डॉ प्रमोद पाठक
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#GandhiJayanti : तलाश एक गांधी की
डॉ प्रमोद पाठक आज गांधी जयंती है. गांधी जी की 150वीं जयंती. मजे की बात यह है कि जन्म के 150 वर्षों बाद भी आज देश को गांधी की जरूरत महसूस हो रही है, बल्कि पहले से कुछ ज्यादा ही. सिर्फ देश ही नहीं, कांग्रेस को भी तलाश है एक गांधी की. गांधी ने तो […]
आज गांधी जयंती है. गांधी जी की 150वीं जयंती. मजे की बात यह है कि जन्म के 150 वर्षों बाद भी आज देश को गांधी की जरूरत महसूस हो रही है, बल्कि पहले से कुछ ज्यादा ही. सिर्फ देश ही नहीं, कांग्रेस को भी तलाश है एक गांधी की. गांधी ने तो सत्य के साथ कई प्रयोग किये, लेकिन कांग्रेस भी प्रयोग कर रही है. गांधी के साथ. क्योंकि बिना गांधी कांगेस का गुजारा नहीं. सौ साल पहले भी यही स्थिति थी. आज भी यही स्थिति है. गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत आने के पहले कांग्रेस सिर्फ कुछ पश्चिम में पढ़े वकीलों और बड़े लोगों की पार्टी थी. वैसे गांधी भी वकील थे और पश्चिम में पढ़े थे. मगर उन्होंने एक समझ विकसित की थी. आम जन के मानस की समझ. उसकी पीड़ा की समझ. भाई वकील वकील में फर्क तो होता ही है. तो गांधी में भी था. और भारत आने के बाद कांग्रेस में गांधी ने जान फूंकी. देश के साथ कांग्रेस को जोड़ा.
आज फिर से इसकी आवश्यकता है कांग्रेस को. देश से जुड़ने की. इसलिए तो कांग्रेस गांधी के साथ प्रयोग कर रही है. कभी इस गांधी के साथ. कभी उस गांधी के साथ. वैसे गांधी गांधी में भी फर्क होता है. गांधी कोई एक दिन में गांधी नहीं बने थे. संघर्ष में तप कर बने थे. वैसे केवल कांग्रेस को ही गांधी की जरूरत है यह बात नहीं. हर राजनैतिक दल को गांधी की जरूरत है. जो गांधी को समझते हैं उन्हें भी. जो उन्हें नहीं समझ पाये उन्हें भी. लेकिन इन सबसे ज्यादा जरूरत आज देश को है गांधी की. दरअसल यही समझने वाली बात है. क्यों आज फिर एक गांधी चाहिए. सीधी सी बात है. गांधी ने पहला प्रश्न खड़ा किया था कि क्यों प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद वे प्रथम श्रेणी में यात्रा के हकदार नहीं थे. यही वह पहला प्रश्न था जो गांधी को गांधी में बदलने वाला पहला कदम था. और शायद आज इसी तरह के सवाल देश के लोगों के मन में कौंध रहे होंगे. बस वो सवाल पूछे नहीं जा रहे. गांधी ने सवाल ही तो खड़ा किया था. जब तक सवाल नहीं खड़ा किया जायेगा, तब तक अंग्रेजी हुकूमत ही मान कर चलिए. कोई खास फर्क नहीं है.
गांधी की आवश्यकता और भी कई कारणों से है. नमक पर टैक्स क्यों लगे यह सवाल था. सवाल अब भी खड़ा है. नमक तो एक प्रतीक था. टैक्स पर सवाल खड़ा हुआ था. वैसे गांधी ने और भी बहुत कुछ बताया था. स्वच्छता, स्वदेशी, सत्य और अहिंसा. स्वच्छता और स्वदेशी तो वो कदम थे जो उठाना था, लेकिन उसका आधार तो सत्य और अहिंसा ही था. गांधी का प्रश्न शोषण था. गांधी का प्रश्न गैर बराबरी था. गांधी का प्रश्न अंत्योदय था. गांधी का प्रश्न ग्रामोदय था. गांधी का लक्ष्य सर्वोदय था. यह प्रश्न और लक्ष्य दोनों ही अभी तक खड़े हैं, लेकिन एक बड़ा मुद्दा है कि क्या कोई गांधी मिलेगा. तो साहब गांधी मिलेगा तो लेकिन तब जब कोई कथनी और करनी में एका लायेगा. तब जब कोई नैतिक बल से प्रेरित हो कर सत्य और अहिंसा के लिए लड़ेगा. जब तक एेसा नहीं होता, गांधी की तलाश पूरी नहीं होगी.
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