दफ़्तर में लंच ब्रेक में काम से करें तौबा

स्वास्थ्य से जुड़ी एक संस्था ने ऑफिस प्रबंधन को सुझाव दिया है कि वे कर्मचारियों को लंच ब्रेक के लिए प्रोत्साहित करें क्योंकि ब्रेक न लेने से लोगों में सेहत से जुड़ी समस्याएं पैदा होती हैं जिसका मतलब होता है ‘सिक लीव’ यानी छुट्टी जो अंत में कंपनी के कामकाज को प्रभावित करता है. चार्टर्ड […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 11, 2014 6:02 PM

स्वास्थ्य से जुड़ी एक संस्था ने ऑफिस प्रबंधन को सुझाव दिया है कि वे कर्मचारियों को लंच ब्रेक के लिए प्रोत्साहित करें क्योंकि ब्रेक न लेने से लोगों में सेहत से जुड़ी समस्याएं पैदा होती हैं जिसका मतलब होता है ‘सिक लीव’ यानी छुट्टी जो अंत में कंपनी के कामकाज को प्रभावित करता है.

चार्टर्ड सोसायटी ऑफ फिजियोथेरेपी ने कहा है कि ब्रेक न लेने की वजह से लोग चलना फिरना कम कर देते हैं, दिमाग़ को आराम नहीं मिलता है जिसका असर स्वास्थ्य पर पड़ता है और वे बीमार रहने लगते हैं.

करीब 2,000 लोगों के शोध में यह बात सामने आई है कि पांच में से एक कर्मचारी दोपहर के भोजन के ब्रेक के दौरान काम करते हैं.

इनमें से आधे लोगों ने ब्रेक न लेने के कारण अपने डेस्क पर ही खाना खाया जबकि पांच में से एक बाहर गए और तीन फ़ीसदी जिम गए.

संगठन की कंपनियों को सलाह है कि वे कर्मचारियों को शारीरिक रूप से ज़्यादा सक्रिय रहने की सलाह दें ताकि उनमें स्वास्थ्य समस्याओं का ख़तरा कम हो.

स्वास्थ्य से जुड़ी इन परेशानियों में पीठ और गर्दन के दर्द से लेकर कैंसर, हृदय रोग और दौरा पड़ने जैसी ज़्यादा गंभीर बीमारियां शामिल हैं.

केवल एक-तिहाई कर्मचारियों का कहना है कि उनके दफ़्तर में शारीरिक कसरत के लिए सुविधाएं दी जाती हैं मसलन रियायती जिम सदस्यता, दोपहर के लंच के वक्त चलने वाला क्लब या फिर काम के बाद फिटनेस की क्लास.

‘घातक नतीजे’

इस सोसायटी के मुख्य अधिकारी कैरेन मिडिलटन का कहना है, "हफ़्ते के दौरान फुल टाइम (पूर्णकालिक) कर्मचारियों का ज़्यादातर वक्त काम में या सफ़र में बीतता है."

"एक हफ़्ते में पांच बार कम से कम 30 मिनट तक ख़ुद को शारीरिक रूप से ज़्यादा सक्रिय रखने के लिए मौके तलाशना एक बड़ी चुनौती हो सकती है. अगर आउटडोर जिम जैसी सुविधाएं हों या फिर लंच के बाद थोड़ा टहलने का मौका मिले तो ऐसी सक्रियता भी फायदेमंद साबित हो सकती है."

"कुछ न करना लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी ख़तरनाक साबित हो सकता है." उनका कहना है, "किसी व्यक्ति को निजी तौर पर अस्वस्थ होने से परेशानी तो होगी ही साथ ही कंपनियों पर भी बीमारी की वजह से दफ़्तर न आने वाले कर्मचारियों की लागत और काम पर उसके प्रभाव का बोझ पड़ सकता है."

"यह सभी के हित में है कि वे निष्क्रियता की समस्या का हल निकालने का तरीका ढूंढे और हमें लोगों को अपने स्वास्थ्य की जिम्मेदारी ख़ुद लेने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा."

यह सर्वेक्षण चार्टर्ड सोसायटी ऑफ फिजियोथेरेपी और स्वास्थ्य बीमा कंपनी अवीवा के लिए कराया गया.

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