शनि के चंद्रमा Titan पर पहली बार धूल भरी आंधी का पता चला

वाशिंगटन : वैज्ञानिकों ने नासा के कैसिनी अंतरिक्षयान से मिले आंकड़ों का उपयोग कर शनि के सबसे बड़े चंद्रमा ‘टाइटन’ पर धूल भरी आंधी चलने का पता लगाया है. नासा ने एक बयान में कहा कि इस खोज से पृथ्वी और मंगल के बाद अब टाइटन सौरमंडल का तीसरा ऐसा ग्रह या उपग्रह हो गया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 25, 2018 7:56 PM

वाशिंगटन : वैज्ञानिकों ने नासा के कैसिनी अंतरिक्षयान से मिले आंकड़ों का उपयोग कर शनि के सबसे बड़े चंद्रमा ‘टाइटन’ पर धूल भरी आंधी चलने का पता लगाया है. नासा ने एक बयान में कहा कि इस खोज से पृथ्वी और मंगल के बाद अब टाइटन सौरमंडल का तीसरा ऐसा ग्रह या उपग्रह हो गया है, जहां धूल भरी आंधी पायी गयी है. यह खोज नेचर जियोसाइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है. इसमें वैज्ञानिकों ने कहा है कि टाईटन कई मायनों में पृथ्वी के बिल्कुल ही समान है.

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फ्रांस के पेरिस डाइडरॉट विश्वविद्यालय के खगोलविद सेबस्टियन रोड्रिग्स ने बताया कि वे पृथ्वी और मंगल के साथ एक और समानता जोड़ सकते हैं, वह है धूल भरी आंधी का चलना. टाइटन की विषुवत रेखा के आसपास स्थित रेत के टीलों से धूल भरी आंधी चलती है. सौरमंडल में टाइटन किसी ग्रह एक मात्र ऐसा चंद्रमा है, जहां एक वायुमंडल है.

उन्होंने बताया कि बस, अंतर इतना है कि पृथ्वी की सतह पर मौजूद नदियां, झील और महासागर पानी से भरे हुए हैं, जबकि टाइटन पर यह प्राथमिक रूप से मीथेन और ईथेन हैं, जो तरल भंडारों से होकर प्रवाहित होता है. इस अनोखे चक्र में हाइड्रोकार्बन अणु वाष्पीकृत होते हैं, बादलों में तब्दील होते हैं और फिर सतह पर बरस जाते हैं.

वैज्ञानिकों ने कैसिनी से ली गयी इंफ्रारेड तस्वीरों के जरिये शुरू में तीन असामान्य चमकीली चीजों की पहचान की थी. उन्हें लगा था कि ये मीथेन के बादल होंगे. हालांकि, छानबीन करने पर इस बात का पता चला कि वे बिल्कुल ही अलग चीजें हैं. ऑर्गेनिक धूल उस वक्त बनती है, जब सूरज की रोशनी और मीथेन के संपर्क में आने से बने ऑर्गेनिक अणु सतह पर गिरने के लिए बड़े आकार के हो जाते हैं.

धूल भरी आंधी पैदा करने वाली प्रबल हवालों की मौजूदगी का मतलब यह है कि टाइटन के विषुवतीय क्षेत्रों को ढके हुए रेत के टिब्बे अब भी सक्रिय हैं और इनमें लगातार बदलाव हो रहा है. कैसिनी अंतरिक्ष यान को पिछले साल 15 सितंबर को अंतरिक्ष में कामकाज से हटा दिया गया और इस तरह उसकी 19 साल की अंतरिक्ष यात्रा समाप्त हो गयी.

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