विदेशों में क्यों फीकी है भारतीय फ़ैशन इंडस्ट्री की चमक

वंदना बीबीसी संवाददाता, लंदन लंदन की ठंडी, सुस्त सी शाम के बीच संगीत और ग्लैमर का तड़का. कैटवॉक, फ़ैशन, सेलीब्रिटीज़.. इस ख़ूबसूरत शाम में हर रंग था. हाल में लंदन में हुए अनोखे फ़ैशन शो में भारत और पाकिस्तान के फ़ैशन डिज़ाइनरों का मजमा लगा. भारत की ओर से रीना ढाका और अनीता डोंगरे जैसी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 11, 2014 11:42 AM

लंदन की ठंडी, सुस्त सी शाम के बीच संगीत और ग्लैमर का तड़का. कैटवॉक, फ़ैशन, सेलीब्रिटीज़.. इस ख़ूबसूरत शाम में हर रंग था. हाल में लंदन में हुए अनोखे फ़ैशन शो में भारत और पाकिस्तान के फ़ैशन डिज़ाइनरों का मजमा लगा. भारत की ओर से रीना ढाका और अनीता डोंगरे जैसी बड़ी डिज़ाइनरों ने हिस्सा लिया.

भारत हमेशा से अपनी ‘एग्ज़ॉटिक छवि’ के लिए जाना जाता है और लंदन आईं फ़ैशन डिज़ाइनर रीना ढाका मानती हैं कि ऐसी कई ख़ूबियाँ हैं जो भारत के फ़ैशन उद्योग को बाक़ी देशों से अलग बनाती है.

ग्राहकों से घिरी रीना ढाका ने बताया, "अगर आप दुनिया का डिज़ाइनर मार्केट देखेंगे तो वो इतना फैल चुका है कि हर हाई स्ट्रीट में उनकी दुकानें हैं, हर देश में फैला हुआ है. वही चीज़ हर जगह मिलती है."

उन्होंने कहा, "लेकिन भारतीय फ़ैशन की ख़ूबी है कि हमारा काम काफ़ी हद तक अनोखा है. कपड़े बनाने में पारंपरिक चीज़ों का भी ध्यान रखा जाता है. कारीगरों का भी इस्तेमाल होता है."

90 के दशक में उदारीकरण के दौर के बाद भारत के फ़ैशन उद्योग में कई बदलाव आए हैं. भारतीय पारंपिक डिज़ाइन्स भारत से बाहर भी लोग पसंद करने लगे हैं. लेकिन ये सवाल बना हुआ है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की फ़ैशन इंडस्ट्री कितनी जगह बना पाई है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर की बात करें तो भारतीय फ़ैशन उद्योग का योगदान केवल 0.3 फ़ीसदी माना जाता है. भारत की सुपरमॉडल रहीं नीना मैनुएल मानती हैं कि भारतीय फ़ैशन उद्योग में अभी कई ख़ामियाँ हैं.

उनका कहना है, "वैसे तो कुछ डिज़ाइनर अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन मैं कहूँगी कि भारतीय डिज़ाइनरों को कपड़ों की फ़िनिशंग पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए. उन्हें प्री प्रोडक्शन पर ज़ोर देना चाहिए, न कि सिर्फ़ सेल्स पर."

‘प्रोफ़ेशनल रवैये की ज़रूरत’

लंदन में रहनी वाली आमना फ़ैशन के कारोबार से जुड़ी रही हैं और भारतीय मूल की राधिका के साथ मिलकर फ़ैशन शो आयोजित करवाती रही हैं. उनका मानना है कि भारतीय और पाकिस्तानी डिज़ाइनरों को ज़्यादा प्रोफ़ेशनल होने की ज़रूरत है.

आमना कहती हैं, "दरअसल छवि ये है कि हम एक डिज़ाइन तो अच्छा बनाते हैं लेकिन फिर अगले 10 डिज़ाइन पर उतना ध्यान नहीं देते. कमिटमेंट और प्रोफ़ेशनल रवैये की ज़रूरत है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय ग्राहक उच्च क्वालिटी की माँग करता है."

हालांकि लंदन के इस शो में हमें ऐसे विदेशी भी मिले जो भारतीय डिज़ाइनरों के काम को लेकर उत्सुक दिखे.

अमरीका से आई एक महिला ने कई भारतीय डिज़ाइन ट्राई किए और बताया कि भारतीय डिज़ाइन काफ़ी अलग होते हैं और उन्हें पसंद हैं.

अंतरराष्ट्रीय बाज़ार की राह मुश्किल

वहीं अनीता डोंगरे जैसे कुछ फ़ैशन डिज़ाइनर भारत के बजाय अंतरराष्ट्रीय मार्केट के पीछे भागने की सोच से ही इत्तेफ़ाक नहीं रखते.

अनीता डोंगरे कहती हैं, "अगर आप सोच रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में आप जगह बना लेंगे तो ये बहुत मुश्किल है. वैसे भी अभी तो घरेलू बाज़ार को ही ठीक से परखा नहीं है. मुझे नहीं लगता कि घरेलू बाज़ार पर कब्ज़ा किए बगैर आप अंतरराष्ट्रीय मार्केट में जा सकते हैं."

डिज़ाइनर भैरवी जयकिशन भी मानती हैं कि भारतीय डिज़ाइनरों को पहले ये तय करना होगा कि वो करना क्या चाहते हैं- भारतीय लिबास बनाकर विदेशियों को बेचना चाहते हैं या पश्चिमी लिबास बनाकर बेचना चाहते हैं.

वहीं रीना ढाका कहती हैं कि जापान जैसे देशों की तरह भारत में भी सरकार को फ़ैशन उद्योग को प्रोत्साहन और सम्मान देने की ज़रूरत है, तभी ये उद्योग फल फूल सकता है.

ग्लैमर की चकाचौंध के बीच रिटेल, इन्फ़्रास्ट्रचर और बेहतर ड्रिस्टिब्यूशन जैसे अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरने की चुनौती भारतीय डिज़ाइनरों के सामने बनी हुई है. अंतरराष्ट्रीय स्तर की बात करें तो पारंपरिक भारतीय और पश्चिमी लिबास के बीच तालमेल बिठाने की कोशिश में लगी भारतीय फ़ैशन इंडस्ट्री को अभी लंबा सफ़र तय करना है.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें क्लिक करें. आप हमें क्लिक करें फ़ेसबुक और क्लिक करें ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)

Next Article

Exit mobile version