फीकी पड़ गयी ‘ब्रांड मोदी’ की चमक!
रमाशंकर सिंह राजनीतिक विश्लेषक अब तक की जीतों का श्रेय यदि मोदी को मिलता है तो इस हार की जिम्मेदारी भी उनकी पांच राज्यों के चुनाव परिणाम किसी भी सूरत में भारतीय जनता पार्टी के लिए फायदेमंद नहीं रहे. जिन राज्यों (राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में) में वह सत्ता में थी, वहां (संभवत: मध्यप्रदेश में […]
रमाशंकर सिंह
राजनीतिक विश्लेषक
अब तक की जीतों का श्रेय यदि मोदी को मिलता है तो इस हार की जिम्मेदारी भी उनकी
पांच राज्यों के चुनाव परिणाम किसी भी सूरत में भारतीय जनता पार्टी के लिए फायदेमंद नहीं रहे. जिन राज्यों (राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में) में वह सत्ता में थी, वहां (संभवत: मध्यप्रदेश में भी) से बाहर हो गयी.
तेलंगाना और मिजोरम में भाजपा लिए कुछ था भी नहीं और मिला भी नहीं. जबकि इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की तरफ से हमेशा की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्टार प्रचारक रहे. अगर पिछले चुनावों में भाजपा की जीत का श्रेय उनको (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) जाता है तो इन हारों का ठीकरा भी उनके सिर ही फूटेगा. इसकी जवाबदेही भी उन्हें लेनी होगी.
इसका नकारात्मक असर आगामी लोकसभा चुनाव पर पड़ना तय है. फिलहाल इन राज्यों के चुनाव परिणाम से साफ हो गया है कि भारतीय राजनीति में बड़े ‘ब्रांड’ बने प्रधानमंत्री मोदी की चमक निश्चित तौर पर फीकी पड़ी है. इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है.
‘ब्रांड मोदी’ की चमक फीकी पड़ने की वजह कतई अचरज भरी नहीं है, क्योंकि उनकी गयी तमाम घोषणाओं (जिन्हें आलोचक जुमला कहते हैं) को वह सतह पर नहीं उतार सके. उनके दावे धरातल पर कहीं टिकते नहीं.
उदाहरण के लिए भाजपा के खिलाफ आये जनादेश में नोटबंदी सबसे अहम कारक रही. इसका नकारात्मक असर खेती, छोटे और कुटीर उद्योगों पर खासतौर पर पड़ा. खासतौर पर खेतीबारी (कृषि अर्थव्यवस्था) जो कैश (नकदी) से संचालित होती है, को मोदी के कैशलेस नारे ने जबरदस्त चोट पहुंचायी. लिहाजा किसानों की नाराजगी वोटिंग में दिखाई दी. जीएसटी अच्छा कदम है, लेकिन इसे गलत समय पर लागू किया गया.
इससे छोटे और फुटकर कारोबारी बुरी तरह प्रभावित हुए. कुल मिलाकर प्रधानमंत्री मोदी के सभी बड़े निर्णयों से आम लोगों खासतौर पर मध्यमवर्ग और छोटे कारोबारियाें को लगने लगा है कि मोदी सरकार केवल बड़े काॅरपोरेट घरानों की संरक्षक है. हैरत की बात है कि इन चुनावों में भाजपा के पाले से 7% से ज्यादा वोट शिफ्ट हुए हैं. यह बड़ी नाराजगी का प्रतीक है. इन चुनावों का आगामी लोकसभा चुनाव पर असर पड़ना तय है.
जिन राज्यों में चुनाव हुए, वे करीब 80 लोकसभा सीटों को प्रभावित कर सकते हैं. जाहिर है कि चुनावों में भाजपा की सीटें काफी कम होंगी. दूसरे, अगर हिंदी बेल्ट के दो बड़े राज्यों में चुनाव हों और वहां भाजपा के विरोध में दूसरे दल गठबंधन करते हैं तो भाजपा को काफी सीटों का नुकसान होगा. मोदी के लिए अपनी स्थिति को मजबूत करने या चमकाने का समय (अधिकतम तीन माह) बहुत कम है.
(जैसा कि प्रभात खबर को बताया)