कैसे बचें मिजिल्स और चिकेन पॉक्स से

गरमी के बढ़ते ही कुछ बीमारियां हावी हो रही हैं, जिनमें मिजिल्स (खसरा) और चिकेन पॉक्स (छोटी माता) प्रमुख हैं. ये दोनों संक्रामक बीमारियां हैं और दोनों के लक्षण एक जैसे हैं. अनुमान के मुताबिक दुनिया में हर दिन करीब 330 लोगों की मृत्यु खसरे से होती है. शुरू में ही बचाव जरूरी है, ताकि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 17, 2014 12:07 PM

गरमी के बढ़ते ही कुछ बीमारियां हावी हो रही हैं, जिनमें मिजिल्स (खसरा) और चिकेन पॉक्स (छोटी माता) प्रमुख हैं. ये दोनों संक्रामक बीमारियां हैं और दोनों के लक्षण एक जैसे हैं. अनुमान के मुताबिक दुनिया में हर दिन करीब 330 लोगों की मृत्यु खसरे से होती है. शुरू में ही बचाव जरूरी है, ताकि यह भयावह रूप न ले.

संक्रमण हो सकता है गंभीर : खसरे का कोई टारगेट ट्रीटमेंट नहीं है, बल्कि लक्षणों को देख कर चिकित्सक डायग्नोज करते हैं और इसके अनुसार दवाइयां देते हैं. परहेज और साफ-सफाई भी जरूरी है. संक्रमण दो सप्ताह तक रहने से कई अन्य बीमारियां जैसे- निमोनिया, ब्रेन इन्फेक्शन, हेपेटाइटिस, दिमागी बुखार भी हो सकती हैं. बच्चे को बीमारी हुई है, तो ज्यादा-से-ज्यादा लिक्विड दें, ताकि डिहाइड्रेशन न हो. विटामिन ए सप्लीमेंट भी जरूरी है.

बरतें ये सावधानियां : खसरा या चिकेन पॉक्स होने पर रोगी के परिवार को सावधानी बरतनी चाहिए. रोगी को अलग कमरे में रखें. उसके द्वारा इस्तेमाल वस्तुओं का प्रयोग अन्य सदस्य न करें. देखभाल करनेवाला भी मास्क लगा कर देखभाल करे. रोगी को प्रतिदिन स्नान कराएं, साबुन यूज न करें. ढीले, सूती कपड़े पहनें और प्रतिदिन बदलें. बच्चों को खसरे से बचाने के लिए दो टीके लगाये जाते हैं- पहला टीका जन्म के 9 माह के अंदर व दूसरा एमएमआर टीका 15 महीने के दौरान बच्चों को लगाया जाता है. दोनों टीके सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क उपलब्ध रहते हैं.

बातचीत : कुलदीप तोमर, दिल्ली

72 घंटे के अंदर मरीज को एंटीवायरस डोज देना जरूरी

आम तौर पर मिजिल्स खुद ही 5-6 दिनों में ठीक हो जाता है. यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है. इसलिए विटामिन ए और विटामिन डी का इन्जेक्शन लगाया जाता है. इसका सबसे अच्छा उपचार बच्चों में एमएमआर वैक्सीन देना है. चार साल के बाद इसका बूस्टर डोज दिया जाता है. चिकेन पॉक्स के लक्षण भी मिजिल्स जैसे ही होते हैं, लेकिन इसमें दाने थोड़े बड़े होते हैं. इसका टीका भी बच्चों को दिया जाता है, जिसे वैरीवेक्स कहते हैं. हालांकि इसके लिए एंटीवायरस भी उपलब्ध है. रोग होने पर यदि एंटीवायरस 72 घंटे के अंदर शुरू नहीं किया जाये, तो यह भयावह रूप ले लेता है और दूसरे अंगों जैसे – आंखों आदि पर भी फैलने लगता है, जिससे नुकसान होने का खतरा होता है. एंटीवायरस का डोज 5 दिनों तक चलता है. एक बार हो जाने के बाद इसके दोबारा होने की आशंका बहुत कम होती है. लेकिन कभी-कभी चिकेन पॉक्स का वायरस नसों की गांठ में सुसुप्तावस्था में रहता है और किसी कारण से एक्टिव होने पर एक ही डर्मेटोम (शरीर के जिस हिस्से तक वह नस रहती है) में पानी से भरे हुए दाने निकलते हैं. ये नर्व को डैमेज कर देते हैं. अत: उस हिस्से को छूने तक में मरीज को दर्द होता है. इसके लिए दवा 6 महीने से लेकर साल भर भी खाना पड़ सकता है. बातचीत : अजय कुमार

नीम है लाभदायक

भारतीय समाज में चिकेन पॉक्स की रोकथाम के लिए कई उपाय किये जाते हैं, उनमें नीम का उपयोग सबसे अधिक है. चूंकि नीम के औषधीय गुण प्रमाणित हो चुके हैं. अत: डॉक्टर भी मानते हैं कि इससे रोगी को फायदा होता है और यह इन्फेक्शन को फैलने से रोकता है. इसके सेवन से या तो यह होता ही नहीं है या फिर निकलता भी है, तो उग्र नहीं होता है. चिकेन पॉक्स के दाने निकलने पर रोगी को स्वच्छ घर में नीम के पत्ताें पर लिटाना, उसके जल से नहलाना, ताजा पत्तियों की टहनी को लटकाना तथा नीम का चंवर बना कर रोगी को हवा देना चाहिए. बिस्तर की पत्तियां रोज बदल देनी चाहिए. रोगी को यदि अधिक जलन महसूस हो, तो नीम की पत्तियों को पीस कर पानी में घोल कर तथा मथानी से मथ कर उसका फेन दानों पर सावधानी से लगाना चाहिए. इससे भी राहत नहीं मिलने पर नीम की पत्तियां पीस कर चिकेन पॉक्स के दानों पर हल्का लेप चढ़ाना चाहिए. नीम के बीज की गिरी को पीस कर भी लेप करने से जलन शीघ्र कम होती है. नीम की पत्तियों को पानी में उबाल कर पिलाने से भी जलन शांत होती है. इससे बुखार भी कम होता है और इसके दाने जल्दी सूखते हैं.

डॉ क्रांति

असिस्टेंट प्रोफेसर, एचओडी स्किन एंड वीडी डिपार्टमेंट, आइजीआइएमएस, पटना

Next Article

Exit mobile version