे. वर्ष 1962 के लोकसभा चुनाव में पराजित होने के बाद 1967 के चुनाव में वह फिर चुनाव जीते. पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के देहांत पर बलरामपुर की भी जनता गम में डूबी है और हर तरफ उन्हीं की चर्चा हो रही है.
वाजपेयी के सहयोगी और पूर्व में चुनाव प्रचार के दौरान उनके कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले शिव रत्न लाल गुप्ता बताते हैं कि वाजपेयी ने दोस्ती के बीच कभी धर्म, जाति, ऊंच, नीच और वोटों की गणित को बाधा नहीं बनने दिया. गुप्ता एक किस्सा बताते हैं कि वर्ष 1967 में लोकसभा और उत्तर प्रदेश विधानसभा दोनों का चुनाव एक साथ हो रहा था. वाजपेयी बलरामपुर से जनसंघ के लोकसभा प्रत्याशी और सूरज लाल गुप्ता विधानसभा उम्मीदवार थे.
महदेया के तालुकेदार के घर अचानक सदल-बल पहुंचे थे अटल
चुनाव प्रचार के दौरान वह उतरौला विधानसभा क्षेत्र के महदेया तालुकेदार हैदर अली के घर अपने साथियों सहित पहुंच गये. अपने घर पर वाजपेयी को देखकर गदगद अली खाने-पीने का इंतजाम करने लगे. उन्होंने बताया कि महदेया गांव में ब्राह्मणों तथा अन्य अगड़ी जातियों की खासी तादाद थी. हम लोगों को लगा कि मुस्लिम के घर खाना खाने पर जनसंघ का वोट खिसक जायेगा, जिससे दोनों प्रत्याशियों को नुकसान होगा.
मुसलमान के घर खाने के बाद वाजपेयी ने कहा था, जो खिसकना था वो पेट में खिसक गया
सूरज लाल गुप्ता के साथ जाकर हम लोगों ने वाजपेयी के पास जाकर चुपके से कहा कि आप ये क्या कर रहे हैं? मुसलमान के घर जलपान या भोजन करने की बात लोगों को पता लगी, तो वोट खिसक जायेगा. यह सुनकर वाजपेयी ठहाका मारकर हंस पड़े और बोले कि जो खिसकना था, वह पेट में खिसक गया. अब वोट खिसके या फिर रहे.
खाने से मुसलमान थोड़ी बन जाऊंगा
गुप्ता ने बताया कि वाजपेयी ने बेझिझक होकर कहा कि हैदर अली के घर खाने से मैं मुसलमान थोड़े ही बन जाऊंगा. बाद में यह संयोग रहा कि वाजपेयी चुनाव जीत गये, जबकि सूरज लाल गुप्ता विधायक का चुनाव हार गये. वाजपेयी के खास सहयोगियों में हसन दाऊद का नाम प्रमुख माना जाता है. वह उनके खास सिपहसालार थे.
1957 के चुनाव में मोतीपुर के हसन दाऊद से हुई थी मुलाकात
वर्ष 1957 में जब वाजपेयी पचपेड़वा क्षेत्र में चुनाव प्रचार के लिए निकले, तो मोतीपुर गांव में हसन दाऊद से मुलाकात हुई. दाऊद वाजपेयी से प्रभावित होकर बिना कोई परवाह किये उनके साथ निकल पड़े. दाऊद जनसंघ का दीपक बना गेरुआ झंडा लेकर आगे-आगे चलते और अटल जी का गुणगान करते हुए दामन फैलाकर लोगों से वोट मांगते.
विदेश मंत्री बनने के बावजूद हसन को नहीं भूले थे वाजपेयी
वाजपेयी के सहयोगी रहे पूर्व विघायक सुखदेव प्रसाद बताते हैं कि वाजपेयी जब विदेश मंत्री बने, तो वे लोग उनसे मिलने दिल्ली पहुंचे. उनमें दाऊद भी शामिल थे. वाजपेयी के घर पहुंचने पर सुरक्षाकर्मियों ने हम लोगों को रोक दिया. वाजपेयी से मिलने के लिए बेचैन हो रहे दाऊद जोर-जोर से चिल्लाने लगे. वाजपेयी अपने आवास के बाहरी कमरे में बैठे थे. दाऊद की आवाज पहचान कर बाहर निकल आये और सुरक्षाकर्मियों से आने देने के लिए कहा.
हसन दाऊद को देख आंखें हो गयी थीं नम
उन्होंने अंदर आते ही अटल जी ने दाऊद को गले लगा लिया. दोनों का आपसी प्रेम और स्नेह देखकर सबकी आंखे भर आयीं. प्रसाद ने बताया कि वाजपेयी को कुछ देर बाद हवाई जहाज से विदेश दौरे पर जाना था. उन्होंने दाऊद से कहा कि मैं विदेश दौरे पर जा रहा हूं. तुम से बहुत बातें करनी हैं. इसलिए तुम मेरे साथ हवाई अड्डे तक चलो. दाऊद का परिवार भी वाजपेयी का भक्त है. उनके दुनिया से अलविदा कहने की जानकारी मिलने पर पूरा परिवार शोक में डूबा हुआ है. गुरुवार से दाऊद के घर चूल्हा नहीं जला है.