अहर्निश समाज-साधक
हम जिस जीवन को प्रेरणादायी समझते हैं, उसके प्रेरणादायी होने के पीछे संघर्षों का इतिहास होता है. देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का जीवन प्रेरणादायी रहा है. रामनाथ कोविंद भी संघर्षों की आंच से तपकर बने व्यक्तित्व का नाम है. आर्यन प्रकाशन, दिल्ली से आयी किताब ‘महामहिम राष्ट्रपति : श्री रामनाथ कोविंद’ उनके संघर्षशील […]
हम जिस जीवन को प्रेरणादायी समझते हैं, उसके प्रेरणादायी होने के पीछे संघर्षों का इतिहास होता है. देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का जीवन प्रेरणादायी रहा है. रामनाथ कोविंद भी संघर्षों की आंच से तपकर बने व्यक्तित्व का नाम है. आर्यन प्रकाशन, दिल्ली से आयी किताब ‘महामहिम राष्ट्रपति : श्री रामनाथ कोविंद’ उनके संघर्षशील व्यक्तित्व के ही तमाम पहलुओं को अभिव्यक्त करती है. इसे लिखा है बिहार प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित कुमार सिंह ने.
उत्तर प्रदेश के एक गांव के दलित परिवार में जन्मे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का जीवन अभावों से युक्त रहा है. जब पांच वर्ष के थे, उनकी मां का निधन हो गया. बड़ी बहन गोमती देवी ने कोविंद की देखभाल की. कोविंद के पिता मैकूलाल एक साधारण वैद्य थे. कोविंद ने बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई को अपनी दुनिया बना ली थी. वे पढ़ने में तेज थे और भंडारघर को स्टडी रूम बनाकर वहीं पढ़ते थे. पढ़ाई के प्रति यह लगन देखकर उनके पिता ने उन्हें पढ़ने के लिए कानपुर भेज दिया, जहां से उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की.
राष्ट्रपति कोविंद के जीवन से जुड़े इन तथ्यों के अतिरिक्त, यह किताब उनके राजनीतिक एवं प्रतिबद्ध सामाजिक जीवन के भी विभिन्न पक्षों को सामने लाती है. मसलन, वे छात्र जीवन से ही समाज के वंचित वर्गों, समुदायों के लिए काम करते रहे हैं. खासकर, एससी-एसटी, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों व महिलाओं के अधिकारों के लिए वे हमेशा लड़ते रहे हैं.
इन उद्देश्यों के लिए वे सत्ता से टकराने में भी नहीं डरे. वर्ष 1997 में सरकार ने दलित-आदिवासी कर्मचारियों को कमजोर करनेवाली कुछ नीतियां लागू की थीं. यह रामनाथ कोविंद ही थे, जिन्होंने दलित-आदिवासी कर्मचारियों का आंदोलन में साथ दिया और सरकार को संविधान में तीन संशोधन करने को मजबूर किया.
रामनाथ कोविंद ने समाज के व्यापक हित के लिए राजनीति का मार्ग चुना और जीवन-पर्यंत यही उनका मूलमंत्र रहा है. आज वे देश के राष्ट्रपति हैं, पर उनका निजी जीवन ‘सादा जीवन-उच्च विचार’ के दर्शन पर ही चल रहा है. यह वह दर्शन है, जो कठोर परिश्रम द्वारा अर्जित होता है. इसलिए उनका जीवन देश के युवाओं के लिए पथ-प्रदर्शक है. ऐसे पहलुओं को ही यह किताब सामने लाती है. लेखक बधाई के पात्र हैं.
– सूर्य प्रकाश त्रिपाठी