भाषाओं को बनाया बिजनेस का आधार

द पीपुल्स लिंगग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार भारत एक ऐसा देश है, जहां आज लगभग 780 अलग-अलग भाषाएं बोली और 86 भाषाएं लिखी जाती हैं.इतना ही नहीं अब विभिन्न टेक्नोलॉजीज और स्मार्टफोन्स में भी लोगों को अपनी भाषा का प्रयोग करने की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है. देश में अलग-अलग भाषाओं के बढ़ते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 19, 2014 1:31 PM

द पीपुल्स लिंगग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार भारत एक ऐसा देश है, जहां आज लगभग 780 अलग-अलग भाषाएं बोली और 86 भाषाएं लिखी जाती हैं.इतना ही नहीं अब विभिन्न टेक्नोलॉजीज और स्मार्टफोन्स में भी लोगों को अपनी भाषा का प्रयोग करने की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है. देश में अलग-अलग भाषाओं के बढ़ते प्रसार को देखते हुए ही जगदीश सहसरा बुद्धे और राजीव फड़के ने भाषा प्रबंधन के आधार पर अपनी फर्म लिंग्वानेक्स्ट की नींव रखी और देखते-ही-देखते उनकी कंपनी ने एक सफल व्यवसाय का रूप ले लिया.

बॉम्बे आइआइटी से इंजीनियरिंग करने के साथ सिस्टम सॉफ्टवेयर एंड लैंग्वेज टेक्‍नोलॉजी सॉल्यूशंस में 18 साल का अनुभव रखनेवाले राजीव सहरसा बुद्धे को वर्ष 2002 में इमेज प्वॉइंट में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ. इस दौरान राजीव को सॉफ्टवेयर लोकलाइजेशन और डॉक्यूमेंट मैनेजमेंट से जुड़ी टेकAोलॉजी और प्रोडक्ट्स पर काम करने का मौका मिला. अपनी कंपनी की शुरुआत करने से पहले उन्होंने नौ साल सी-डैक में भी काम किया, जहां उन्हें कई गवर्नमेंट प्रोजेक्ट्स पर काम करने का मौका मिला. वहीं वर्ष 2010 में जब जगदीश सहसरा बुद्धे सीओओ रूप में इमेज प्वॉइंट से जुड़े तो जगदीश और राजीव ने अपनी पार्टनरशिप के साथ इसी कपंनी को लिंग्वानेक्स्ट की पहचान देकर एक नये सफर की शुरुआत की.

क्या है लिंग्वानेक्स्ट
लिंग्वानेक्स्ट, भाषा प्रबंधन की सुविधा उपलब्ध करानेवाला प्लेटफॉर्म है. यह फर्म सॉक्टवेयर एप्लीकेशंस के साथ काम करके मल्टी लैंग्वेज या लोकल लैंग्वेज को सपोर्ट करनेवाले सॉफ्टवेयर डेवलप करने का काम करती है. दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि लिंग्वानेक्स्ट, टेकAोलॉजी बेस्ड एक ऐसा सॉल्यूशन सिस्टम है, जिसकी मदद से किसी भी एंटरप्राइज, मोबाइल और किसी दूसरे सॉफ्टवेयर सिस्टम पर एप्लीकेशन कोड में परिवर्तन किये बिना किसी भी भाषा में काम करने की प्रक्रिया को आसान बनाया जा सकता है.

परिवर्तन ने आगे बढ़ाया कारोबार
चूंकि किसी भी उद्यम की सफलता, उससे जुड़े ग्राहकों की जरूरत पर निर्भर करती है. वर्ष 2005 में जब आरबीआइ ने यह जनादेश पारित किया कि ग्रामीण और उनकी अर्ध ग्रामीण शाखाओं को कोर बैंकिंग का हिस्सा बनाया जाये. इसी के बाद भारत में बैकिंग के क्षेत्र ने तेजी से प्रसार किया. ग्रामीण क्षेत्रों के बैंकों को लोकल भाषाओं में काम करने की आवश्यकता पड़ी क्योंकि इन क्षेत्रों में सिर्फ अंगरेजी भाषा का प्रयोग करके काम करना संभव नहीं था. इस जरूरत का राजीव की कंपनी लिंग्वानेक्स्ट को भरपूर फायदा मिला और कंपनी ने तरक्की की दिशा में आगे बढ़ना शुरू कर दिया.

विदेशों में भी है कार्यालय
आज राजीव और जगदीश की इस फर्म में 100 से अधिक लोग काम कर रहे हैं. भारत के अलावा उनकी कंपनी की शाखाएं जापान, सिंगापुर और अमेरिका में अच्छा बिजनेस कर रही हैं. कंपनी का हेडक्वाटर पुणो में हैं, जबकि अन्य देशों में इसके सहायक कार्यालय हैं. लिंग्वानेक्स्ट के कर्मचारियों में 75 से 80 प्रतिशत संख्या इंजीनियरिंग स्टाफ की है. आज बैंकिंग क्षेत्र के अलावा कंपनी के साफ्टवेयर ऑयल एंड गैस, इंडस्ट्रियल ऑटोमेशन, एंटरप्राइजेस रीसोर्स प्लानिंग, ह्यूमन रिसोर्स आदि क्षेत्रों में प्रयोग किये जा रहे हैं. कंपनी के ट्रांसलेट सॉफ्टवेयर एप्लीकेशंस 140 लोकल भाषाओं में उपलब्ध हैं, जो साउथ इस्ट एशिया, जापान, चाइना और लेटिन अमेरिका में प्रयोग किये जा रहे हैं.

बढ़ना है और आगे
लिंग्वानेक्स्ट विभिन्न देशों के कई क्षेत्रों में प्रवेश कर चुकी है, लेकिन अभी भी ऐसे कई क्षेत्र हैं जिन्हें अलगे कुछ वर्षो में कवर करने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए कंपनी में योग्य एप्प डेवलपर और ओइएम मैन्युफैर्स को अपने साथ जोड़ने के बारे में सोच-विचार किया जा रहा है. उत्पाद के नजरिये से कंपनी बाजार की गतिशीलता के आधार पर अपने प्रोडक्ट्स पर काम कर रही है.

पहले जहां लैंग्वेज मैनेजर प्रोडक्ट्स का प्रयोग बैंक व दूसरी कंपनियों में किया जाता था, वहीं आज इंटरनेट का प्रयोग करनेवाले ग्राहक मोबाइल और कंप्यूटर जैसे उपकरणों पर भी इनका प्रयोग कर रहे हैं. ऐसे में कंपनी उन लैंग्वेज मैनेजर प्रोडक्ट्स के निर्माण पर जोर दे रही है, जिनका इस्तेमाल ग्राहक खुद अपने मोबाइल या कंप्यूटर पर कर सकते हैं.

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