-गुजरात में सरकारें बदलीं, पर अपने पद पर बने रहे जगदीश ठक्कर-
।। ब्रजेश कुमार सिंह।।
(संपादक-गुजरात एबीपी न्यूज)
जगदीश ठक्कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पीआरओ का पद औपचारिक तौर पर आज (9 जून) से संभाल रहे हैं. हालांकि मोदी के पीआरओ की भूमिका में वह वर्ष 2001 से ही हैं, जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे. मोदी से पहले, ठक्कर गुजरात के आठ और मुख्यमंत्रियों के पीआरओ यानी जनसंपर्क अधिकारी रह चुके हैं. करीब 28 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्रियों के पीआरओ रहे ठक्कर अब और बड़ी भूमिका के लिए दिल्ली पहुंच चुके हैं. उनकी इस सफलता का रहस्य क्या है, इसे जानने के लिए उनके जीवन और व्यक्तित्व को जानना होगा.
जगदीश ठक्कर का पूरा नाम है जगदीशचंद्र मनुभाई ठक्कर. 28 फरवरी 1946 को जन्मे ठक्कर के कैरियर की शुरु आत गुजराती अखबार ‘लोकसत्ता’ से 1967 में हुई. फिर भावनगर में उन्होंने एक अन्य स्थानीय अखबार सौराष्ट्र समाचार के लिए काम किया. गुजरात सरकार के सूचना विभाग के साथ ठक्कर का कैरियर 1972 में शुरू हुआ. जिला सूचना पदाधिकारी के तौर पर उन्होंने काम किया. जब वह इस पद पर नरेंद्र मोदी के गृह जिले मेहसाणा में तैनात थे, तब एक अनूठी घटना घटी.
1975 के आपातकाल के ठीक पहले गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन चल रहा था. इसकी वजह से कानून-व्यवस्था बिगड़ रही थी. रात्रि में कफ्र्यू लगाना जरूरी था और इसकी सूचना आकाशवाणी से प्रसारित होनी थी. तब मोबाइल तो क्या, टेलीफोन भी गिनती के होते थे. रात के 10.50 बजे तक जब ठक्कर का संपर्क जिलाधिकारी या एसपी से नहीं हो पाया, तो उन्होंने खुद कफ्र्यू लगाने की विज्ञप्ति आकाशवाणी को जारी कर दी, जिसका प्रसारण रेडियो स्टेशन बंद होने से ठीक पहले 11 बजे तक हो गया. जब इसकी जानकारी बाद में जिले के शीर्ष अधिकारियों को लगी, तो वे ठक्कर की समझ-बूझ के कायल हो गये.
29 दिसंबर, 1983 को ठक्कर गुजरात की राजधानी गांधीनगर में सूचना विभाग के मुख्यालय में पदास्थापित हुए. यहां रिसर्च और रेफरेंस सेक्शन में काम करते हुए वह मंत्रियों और अधिकारियों के भाषणों के लिए संबंधित शोध करने और मुद्दे सुझाने का काम करते रहे. माधवसिंह सोलंकी के हटने के बाद जब अमरसिंह चौधरी गुजरात के सीएम बने, तो 1986 में वह ठक्कर को मुख्यमंत्री कार्यालय में ले आये. इससे पहले तक गुजरात के सीएम से जुड़ी विज्ञप्तियां सूचना विभाग में रह कर ही संबंधित सूचना अधिकारी जारी कर देते थे. ठक्कर पहले सूचना अधिकारी थे, जो न सिर्फ मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठने लगे, बल्कि पुराने तौर-तरीके से उलट मुख्यमंत्री के हर कार्यक्र म या बैठक की कवरेज के लिए व्यक्तिगत तौर पर राज्य के हर हिस्से में जाने लगे. धीरे-धीरे ठक्कर के कामकाज का सिक्का ऐसा जमा कि वो मुख्यमंत्री के पीआरओ के तौर पर स्थापित हो गये और मुख्यमंत्री की गाड़ी या हेलीकॉप्टर में उनकी जगह स्थायी हो गयी. 1986 से शुरू हुआ यह सिलसिला 2014 तक जारी रहा. वर्ष 2004 में 58 साल की उम्र में उनके रिटायर होने का वक्त आया, तो बतौर सीएम नरेंद्र मोदी ने इसे मंजूर नहीं किया औरठक्कर की सेवा को बढ़ाते चले गये. इस तरह से रिकॉर्ड दस सेवा-विस्तार उन्हें मिले और वह पद पर बने रहे.
ठक्कर को बतौर पीआरओ मोदी किस कदर पसंद करते थे, इसका अंदाजा इससे लगता है कि 13 वर्ष तक सीएम रहने के बाद जब मोदी ने 21 मई, 2014 को गुजरात के सीएम पद से इस्तीफा दिया और अगले दिन विशेष विमान से दिल्ली रवाना हुए, तो अपने साथ दो निजी सहायकों- ओम प्रकाश सिंह व दिनेश सिंह बिष्ट और रसोइये बद्री के अलावा जगदीश ठक्कर को भी साथ ले गये. 16वीं लोकसभा के पहले सत्र की शुरु आत हुई, तो ठक्कर संसद भवन में प्रधानमंत्री मोदी के निजी सचिव के कक्ष में प्रेस रिलीज तैयार करते नजर आये. ध्यान रहे कि दिल्ली में पत्र सूचना विभाग यानी पीआइबी का एक खास हिस्सा पीएम के मीडिया विंग के तौर पर काम करता है, बावजूद इसके मोदी ने ठक्कर को अपने साथ रखा. और हफ्ते भर के अंदर पीएम मोदी ने जगदीश ठक्कर को अपने पीआरओ के तौर पर नियुक्त कर दिया है. बीते शनिवार को गांधीनगर आकर ठक्कर ने गुजरात सरकार की सेवा से इस्तीफा दिया और रविवार को दिल्ली लौट गये, जहां सोमवार से उन्हें पीएम मोदी के पीआरओ का पद औपचारिक तौर पर संभालना है. नियुक्ति की शर्तो के मुताबिक, बतौर पीआरओ ठक्कर का कार्यकाल पीएमओ से जुड़ा रहेगा, यानी जब तक मोदी प्रधानमंत्री रहेंगे या फिर जब तक वह चाहेंगे, तब तक ठक्कर उनके पीआरओ रहेंगे. आखिर ठक्कर में ऐसा खास क्या है? अमरसिंह चौधरी के सीएम रहते ठक्कर का बतौर पीआरओ जो कार्यकाल शुरू हुआ, वो आनेवाले वर्षो में माधवसिंह सोलंकी, चिमनभाई पटेल, छबीलदास मेहता, केशुभाई पटेल, सुरेश मेहता, शंकरसिंह वाघेला और दिलीप परीख तक जारी रहा.
जिस वाघेला के विद्रोह के कारण केशुभाई को पहली बार मुख्यमंत्री की कुरसी गंवानी पड़ी थी, उस वाघेला के लिए भी ठक्कर उपयोगी रहे और बाद में जब 1998 में केशुभाई पटेल दोबारा मुख्यमंत्री बने तो उनके साथ भी ठक्कर पीआरओ रहे. केशुभाई के दूसरे कार्यकाल के बाद जब सात अक्तूबर 2001 को मोदी ने सीएम की कुरसी पहली बार संभाली, तब भी गुजरात के तमाम अधिकारी बदल गये थे, लेकिन ठक्कर अपने पद पर बदस्तूर बने रहे. देखा जाये, तो 28 वर्षो में कुल नौ मुख्यमंत्रियों और बतौर कार्यकाल 13 दफा मुख्यमंत्री के पीआरओ रहे ठक्कर. यह अपने आप में रिकॉर्ड है कि कोई व्यक्ति इतने महत्वपूर्ण पद पर करीब तीन दशक तक लगातार बना रहा, वो भी अलग-अलग पार्टियों और अलग-अलग व्यक्तित्व वाले मुख्यमंत्रियों के साथ. असिस्टेंट डायरेक्टर रैंक में ठक्कर ने मुख्यमंत्री के पीआरओ पद पर काम शुरू किया और इसी पद पर रहते हुए डिप्टी डायरेक्टर, ज्वाइंट डायरेक्टर से लेकर एडिशनल डायरेक्टर के रैंक तक पहुंचे.
एक बार ठक्कर से उनकी सफलता के गुर के बारे में पूछा गया, उनका सहज जवाब था, वह अपने हर बॉस यानी मुख्यमंत्री कामूड समझ पाने में सक्षम थे कि आखिर वो क्या चाहते हैं उनसे. यही वजह रही कि जगदीश ठक्कर ज्यादातर मुख्यमंत्रियों के लिए जगदीशभाई बने रहे. मुख्यमंत्री कार्यालय के ज्यादातर कर्मचारी उनकी वरिष्ठता और उम्र को ध्यान में रखते हुए उन्हें दादा कह कर ही बुलाते थे, शायद यही सिलसिला अब पीएमओ में भी दिखे.
ठक्कर काफी लो प्रोफाइल रहते हैं. कभी लाइमलाइट में आने की कोशिश नहीं करते. नेपथ्य में रह कर वह इस कोशिश में जुटे रहते हैं कि उनके बॉस की प्रसिद्धि बढ़े, छवि चमके. अपने बारे में चर्चा उन्हें जरा भी पसंद नहीं. काम के प्रति समर्पण का भाव ऐसा कि मानो निगाह घड़ी पर जाती ही न हो. अपने बॉस के आने के पहले वह सुबह-सुबह दफ्तर या उनके घर पर होते थे और जब मुख्यमंत्री आराम के लिए चले जाते थे, तो देर रात ठक्कर घर की राह पकड़ते थे. तीन दशक में गुजरात के सीएम के पीआरओ के रूप में उन्होंने अवकाश शायद ही कभी लिया हो. तबीयत खराब होने पर भी वह ऑफिस जाते थे. कई बार बुखार में होने के बावजूद वह मुख्यमंत्री के कार्यक्र म को अटेंड करते या फिर प्रेस विज्ञप्ति लिखते नजर आते. अपनी बढ़ती उम्र के बावजूद उन्होंने काम के घंटों में कोई कमी नहीं की, बल्कि वो घंटे बढ़ ही गये. अमूमन सुबह के साढ़े सात या आठ बजे के करीब मोदी के घर या ऑफिस पहुंच जानेवाले ठक्कर तभी छुट्टी पाते थे, जब रात ग्यारह-साढ़े ग्यारह बजे मोदी खुद निजी कमरे में चले जाया करते थे. हमेशा मोदी के साये की तरह नजर आते रहे ठक्कर. यहां तक कि पिछले 18 महीनों में जब मोदी देश के ज्यादातर हिस्सों में रैलियां करते नजर आये, उस वक्त भी ठक्कर मंच के नीचे या फिर मंच के पीछे मौजूद रहे. उसी परिस्थिति में ठक्कर मोदी के साथ नहीं दिखे, जब आचार संहिता लागू होने के कारण बतौर सरकारी अधिकारी वो मोदी के साथ नहीं रह सकते थे.
दिल्ली आने के बाद भी ठक्कर के रूटीन में कोई बदलाव नहीं आया है. गुजरात भवन के कमरा नंबर आठ में रह रहे ठक्कर सुबह साढ़े सात बजे ही प्रधानमंत्री के आवास पहुंच जाते हैं और वहां से मोदी के साथ साउथ ब्लॉक के दफ्तर और फिर वहां से वापस 7, आरसीआर. लगभग आधी रात में ठक्कर सिर्फसोने के लिए जाते हैं गुजरात भवन.
ठक्कर की एक और बड़ी खासियत है भाषा पर उनकी पकड़ और रफ्तार के साथ लिखावट. गुजराती के अलावा हिंदी और अंग्रेजी भी जानते हैं. प्रेस विज्ञप्तियां बिजली की रफ्तार से तैयार करते हैं. जब मोदी किसी कार्यक्र म में भाषण दे रहे होते हैं, ठक्कर भाषण खत्म होने के साथ ही प्रेस रिलीज तैयार कर अपने जूनियर को पकड़ा देते हैं, ताकि वो उसे टाइप कर प्रकाशन के लिए भेज सके. सिर्फएक ऐसा मौका आया, जब किसी मुख्यमंत्री ने ठक्कर की लिखी प्रेस रिलीज को चेक किया. ये मुख्यमंत्री थे चिमनभाई पटेल. एक बार उन्होंने निगाह डाली, फिर न उन्होंने कभी ठक्कर के लिखे हुए को देखने की जरूरत समझी, न ही उनके पहले या बाद के किसी अन्य मुख्यमंत्री ने.
ठक्कर अपने काम में ऐसे डूबे रहे कि उनकी पत्नी विभाबेन ने अकेलेपन से बचने के लिए एनजीओ चलाया और बाद के वर्षो में एक मीडिया संगठन से कंसल्टेंट के तौर पर जुड़ गयीं. समयाभाव के चले ठक्कर कभी व्यायाम वगैरह नहीं कर पाये. फिर भी रोजाना 18-19 घंटे काम करने की क्षमता उनमें कायम है.
अटकलें लग रही थीं कि कोई वरिष्ठ पत्रकार प्रधानमंत्री मोदी के सूचना सलाहकार की भूमिका में आयेगा, जैसी परंपरा रही है. लेकिन संकेत हैं कि सूचना सलाहकार की भूमिका में फिलहाल शायद ही किसी की नियुक्ति हो. ऐसे में ठक्कर के लिए चुनौती बड़ी होगी. प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी के लिए मीडिया हैंडिल करना होगा 68 साल के ठक्कर को. लेकिन अपने बॉस का भरोसा और खुद अपने पर भरोसा, दोनों ठक्कर को नयी ऊंचाई तक ले जा सकते हैं. निगाह इस बात पर भी होगी कि सत्ता के शीर्ष से इतने समय तक जुड़े रहनेवाले ठक्कर कब अपने संस्मरणों को लोगों के सामने रख पायेंगे, जिसे बड़ी मजबूती से वो अपने सीने में दबाये हुए हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)