स्तन कैंसर के शिकंजे में युवा महिलाएं
पहले से सुधारकैंसर रिसर्च यूके के क्लीनिकल रिसर्च के निदेशक केट लॉ कहते हैं, हाल के दशकों में स्तन कैंसर के इलाज के बाद जीवित रहने की दर में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है. 1970 के दशक की तुलना में इलाज के बाद कम से कम दस साल तक जीवित रहने वाली महिलाओं की […]
पहले से सुधार
कैंसर रिसर्च यूके के क्लीनिकल रिसर्च के निदेशक केट लॉ कहते हैं, हाल के दशकों में स्तन कैंसर के इलाज के बाद जीवित रहने की दर में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है. 1970 के दशक की तुलना में इलाज के बाद कम से कम दस साल तक जीवित रहने वाली महिलाओं की संख्या दो गुनी हो गयी है.
ब्रिटेन में स्तन कैंसर का इलाज करा चुकी 40 साल से कम उम्र की तीन हजार महिलाओं का विश्लेषण किया गया. इन महिलाओं पर किये गये अध्ययन में शामिल विशेषज्ञों का मानना है कि स्तन कैंसर के युवा मरीजों के लंबे समय तक जीवित न रहने की समस्या के लिए कुछ हद तक क्लीनिकल परीक्षण की कमी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. इस अध्ययन के लिए कैंसर रिसर्च यूके और वेसेक्स कैंसर ट्रस्ट ने वित्तीय सहायता दी.
जीवित रहने की दर
नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के जर्नल में प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक इलाज के पांच साल बाद तक जीवित रहने की दर 80 फीसदी और आठ साल तक जीवित रहने की दर 68 फीसदी थी. रजोनिवृत्ति के बाद की अधिकांश महिलाओं के स्तन कैंसर का इलाज तो हो जाता है, लेकिन ब्रिटेन में 40 साल से कम उम्र की केवल पांच फीसदी मरीजों का ही इलाज हो पाया.
अध्ययन में शामिल प्रोफेसर डायना एलिक्स इस बात का और प्रमाण देती हैं कि, जब युवा महिलाओं के स्तन कैंसर का इलाज किया जाता है, तो यह (टैमोक्सिफिन) अलग तरीके से व्यवहार करता है.
लाभदायक दवाएं
अध्ययन में महिलाओं में पाये जाने वाले हार्मोन एस्ट्रोजन से बढ़ने वाले कैंसर पर भी ध्यान दिया गया. इस तरह के कैंसर में कैंसर कोशिकाएं एस्ट्रोजन ग्राही होती है. इस तरह के कैंसर में एस्ट्रोजन ग्राही कोशिकाओं को आमतौर पर कीमोथेरेपी से ब्लॉक किया जाता है और टैमोक्सिफिन नामक दवा का भी उपयोग किया जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि टैमोक्सिफिन का लंबे समय तक उपयोग लाभदायक हो सकता है.
युवाओं में अलग व्यवहार
अध्ययन प्रमुख प्रोफे सर डायना एलिक्स कहती हैं, जब युवा महिलाओं के स्तन कैंसर का इलाज किया जाता है, तो यह अलग तरीके से व्यवहार करता है. उनके इलाज के लिए अलग नजरिये की जरूरत है, यह जरूरी नहीं हैं कि उन्हें कैंसर के उम्रदराज मरीजों के इलाज से समझा जा सके.
(बीबीसी से साभार)