इराक़ में विद्रोहियों से भिड़ने के लिए सभी विकल्प खुलेः ओबामा

अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का कहना है कि उनकी सरकार इराक़ की मदद के लिए इस्लामिक विद्रोहियों से भिड़ने के सभी विकल्पों पर विचार कर रही है, जिसमें सैन्य कार्रवाई भी शामिल है. हालांकि व्हाइट हाउस का कहना है कि उसका इरादा फ़ौजें भेजने का नहीं है. ओबामा की ये टिप्पणी सुन्नी अतिवादियों के मूसल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 14, 2014 11:35 AM

अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का कहना है कि उनकी सरकार इराक़ की मदद के लिए इस्लामिक विद्रोहियों से भिड़ने के सभी विकल्पों पर विचार कर रही है, जिसमें सैन्य कार्रवाई भी शामिल है.

हालांकि व्हाइट हाउस का कहना है कि उसका इरादा फ़ौजें भेजने का नहीं है.

ओबामा की ये टिप्पणी सुन्नी अतिवादियों के मूसल और तिकरित शहरों पर क़ब्ज़े के बाद आई है.

अमरीका ने इराक़ी सेना के साथ काम कर रहे रक्षा कांटैक्टर्स को सुरक्षित इलाक़ों में भेजना शुरू कर दिया है.

अमरीकी विदेश विभाग के प्रवक्ता जेन साकी ने कहा, ”हम पुष्टि कर सकते हैं इराक़ सरकार के साथ अमरीकी विदेश सैन्य बिक्री (एफएमएस) प्रोग्राम में अनुबंध के तौर पर काम कर रहे अमरीकी नागरिकों सुरक्षा के मद्देनज़र उनकी कंपनियों के ज़रिए प्रभावित इलाक़ों से अस्थायी तौर पर दूसरे स्थानों पर भेजा जा रहा है.”

अमरीकी रक्षा अधिकारी का कहना है, सैकड़ों लोग बग़दाद के बलाद एयरबेस को ख़ाली कर चुके हैं

इस्लामी स्टेट इन इराक़ एंड द लेवेंट (आईएसआईएस) की अगुवाई वाले इस्लामी विद्रोहियों के बारे में माना जा रहा है कि वो राजधानी बग़दाद में दक्षिण की ओर से आगे बढ़ रहे हैं. इस इलाक़े में शिया मुस्लिमों का बाहुल्य है, जिन्हें आईएसआईएस के अतिवादी काफ़िर कहते हैं.

गुरुवार की ग़ैर पुष्टिजनक रिपोर्टों के अनुसार, इराक़ी फ़ौजों ने मूसल और तिकरित में विद्रोहियों को निशाना बनाकर हवाई हमले किए हैं.

मूसल पर क़ब्ज़े का मतलब

संवाददाताओं का कहना है कि यदि आईएसआईएस ने मूसल पर क़ब्ज़ा बनाए रखकर वहां मौजूदगी बरक़रार रखी तो इराक़ और सीरिया के बीच इस्लामी अमीरात का गठन की दिशा में बड़ी छलांग होगी. इस इलाक़े के एक बड़े क्षेत्र पर पहले से सैन्य विद्रोहियों का क़ब्ज़ा है.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का कहना है कि वह सर्वसम्मति से आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में इराक़ी सरकार और वहां की जनता के साथ है और उनकी मदद करेगा.

इससे पहले संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि मूसल, जहां से क़रीब पांच लाख से ज़्यादा लोग पलायन कर चुके हैं कि हालत लगातार ख़राब होती जा रही है.

बीबीसी के मध्यपूर्व मामलों के संपादक जेर्मी बोवन का मानना है, ”यदि आईएसआईएस ने मूसल पर क़ब्ज़ा बरक़रार रखा तो ये इराक़ और सीरिया के कुछ इलाक़ों को मिलाकर इस्लामी अमीरात तैयार करने की दिशा में ये बड़ा क़दम होगा.”

उनका कहना है , ”अल-क़यदा के 11 सितंबर 2001 को अमरीका पर किए हमले के बाद ये किसी जिहादी संगठन की सबसे बड़ी कार्रवाई होगी. इससे मध्यपूर्व के हालात कहीं ज़्यादा उथलपुथल भरे और ख़राब हो जाएंगे.”

बक़ौल बोवन, ”आईएसआईएस सुन्नी मुस्लिम संगठन का अतिवादी ग्रुप है. इसकी सफलता इस पर निर्भर करेगी कि सुन्नी और शिया के बीच सांप्रदायिक टकराव क्या मोड़ लेता है, ये मध्यपूर्व में पहले ही ख़तरनाक रेखा खींच चुका है.”

विद्रोहियों का आगे बढ़ना

व्हाइट हाउस में आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री टोनी अबाट से मिलने के बाद ओबामा ने कहा, ”कुछ बातें तुरंत करनी होंगी, जिसमें सैन्य तरीक़े से कारर्वाई की ज़रूरत भी है.”

उन्होंने कहा, ”मैं किसी भी बात से इनकार नहीं कर रहा लेकिन ये तय है कि हम इन जिहादियों के पैर स्थायी तौर पर इराक़ या सीरिया में नहीं टिकने देंगे.”

व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जे कार्नी ने कहा, ”राष्ट्रपति का आशय हवाई हमलों की संभावना से इनकार नहीं है. हालांकि हम मैदानी फ़ौजों के बारे में विचार नहीं कर रहे.”

अमरीका में इराक़ी राजदूत लुकमान फेली ने पहले बीबीसी से कहा था कि हाल के बरसों में उनके देश के सामने आई ये सबसे गंभीर स्थिति है.

संसदीय वोटों के ज़रिए प्रधानमंत्री नूरी अल-मालिकी को आपातकालीन अधिकार देने में विलंब हो रहा है.

सांसदों का रुख़ अब तक इस पर स्पष्ट नहीं है.

इस मामले में एक दिन पहले हुए वोटिंग मीटिंग के दौरान 325 में केवल 128 सांसद ही पहुंचे.

इराक़ के उत्तर में कुर्द फ़ौजें पहले ही तेल के शहर किरकुक पर नियंत्रण कर चुकी हैं. उनका दावा है कि सरकारी फ़ौजें वहां से भाग गई हैं.

कुर्दों का लंबे समय से किरकुक को लेकर बग़दाद से विवाद रहा है. वो उसके अपने स्वायत्तशासी क्षेत्र में होने का दावा करते रहे हैं.

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