बांझपन : सिर्फ महिला नहीं जिम्मेवार

वर्तमान में डायबिटीज, हाइ बीपी और हृदय रोगों में इजाफा हुआ है. ये रोग अक्सर बांझपन का मुख्य कारण बनते हैं. इनसे नि:संतान दंपतियों की संख्या भी काफी बढ़ी है. 1981 से 2001 तक बांझपन में 50 फीसदी की वृद्धि हुई है. इसके अलावा आज की व्यस्त जीवनशैली के कारण भी गर्भधारण में समस्याएं आ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 4, 2014 11:50 AM

वर्तमान में डायबिटीज, हाइ बीपी और हृदय रोगों में इजाफा हुआ है. ये रोग अक्सर बांझपन का मुख्य कारण बनते हैं. इनसे नि:संतान दंपतियों की संख्या भी काफी बढ़ी है. 1981 से 2001 तक बांझपन में 50 फीसदी की वृद्धि हुई है. इसके अलावा आज की व्यस्त जीवनशैली के कारण भी गर्भधारण में समस्याएं आ रही हैं.

आजकल लगभग 10-15 फीसदी शादीशुदा जोड़े बच्‍चा जन्म देने में कठिनाई का अनुभव करते हैं. यदि एक साल के अंतराल में स्वस्थ दंपति को गर्भाधान में कठिनाई होती है या महिला गर्भवती नहीं होती है, तो उन्हें फौरन इलाज की आवश्यकता है.

भ्रांतियों से बचें
आम तौर पर भारतीय समाज में एक भ्रांति है कि बांझपन के लिए सिर्फ महिला ही जिम्मेवार होती है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता है. सिर्फ 30 फीसदी जोड़ों में महिला, 30 फीसदी में पुरुष, 10 फीसदी में दोनों बांझपन के लिए जिम्मेवार होते हैं. 20 फीसदी में यह अन्य कारणों से हो सकता है.

कई बीमारियां हैं कारण
महिलाओं में बांझपन के प्रमुख कारण हैं- फेलोपियन ट्यूब का ब्लॉक होना, गर्भाशय का टीबी, फायब्रॉइड, एंडोमेट्रीयोसिस आदि का होना. इंडोक्राइन बीमारियां जैसे- थायरॉयड की बीमारी, पीसीओडी, मधुमेह आदि भी आजकल काफी महिलाओं में बांझपन का कारण हैं. कभी-कभी महिला के मस्तिष्क में ट्यूमर होने से भी प्रोलैक्टिन हार्मोन की शरीर में अधिकता हो जाती है, जिससे मासिक धर्म ही आना बंद हो जाता है और वे बांझपन की शिकार हो जाती हैं. बढ़ता प्रदूषण, तनाव, हार्मोनल असंतुलन आदि से पुरुष बांझपन भी बढ़ा है. पुरुषों में शुक्राणुओं की कमी अब सामान्य रोग होता जा रहा है. शराब या तंबाकू का सेवन, मधुमेह, थायरॉयड तथा मानसिक तनाव से भी पुरुष संतान पैदा नहीं कर पा रहे हैं.

कई तरीकों से होता है उपचार
इस समस्या के बढ़ने के कारण ही बांझपन निवारण केंद्रों की संख्या में भी काफी इजाफा हुआ है. महिलाओं में आवश्यकतानुसार लेप्रोस्कोपी, हिस्टेरोस्कोपी आदि से फेलोपियन ट्यूब, ओवरी तथा गर्भाशय की बीमारियों को ठीक किया जाता है. इसी प्रकार से शुक्राणुओं से संबंधित समस्याओं को हार्मोन का असंतुलन सुधारने तथा अन्य दवाइयों के सेवन से ठीक किया जाता है. अब नि:संतान दंपतियों के लिए अनेक इलाज उपलब्ध हैं, जैसे- ओव्यूलेशन इंडक्शन तथा आइयूआइ. एजूस्पीमिया से ग्रसित पुरुषों में डोनर शुक्राणु से आइयूआइ किया जा सकता है. अज्ञात कारणों में आइवीएफ -इटी से इलाज संभव है. जिन महिलाओं में अंडे की कमी है, उनमें डोनर उसाइट से गर्भाधान संभव है.

डॉ कल्पना सिंह

असिस्टेंट प्रोफेसर, स्त्री एवं बांझ रोग विशेषज्ञ, आइजीआइएमएस, पटना

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