पैसे के लिए राजनीति में आ रहे लोग

-पहली लोकसभा के सदस्य महाराजा कमल सिंह वर्तमान राजनीति से हैं आहत- -अजय कुमार- अगले सितंबर महीने में अपनी उम्र के 88 वें पायदान पर पहुंचने वाले कमल सिंह कहते हैं कि तब की राजनीति के उसूल थे. लोग समाज को सामने रख कर कार्य करते थे और समाज भी ऐसे लोगों को प्रतिष्ठा देता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 7, 2014 5:27 AM

-पहली लोकसभा के सदस्य महाराजा कमल सिंह वर्तमान राजनीति से हैं आहत-

-अजय कुमार-

अगले सितंबर महीने में अपनी उम्र के 88 वें पायदान पर पहुंचने वाले कमल सिंह कहते हैं कि तब की राजनीति के उसूल थे. लोग समाज को सामने रख कर कार्य करते थे और समाज भी ऐसे लोगों को प्रतिष्ठा देता था. उन्हें समाज से मान्यता मिलती थी. अब राजनीति बदल गयी है. लोग बदल गये हैं और समाज भी. इसे देख कर तकलीफ होती है. समय के साथ-साथ बदलाव नितांत जरूरी है. लेकिन हम किस बदलाव की ओर जा रहे हैं? यह देखना महत्वपूर्ण है. लोग कहते हैं कि बदलाव प्रकृति का नियम है. पर मेरा कहना है, भई यह बदलाव किस तरह का हो रहा है. क्या नैतिक मूल्यों की गिरावट को आप बदलाव कहेंगे?

मुझे याद आता है कि जब डुमरांव राज के हाई स्कूल में राजेंद्र बाबू के भाई पढ़ाते थे. जब कभी वे बीमार हो जाते या किसी कारण से वे स्कूल नहीं आते थे, तो राजेंद्र बाबू स्कूल में पढ़ाने चले आते थे. तब के लोगों के सोचने का तरीका ऐसा हुआ करता था. अब आप महीनों स्कूल-कॉलेज से गायब रहें, कोई पूछनेवाला भी नहीं है. और बातें बड़ी-बड़ी होती हैं. महाराजा कमल सिंह कहते हैं: लोकसभा का तीसरा चुनाव 1962 में हो रहा था. उसमें मैं भी उम्मीदवार था. वोट के लिए हम लोगों से संपर्क कर रहे थे. तभी पता चला कि चुनाव जीतने के लिए कुछ लोग पैसे बांट रहे हैं.

लोगों की अपेक्षा थी कि मैं भी पैसे दूं. हमने किसी को एक पाई भी नहीं दिया. करीब पंद्रह सौ वोटों से चुनाव हार गया था. अब देखिए कि पूरी व्यवस्था कहां पहुंच गयी है. चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों के चुनाव खर्च के लिए जो सीमा निर्धारित की है, उससे कई गुना ज्यादा पैसे खर्चे गये. इसका हिसाब कौन देगा? वह पैसा कहां से आया और इतना पैसा लगाने का मकसद क्या हो सकता है. जाहिर है कि समाज सेवा की जगह पैसे से चुनाव जीतने की आकांक्षा बढ़ी है. इससे राजनीति में भ्रष्टाचार तो बढ़ा ही है, उसका चरित्र भी बदल गया है.

मैंने दोनों बार बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा. जीता भी. दिल्ली में पंडित जी (पंडित जवाहर लाल नेहरू) सभी सांसदों के साथ रायशुमारी करते थे. समाज को आगे बढ़ाने के बारे में सबके विचार सुनते थे. बिना किसी आग्रह-पूर्वाग्रह के. वह अपने काम के धुनी आदमी थे.मेरे डुमरांव वाले घर पर आचार्य कृपलानी आये हुए हैं. राजेंद्र बाबू तो बहुत बार आये. जाकिर साहब भी आ चुके हैं.

1991 में कमल सिंह भाजपा में शामिल हुए थे. उन दिनों अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और विजयराजे सिंधिया का उनके यहां आना हुआ था. महाराजा कहते हैं: समाज में भी नैतिक मूल्यों का क्षरण हुआ है. राजनीति समाज से तो अलग है नहीं. इसलिए समाज को ठीक होना होगा. आज की राजनीति में लोग केवल पैसा बनाने के इरादे से आते हैं. वे सिर्फ और सिर्फ इस ताक में रहते हैं कि पैसा कैसे बनाया जाये?

(फोन पर हुई यह बातचीत महाराजा कमल सिंह के पुत्र चंद्रविजय सिंह ने करायी.)

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