भाजपा से नाराजगी का मिला कांग्रेस को फायदा
आरती जेरथ राजनीतिक विश्लेषक delhi@prabhatkhabar.in पांच राज्यों में आये नतीजों में जनता की नाराजगी साफ झलक रही है. भाजपा की नीतियों से लोगों में बहुत नाराजगी है. भाजपा के कोर वोटर्स, मिडिल क्लास, दुकानदार, व्यापारी वर्ग, ये सब आर्थिक नीतियों को लेकर भाजपा से नाराज हैं. गावों में तो लोग नाराज हैं ही, किसानों की […]
आरती जेरथ
राजनीतिक विश्लेषक
delhi@prabhatkhabar.in
पांच राज्यों में आये नतीजों में जनता की नाराजगी साफ झलक रही है. भाजपा की नीतियों से लोगों में बहुत नाराजगी है. भाजपा के कोर वोटर्स, मिडिल क्लास, दुकानदार, व्यापारी वर्ग, ये सब आर्थिक नीतियों को लेकर भाजपा से नाराज हैं.
गावों में तो लोग नाराज हैं ही, किसानों की रैलियों ने भी इस नाराजगी को और बढ़ाया, जिसके चलते आज भाजपा के हाथ से वोटर छिटक रहे हैं. इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिला है. राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में तो हमेशा कांग्रेस-भाजपा के बीच सीधा टकराव रहा है. इसलिए भाजपा से नाराजगी कांग्रेस के वोट में परिवर्तित हो गयी है. लेकिन, यहां पर मैं एक बात जरूर कहना चाहूंगी कि इतनी नाराजगी के बाद भी कांग्रेस इसका भरपूर फायदा नहीं उठा पायी है.
कांग्रेस की जीत में उसकी अपनी भूमिका कुछ कम, जनता की भाजपा से नाराजगी बहुत ज्यादा रही है. कांग्रेस और भाजपा का वोट शेयर देखें, तो यह साफ समझ में आ रहा है कि कांग्रेस भले ही जीती हो, लेकिन भाजपा का सफाया नहीं हुआ है, जबकि देशभर में परिस्थितियां भाजपा के जाने की बनी हुई हैं. कांग्रेस की यह बहुत बड़ी कमजोरी है कि वह अक्सर अपने अनुकूल परिस्थितियों का फायदा नहीं उठा पाती है.
कांग्रेस की संगठनात्मक कमजोरी ही है कि उसने आत्मविश्वास की कमी के चलते किसी चेहरे तक को प्रोजेक्ट नहीं किया, बस चुनाव मैदान में उतर पड़ी कि जो होगा देखा जायेगा. न तो राजस्थान में, नामध्य प्रदेश में और न ही छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री का कोई चेहरा सामने आया. अगर विधायक दल के नेता के लिए चेहरे नजर आ रहे हैं, तो यह राज्यों में उनके प्रतिनिधित्व के कारण नजर आ रहे हैं, न कि नेतृत्व की चुनावी रणनीति के तहत आ रहे हैं.
कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि भाजपा से जनता की नाराजगी सिर्फ राज्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि केंद्र सरकार के खिलाफ नाराजगी है. इसे देशभर में देखा जा सकता है, खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा देखा जा सकता है. अब भी वक्त है कि कांग्रेस इस बात को समझ ले, ताकि उसे 2019 के आम चुनाव में एक बेहतर रणनीति बनाकर चुनाव लड़ने में कामयाबी मिल सके. वहीं भाजपा को भी यह सोचना होगा कि जब 2019 के आम चुनाव में वह उतरेगी, तो उसके लिए केवल राम मंदिर के दम पर जीत पाना अब मुश्किल होगा.
क्योंकि मोदी की आर्थिक नीतियों से जनता को जिस तरह की चोट पहुंची है, उसके घाव को कुछ महीनों में नहीं भरा जा सकता है. जनता इस बात को समझती है कि राम मंदिर से उसकी आस्था तो पूरी हो सकती है, लेकिन उसका पेट नहीं भर सकता.
जिन राज्यों में कांग्रेस का भाजपा से सीधा-सीधा टकराव है, वहां-वहां कांग्रेस को अपने संगठन को मजबूत करना होगा. जहां-जहां कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी है, वहां-वहां उसको गठबंधन बनाकर पार्टी और संगठन को मजबूत करना होगा. जिन राज्यों में भाजपा नहीं है, वहां कांग्रेस को अपना कैडर इतना मजबूत करना होगा कि उसके अलावा कोई विकल्प ही न बचे. वहीं भाजपा के लिए अब मुश्किल का समय आ गया है, क्योंकि आम चुनाव में कम समय बचा है.
अगले कुछ महीनों में वह कितना खुद को तैयार कर पाती है जनता की नाराजगी दूर करने के लिए, यह देखना होगा. लेकिन, इन नतीजों का असर तो जरूर देखने को मिलेगा. आम चुनाव में मुद्दे भले अलग होते हैं, लेकिन नाराजगी का असर पड़ता ही है. फिलहाल इन नतीजों से कांग्रेस को जो फायदा मिला है, उसे आगे अगर भुनाना है, तो अपने संगठन को मजबूत करना होगा.