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शोध : भारत के बच्चों को मंदबुद्धि बना रहा है शीशा

मेलबर्न : भारतीय बच्चों के खून में शीशा की अत्यधिक मात्रा से उनकी बौद्धिक क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो सकती है. इससे अन्य बीमारियों का खतरा भी बढ़ सकता है. एक नये अध्ययन में यह बात सामने आयी है. ऑस्ट्रेलिया में मैकक्वेरी विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्मियों ने भारतीयों के खून में शीशा के स्तर को लेकर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 14, 2018 2:44 PM

मेलबर्न : भारतीय बच्चों के खून में शीशा की अत्यधिक मात्रा से उनकी बौद्धिक क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो सकती है. इससे अन्य बीमारियों का खतरा भी बढ़ सकता है. एक नये अध्ययन में यह बात सामने आयी है.

ऑस्ट्रेलिया में मैकक्वेरी विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्मियों ने भारतीयों के खून में शीशा के स्तर को लेकर अब तक का पहला बड़ा विश्लेषण किया है. विश्लेषण में पाया गया कि बीमारी का खतरा पहले के आकलन की तुलना में काफी बढ़ चुका है. इसका बच्चों में बौद्धिक अक्षमता के उपायों पर नकरात्मक असर पड़ता है.

मैकक्वेरी विश्वविद्यालय के ब्रेट एरिक्सन ने कहा कि भारत में रह रहे बच्चों में बौद्धिक क्षमता पर दुष्प्रभाव बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनके खून में शीशा के मिश्रण का स्तर करीब सात माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर है.

अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि भारतीयों के रक्त में शीशा के उच्च स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि के लिए बैट्री गलन क्रिया जिम्मेदार है और भारत में बैट्री रिसाइकिल की प्रक्रिया की व्यवस्था ठीक नहीं है.

एरिक्सन ने कहा, ‘भारत में काफी तादाद में लोग मोटरसाइकिल या कारें चलाते हैं और उसकी बैट्री का जीवन सिर्फ दो साल होता है. इस्तेमाल लेड बैट्रियों की संख्या काफी है, जिन्हें हर साल रिसाइकिल किया जाता है.’

उन्होंने कहा, ‘इन्हें प्राय: अनौपचारिक रूप से बेहद कम या नगण्य प्रदूषण नियंत्रकों के साथ रिसाइकिल किया जाता है, जो समूचे शहरी इलाकों की हवा में पाया जाने वाला अहम लेड प्रदूषक सम्मिश्रण बन जाता है.’

अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि आयुर्वेदिक औषधि, आइलाइनर, नूडल्स और मसाले सहित ऐसे अन्य पदार्थ भी हैं, जो बच्चों के खून में शीशा का स्तर बढ़ाते हैं.

अनुसंधान की गणना के अनुसार, वर्ष 2010 से 2018 के बीच खून में शीशा के स्तर को बताने वाले आंकड़े से बौद्धिक क्षमता में कमी और रोगों के लिए जिम्मेदार डिजैबिलिटी अडजस्टेड लाइफ इयर्स (डीएएलवाइ) का पता चलता है.

डीएएलवाइ से यह पता चलता है कि खराब स्वास्थ्य, अक्षमता और असमय मृत्यु के कारण हम कितने साल गंवा बैठे.

पूर्व के अध्ययनों के अनुमान के अनुसार, शीशा से प्रेरित डीएएलवाइ से 46 लाख लोग प्रभावित हुए और 165,000 लोगों की मौत हुई. नये अध्ययन में यह पता चला कि डीएएलवाइ की संख्या बढ़कर 49 लाख हो सकती है.

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