लल थनहवला : सीएम, जो इस बार चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे
आइजोल : कांग्रेस के दिग्गज नेता और मिजोरम में पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके लल थनहवला इस बार चुनाव मैदान में नहीं उतरना चाहते थे. लेकिन, चुनाव लड़ने की स्थिति में लल थनहवला ने विधानसभा में फिर प्रवेश सुनिश्चित करने के लिए दो सीटों से पर्चा भरा, दोनों ही सीटों पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
अपने चार दशक से लंबे सियासी सफर में कांग्रेसी रहे लल थनहवला ने दिसंबर, 2013 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मीडिया से कहा था कि वह 2018 में चुनाव नहीं लड़ेंगे, क्योंकि वह तब 80 साल के हो जायेंगे. लेकिन, मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) और भाजपा से मिलने वाली चुनौती को देखते हुए वह रिकॉर्ड 10वीं बार विधानसभा पहुंचने के सपने के साथ गृह क्षेत्र सिरेछिप और चम्फाई दक्षिण से चुनाव मैदान में उतरे.
मिजोरम को 1987 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और इसके बाद वह 1989 में मुख्यमंत्री बने. हालांकि, वह 1989 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने थे. वह इससे पहले 1984 में मुख्यमंत्री बन चुके थे, लेकिन 30 जून, 1986 में मिजोरम संधि के बाद उन्होंने इसे लागू करने के लिए पद से इस्तीफा दे दिया था. एमएनएफ के सुप्रीमो लालडेंगा की सरकार में वह उप-मुख्यमंत्री बने. इसके बाद मिजोरम जनता दल के साथ गठबंधन कर वह 1993 में दोबारा चुन कर आये और तीसरी बार सत्ता पर काबिज हुए.
पांच बार बन चुके हैं मुख्यमंत्री, राजीव गांधी को करते हैं याद
देश के चुनावी इतिहास में ललथनहवला दूसरे ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो पांच बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं. इससे पहले माकपा के दिग्गज नेता रहे दिवंगत ज्योति बसु लगातार पांच बार पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे थे. वह 1978 के बाद से रिकार्ड नौवीं बार विधानसभा के लिए चुने गये थे. इस बार वह अपनी सीट बचा न सके. वह अभी भी मिजो समझौते के लिए राजीव गांधी को सम्मान से याद करते हैं, जिससे लुशाई पहाड़ियों में स्थायी शांति लौटी. उनके ड्राइंग रूम में पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के मिजोरम दौरे पर एक कॉफी टेबल बुक पड़ी रहती है.