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चीन में सिनेमा का नवजागरण

अजित राय संपादक, रंग प्रसंग, एनएसडी यह देखकर आश्चर्य होता है कि चीनी फिल्मकार एक ओर अपने नाटकीय इतिहास से अब भी जुड़े हैं, तो दूसरी ओर आधुनिकता के अंतर्विरोधों से भी जूझ रहे हैं. इन दिनों चीन में सिनेमा को लेकर नये प्रयोगों के साथ नवजागरण भी देखा जा रहा है. चीन के मास्टर […]

अजित राय
संपादक, रंग प्रसंग, एनएसडी
यह देखकर आश्चर्य होता है कि चीनी फिल्मकार एक ओर अपने नाटकीय इतिहास से अब भी जुड़े हैं, तो दूसरी ओर आधुनिकता के अंतर्विरोधों से भी जूझ रहे हैं. इन दिनों चीन में सिनेमा को लेकर नये प्रयोगों के साथ नवजागरण भी देखा जा रहा है.
चीन के मास्टर फिल्मकार जिया झंके की नयी फिल्म ‘ऐश इज प्यूरेस्ट ह्वाईट’ पिछले बीस सालों में चीन में हुए बड़े बदलावों का लेखा-जोखा है. अपनी पिछली एपिक फिल्म ‘माउंटेन मे डिपार्ट’ की तरह ही झंके ने एक लंबी प्रेम कथा (2001-2018) के माध्यम से चीन में तेजी से बढ़ रहे सामाजिक बिखराव और आर्थिक प्रगति का विरोधाभास दिखाया है.
चीन के उत्तर पश्चिमी इलाके शांझी के बेशुमार कोयला खदानों के आसपास कहानी 2001 से शुरू होती है. अपने प्रेमी और लोकल गैंगस्टर बिन को बचाने के लिए कियाओ अवैध पिस्तौल से फायर करती है और उसे छह साल की कैद हो जाती है.
जेल से छूटने के बाद वह अपने प्रेमी बिन को ढूंढती हुई पुराने शहर पहुंचती है, तो पता चलता है कि वह किसी अमीर औरत के साथ घर बसा चुका है. इस बीच कियाओ के सगे-संबंधी बिखर चुके हैं. अब वह अकेली है और किसी तरह एक पुराने गैंगस्टर के साथ जुएघर, शराबखाने और वीडियो पार्लर का बिजनेस जमाती है.
एक दिन एक फोन आने के बाद जब वह रेलवे स्टेशन पहुंचती है, तो वहां उसका पुराना प्रेमी प्लेटफाॅर्म पर ह्वील चेयर में लाचार मिलता है. कियाओ उसे घर लाती है, देखभाल करती है और वह ठीक होने लगता है. एक दिन वह एक चिट्ठी छोड़कर चला जाता है, जिसमें लिखा है कि वह किसी की दया पर नहीं जी सकता. कियाओ फिर अकेली है, हमेशा के लिए.
जिया झंके ने इस मुख्य कथा के चारों ओर अनगिनत कहानियों की ओर इशारा किया है कि महाशक्ति बनने की राह पर जा रहे चीन का आंतरिक समाज कितना खोखला, संवेदनहीन और मशीनी हो चुका है. पुराने जीवन मूल्यों और निर्मम आधुनिकता के बीच तालमेल बिठाने का संकट है. दिशाहीन युवकों, प्रेम में धोखा खायी औरतें और घर में बेसहारा अकेले छूट गये मां-बाप की बढ़ती फौज पारंपरिक चीनी समाज में नये संकट की आहट है.
अपनी पिछली फिल्म ‘माउंटेन मे डिपार्ट’ में भी जिया झंके ने चीन में आर्थिक विकास के विरोधाभास को दिखाया है. साल 1999 में फेनयंग इलाके में बचपन के दो दोस्त- खान मजदूर लियंगी और गैस स्टेशन का मालिक झंग शहर की सबसे खूबसूरत स्त्री ताओ से प्रेम करते हैं.
ताओ अमीर झंग से शादी करती है. झंग अपने बेटे का नाम डॉलर रखता है और पैसा कमाने के सिवा उसे कुछ भी होश नहीं. फिर वह ताओ से तलाक लेकर बेटे के साथ आॅस्ट्रेलिया चला जाता है. हम देखते हैं कि 2025 के आॅस्ट्रेलिया में 19 साल का डाॅलर चीनी भाषा का केवल एक शब्द जानता है- अपनी मां का नाम. अपने दिवालिया पिता से अब वह बात नहीं करता, क्योंकि वह चीनी भाषा भूल चुका है.
एक छोटे कस्बे से बीजिंग के रास्ते आॅस्ट्रेलिया तक चलती हुई इस फिल्म में महान चीनी सभ्यता की चरमराहट साफ देखी जा सकती है. पैसा कमाने की रेस में दुनियाभर में गयी चीन की एक पूरी पीढ़ी उम्र के इस पड़ाव पर अकेली पड़ चुकी है.
स्कूल में डाॅलर से उसका मूल चीनी नाम पूछे जाने पर वह बेचैन हो जाता है. यह कितना बड़ा संकट है कि एक महान सभ्यता के वारिस के पास अपनी भाषा में अपना नाम भी नहीं बचा. अंतिम दृश्य में हम देखते हैं कि ताओ अपने कस्बे में अकेले जीवन काट रही है. वह कस्बे से बाहर उसी झील के किनारे बर्फ की बारिश में नृत्य कर रही है, जहां उसके प्रेम की स्मृतियां हैं.
चीनी फिल्मकार जिया झंके ने इक्कीसवीं सदी के पूंजीवाद से उपजे असंतोष को लगभग एक चौथाई सदी के विस्तार में वैश्विक पटल पर परखने की कोशिश की है. तीन चरणों में उन्होंने चीनी समाज की औद्योगिक विकास बनाम सामाजिक बुनावट वाली बहस को इस महाआख्यान में समेटा है.

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