नजारा आक्रामक फुटबॉल का
।। सत्येंद्र रंजन ।। वरिष्ठ पत्रकार पहले राउंड के 16 मैचों में 49 गोल हुए, सिर्फ दो मैच ड्रॉ हुए पहला दौर खत्म होने के बाद यह अनुमान लगाना ज्यादा कठिन हो गया है कि कौन-सी टीम वास्तव में 13 जुलाई की रात रियो द जनेरो के माराकाना स्टेडियम में ट्रॉफी उठायेगी. ब्राजील ने रेफरी […]
।। सत्येंद्र रंजन ।।
वरिष्ठ पत्रकार
पहले राउंड के 16 मैचों में 49 गोल हुए, सिर्फ दो मैच ड्रॉ हुए
पहला दौर खत्म होने के बाद यह अनुमान लगाना ज्यादा कठिन हो गया है कि कौन-सी टीम वास्तव में 13 जुलाई की रात रियो द जनेरो के माराकाना स्टेडियम में ट्रॉफी उठायेगी. ब्राजील ने रेफरी के विवादास्पद फैसलों वाले पहले मैच में तो क्रोएशिया पर 3-1 की जीत दर्ज की थी, लेकिन दूसरे राउंड के पहले मैच में मेक्सिको ने जिस तरह पानी पिलाते हुए उसे ड्रॉ (0-0) पर रोक लिया, उससे मेजबान टीम की क्षमताओं पर उसके प्रशंसक भी संदेह करने लगे हैं.
फीफा विश्व कप-2014 के पहले राउंड (सभी टीमों के एक-एक यानी कुल 16 मैच) की समाप्ति पर जो एक निष्कर्ष निकाला जा सकता है, वो यही कि इस बार दुनिया के सामने आक्रामक फुटबॉल का नजारा है.
इन तथ्यों पर गौर कीजिए- इस बार ड्रॉ रहा पहला मुकाबला टूर्नामेंट का 13 वां (ईरान-नाईजीरिया) मैच था. 1990 के विश्व कप में आठवां मैच ड्रॉ हुआ था और उसके बाद के सभी विश्व कप फाइनलों में उससे पहले ही कोई न कोई मैच बराबरी पर खत्म हुआ. रिकॉर्ड 1930 के प्रथम विश्व कप का है, जिसमें खेले गये सभी 18 मैचों में फैसला हुआ था.
पहले राउंड के 16 मैचों में 49 गोल हुए- यानी औसतन प्रति मैच 3.06 गोल. 2010 में दक्षिण अफ्रीका में हुए विश्व कप में गोल औसत 2.27 रहा था, जो 1990 (प्रति मैच 2.21 गोल) के बाद सबसे कम था. पिछले सभी 19 विश्व कप फाइनलों के तमाम मैचों में यह औसत 2.87 रहा है. यानी इस बार पहले राउंड में गोल औसत हाल के ट्रेंड और विश्व कप के कुल रिकॉर्ड से बेहतर है.
जो बात आंकड़े कहते हैं, वह दर्शकों का प्रत्यक्ष अनुभव भी है. पहले 16 मैचों में 14 में फैसला हुआ तो इसीलिए कि ज्यादातर टीमें इस बार दूसरे पक्ष के गोल पर आक्र मण की नीति के साथ आयी हैं. अथवा इस बार ऐसी ज्यादा टीमों ने क्वालीफाई किया है, जो आक्र ामक ढंग का फुटबॉल खेलती हैं. मुमकिन है कि अगले राउंडों में टीमों की रणनीति टूर्नामेंट में आगे बढ़ने की उनकी जरूरतों के हिसाब से बदले. इसके बावजूद अभी यह कहने का पर्याप्त आधार है कि 1990 के दशक का ऊबाऊ दौर गुजर गया है, जब खास कर यूरोपीय टीमों की रणनीति में गोल करने से ज्यादा गोल बचाना अहम हो गया था.
इटली की टीम कभी अपनी कैटेनेचियो स्टाइल के लिए बदनाम थी, जिसमें विपक्षी खिलाड़ियों को आगे न बढ़ने देना सर्व-प्रमुख होता था. पूरा खेल रक्षात्मक बना रहता था. कोशिश अचानक काउंटर अटैक से गोल कर बढ़त ले लेने की होती थी. एक समय लॉन्ग पास, शारीरिक ताकत और डिफेन्सिव तरीके ने भी खेल को बोरिंग बना दिया था, जिसमें सबसे महारत नॉर्वे की टीम ने हासिल की थी. बहरहाल, हाल के वर्षो में यूरोपीय क्लब लीग टूर्नामेंटों में भी तालमेल और छोटे पास के जरिए आक्र मण कर अधिक से अधिक गोल करने और फाउल से बचने की शैली लोकिप्रय हुई है. इस विश्व कप में आये खिलाड़ियों में 76 प्रतिशत यूरोपीय लीग में खेलते हैं, अत: ये अस्वाभाविक नहीं है कि वहां जो चलन है, उसकी झलक विश्व कप टूर्नामेंट में भी देखने को मिले.
पहले राउंड ने इस मान्यता की पुष्टि की है कि दुनिया भर की टीमों के स्तर, क्षमता और कौशल में अंतर तेजी से घटा है. हकीकत यह है कि आरंभिक दौर में कोई टीम ऐसी नहीं रही, जिसने मैच पर अपने प्रदर्शन से पूरा वर्चस्व कायम किया. नीदरलैंड्स ने जरूर स्पेन को बड़े अंतर से हराया, और जर्मनी ने पुर्तगाल को ध्वस्त कर दिया. गौरतलब यह है कि स्पेन की टीम संभावित विजेताओं में अपनी गिनती कराते हुए ब्राजील पहुंची थी और पुर्तगाल को कोई कमजोर नहीं मानता. स्पेन-नीदरलैंड्स का मैच अप्रत्याशित था, जबकि बड़ी जीत के बावजूद जर्मनी का प्रदर्शन प्रभावशाली नहीं माना गया. जिस एक टीम की आंतरिक शक्ति अपनी प्रतिष्ठा के मुताबिक मैदान पर उतरी, वह इटली है.
तो पहला दौर खत्म होने के बाद यह अनुमान लगाना ज्यादा कठिन हो गया है कि कौन-सी टीम वास्तव में 13 जुलाई की रात रियो द जनेरो के माराकाना स्टेडियम में ट्रॉफी उठायेगी. ब्राजील ने रेफरी के विवादास्पद फैसलों वाले पहले मैच में तो क्रोएशिया पर 3-1 की जीत दर्ज की थी, लेकिन दूसरे राउंड के पहले मैच में मेक्सिको ने जिस तरह पानी पिलाते हुए उसे ड्रॉ (0-0) पर रोक लिया, उससे मेजबान टीम की क्षमताओं पर उसके प्रशंसक भी संदेह करने लगे हैं. लियोनेल मेसी के एकमात्र चमत्कारिक क्षण को छोड़ कर बोस्निया हर्जेगोविना के आगे अर्जेटीना जैसी साधारण टीम महसूस हुई, उससे उसके समर्थकों को मायूसी हुई है. यानी टूर्नामेंट पूरी तरह खुला हुआ है. इस बीच अच्छी बात यह है कि दर्शकों को रात भर जागने की जहमत भारी नहीं पड़ रही है, क्योंकि उन्हें मनोरंजक और रोमांचक खेल तथा अच्छी क्वालिटी का फुटबॉल देखने को मिल रहा है.