मौसमी सब्जियों के जायके

प्रोफेसर पुष्पेश पंत जाड़ा अपने साथ लाता है रंग-बिरंगी सब्जियां- ताजा और जायकेदार. अचानक कौंधने लगती हैं भूली-बिसरी यादें. जाने कितने दिन हो गये नाश्ते पर छुंकी मीठी मटर खाये! पूर्वांचल में आज भी हरी मटर का चलन है और कभी-कभार मिट्टी की हांडी में फली की सब्जी मुलायम छिलके के साथ खाने को मिलती […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 25, 2018 7:55 AM
प्रोफेसर पुष्पेश पंत
जाड़ा अपने साथ लाता है रंग-बिरंगी सब्जियां- ताजा और जायकेदार. अचानक कौंधने लगती हैं भूली-बिसरी यादें. जाने कितने दिन हो गये नाश्ते पर छुंकी मीठी मटर खाये! पूर्वांचल में आज भी हरी मटर का चलन है और कभी-कभार मिट्टी की हांडी में फली की सब्जी मुलायम छिलके के साथ खाने को मिलती है.
महानगरों में ही नहीं, गुमनाम कस्बों तक सूखी (कृत्रिम बर्फीली ठंड से जमायी गयी यानी ‘फ्रोजन’) मटर पहुंच चुकी है. जिन्हें यह मंहगी लगती है, वे भी पिछले मौसम में जुटायी धूप में सुखायी मटर का इस्तेमाल करते हैं. कौन पड़े छीलने और कीड़े बीनने के झंझट में! जाहिर है कि ताजी मटर का जायका लोगों की जबान से उतर चुका है. कुछ ही शौकीन बचे रहे हैं जो सवाल उठाते हैं, ‘कहां की मटर है? महाराजगंज की तो नहीं लगती.’ आदि.
गाजर भी ‘कोल्ड स्टोरेज’ वाली बारहों मास सुलभ है. ‘मिक्स्ड वेजिटेबल’ के नाम से जो वाहियात व्यंजन परोसा जाता है, उसमें भले ही इसके कुछ टुकडे खप जायें, लेकिन इसे मुंह में नहीं डाला जा सकता. हलुवा बनाना तो बहुत दूर की बात है. गाजर-मटर ही नहीं, आलू-गाजर की जुगलबंदी भी कम स्वादिष्ट नहीं होती. पत्ता गोभी और मटर भी बनाने में आसान खाने में मजेदार लगती है.
मौसमी सब्जियों में हमेशा से उपेक्षित मूली और शलगम देखते ही हमारे मुंह में लार भरने लगती है. मूली के बारे में जाने क्यों यह भ्रांति है कि यह सिर्फ सलाद-कचुंबर के काम की चीज है या बहुत हुआ, तो पराठों में भरने लायक. सिर्फ अभाव ग्रस्त पहाड़ी इलाके में ही ताजा या सुखायी मूली को सादर सस्नेह बरता जाता है. उसकी पत्तियों का शाक सरसों या पालक से कम नहीं समझा जाता.
कश्मीर में टमाटर-सौंफ-सौंठ और चीनी के पुट के साथ सरसों के तेल में पकायी मूली जिसने चखी हो, वही जानता है कि मूली क्या कमाल कर सकती है. कश्मीर की ही खान-पान परंपरा में शलगम (गोगची) की सब्जी की प्रतिष्ठा है. इसे मात्र राजमा या गोश्त के साथ नहीं, वरन अलग से भी परोसा जाता है.
देश के विभाजन के बाद भारत पहुंचनेवाले पंजाबी शरणार्थी अपने साथ मूली-शलगम-गाजर का सब्जीनुमा अचार लाये. जिसे बिना तेल के और तेल तथा सिरके के साथ तैयार किया जा सकता है. कुछ बरस पहले तक संयुक्त परिवारों में यह छुंका तुरत-फुरत तैयार हो जानेवाला अचार सामूहिक कार्यक्रम के रूप में डाला जाता था. आज जो लोग इसे व्यावसायिक रूप से बनाये बेचे जानेवाले बोतलबंद उत्पाद के रूप में खरीदते हैं, वह इन सब्जियों के कुदरती जायके को कैसे पहचान सकते हैं भला?
इसी मौसम में तरह तरह की हरी सब्जियों की गड्डियां ललचाने लगती हैं- मेथी, पालक, सरसों, बथुआ, पोई आदि, पर एक सरसों ही ‘साग’ का पर्याय बन गया है. दाल में साग डालने का चलन कम होता जा रहा है. अक्सर हम यह सिर-दर्द पालते हैं कि कौन सा खाद्य पदार्थ स्वदेशी है और कौन सा विदेशी? किसी निषिद्ध या वर्जित प्रतिबंधित समझें किसे सात्विक और स्वदेशप्रेम का पर्याय? जाड़े की सब्जियों की इंद्रधनुषी छटा हमें अनायास भारत की बहुलता और पराये को अपना बनाने की प्रतिभा का एहसास कराती है. इसी बहाने इन सब्जियों के बारे में सोचें और नयी पाक विधि आजमाकर इनका लुत्फ लें!
रोचक तथ्य
देश के विभाजन के बाद भारत पहुंचनेवाले पंजाबी शरणार्थी अपने साथ मूली-शलगम-गाजर का सब्जीनुमा अचार लाये.
मौसमी सब्जियों में हमेशा से उपेक्षित मूली और शलगम देखते ही हमारे मुंह में लार भरने लगती है.
इसी मौसम में तरह-तरह की हरी सब्जियों की गड्डियां ललचाने लगती हैं- मेथी, पालक, सरसों, बथुआ, पोई आदि पर एक सरसों ही ‘साग’ का पर्याय बन गया है.

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