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केक पुडिंग और क्रिसमस के जायके

भारत में विभिन्न प्रदेशों में रहनेवाले ईसाई लोग क्रिसमस केक तो खाते और खिलाते ही हैं, बहुत सारे ऐसे पकवान भी तैयार करते हैं, जो स्थानीय जुबान पर चढ़े हुए जायकों को ही झलकाते हैं. क्रिसमस के मौके पर भारत के कुछ हिस्सों में बनाये जानेवाले प्रमुख पकवानों के बारे में बता रहे हैं व्यंजनों […]

भारत में विभिन्न प्रदेशों में रहनेवाले ईसाई लोग क्रिसमस केक तो खाते और खिलाते ही हैं, बहुत सारे ऐसे पकवान भी तैयार करते हैं, जो स्थानीय जुबान पर चढ़े हुए जायकों को ही झलकाते हैं. क्रिसमस के मौके पर भारत के कुछ हिस्सों में बनाये जानेवाले प्रमुख पकवानों के बारे में बता रहे हैं व्यंजनों के माहिर प्रोफेसर पुष्पेश पंत…
दुनियाभर में ईसा मसीह का जन्मदिन क्रिसमस के त्योहार के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. हिंदुस्तान में कई लोग इसे बड़ा दिन के नाम से मानते-पहचानते हैं और बड़े दिन का खाना इसकी खास पहचान है.
क्रिसमस के पारंपरिक दस्तरखान में कुछ चीजेें पश्चिमी देशों में अनिवार्य समझी जाती हैं. मसलन- टर्की मुसल्लम, रोस्ट लैग ऑफ लैम, मसालेदार कीमे की मिन्सपाई और क्रिसमस के मौके पर तैयार किये जानेवाले केक और पुडिंग. इनमें क्रिसमस पुडिंग रंग या बैंडी में अंडों को फेंटकर तैयार किये घोल में मेवे और सूखे फलों के मिश्रण से बनाया जाता है और काफी दिनों तक खराब नहीं होता.
भारत में विभिन्न प्रदेशों में रहनेवाले ईसाई लोग क्रिसमस केक तो खाते और खिलाते ही हैं, बहुत सारे ऐसे पकवान भी तैयार करते हैं, जो स्थानीय जुबान पर चढ़े हुए जायकों को ही झलकाते हैं. ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दौर में भारत में एंग्लो इंडियन बिरादरी के लोग काफी संख्या में इधर-उधर बिखरी बस्तियों में रहते थे, इनमें से अधिकांश पुलिस या रेलवे महकमों के मुलाजिम थे और कुछ अंग्रेजी माध्यम वाले पब्लिक स्कूलों में पीटी इंस्ट्रक्टर या बैंड मास्टर के रूप में काम करते थे.
कुछ लोग बरसों एक ही जगह रहते थे और दूसरों के तबादले में इधर-उधर भटकते नये स्वाद चखते थे. आज इनमें अधिकांश ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा जाकर बसने लगे हैं. बड़े दिन के इनकी खाने की यादें ही बची रह गयी हैं. फौज के ऑफिसर्स मैस में, पब्लिक स्कूलों के होस्टलों में और चाय बागानों में, मैनेजरों के बंगलों में इस मौके पर यह रस्मी खाना आज भी कभी-कभी खाने को मिल जाता है.
इन व्यंजनों में मुगलियां कोफ्ते का अनुसरण करनेवाली मीट बॉल करी रहती है और हिंदुस्तान में दुर्लभ टर्की की जगह चिकन रोस्ट से काम चलाया जाता है. केरल की आबादी का एक बड़ा हिस्सा उन ईसाइयों का है, जो ईसा के जन्म के बाद पहली शताब्दी में ही यहां आकर बस गये थे और सुरयानी या सीरियाई ईसाई कहलाते हैं.
बड़े दिन के इनके खाने में फिश बिरयानी या तेलीसरी की बिरयानी रहती है और जितनी अहमियत केक को मिलती है, उससे कहीं अधिक अंडे की जर्दी से तैयार किये जानेवाली मिष्ठान मुट्टमाला को दी जाती है. कोच्ची जैसे शहर में रोस्ट लैग ऑफ लैम को पुदीने के सॉस के साथ पेश किया जाता है, तो अन्यत्र बीफ रोस्ट भी चाव से खाया जाता है.
गोवा में पुर्तगाली रोमन कैथलिक प्रभाव खानपान और रहन-सहन में साफ झलकता है. यहां भी भले ही पीने के लिए पॉर्ट वाइन की बोतलें खोली जाती हों, पर खाने के लिए स्थानीय सारपोटेल और विंडालू ही मेज पर शान से बिराजते हैं.
किवदंती के अनुसार, बिबिनका नामक केक एक बिशप की फरमाइश पर गोवा में ही तैयार किया गया था, जिसकी सात परतें पवित्र नगरी रोम की सात पहाड़ियों का प्रतिनिधित्व करती हैं. इसकी तुलना में गोवावासी भात नामक मिठाई को क्रिसमस के मौके पर खाते-खिलाते हैं. इसे नारियल और गुड़ से तैयार किया जाता है और यह तले हुए मुलायम शकरपारे या ठेकुए की ही याद दिलाती है. गोवा तटवर्ती राज्य है और यहां मछलियां इफरात में मिलती हैं, इसलिए क्रिसमस की दावत पर गोवा की फिश करी जरूर रहती है.
उत्तर-पूर्वी राज्यों में मेघालय, मिजोरम तथा नागालैंड में आबादी का बड़ा हिस्सा धर्मपरायण ईसाइयों का है. ये लोग बड़े दिन पर आस्था के साथ गिरजाघर की सामूहिक प्रार्थना में भाग लेते हैं, पर वहां क्रिसमस की दावत पर मेहमानों की खातिरदारी स्थानीय व्यंजनों से ही की जाती है, जिनमें मिर्च-मसाला और चिकनाई बहुत कम रहती है. सूखे या ताजे पोर्क के और बतख के व्यंजन कई प्रकार से पकाये जाते हैं. बांस की कोंपले और खमीर चढ़े सोयाबीन की चटनी से जायके बदलते रहते हैं.
तो जीभर कर खाएं-खिलाएं, बड़ा दिन मुबारक. नये साल की भी शुभकामनाएं!
रोचक तथ्य
केरल में ईसाई लोगों के खाने में फिश बिरयानी या तेलीसरी की बिरयानी रहती है.
कोच्ची में रोस्ट लैग ऑफ लैम को पुदीने के सॉस के साथ पेश किया जाता है.
किवदंती है कि बिबिनका नामक केक एक बिशप की फरमाइश पर गोवा में ही तैयार किया गया था, जिसकी सात परतें पवित्र नगरी रोम की सात पहाड़ियों का प्रतिनिधित्व करती हैं.
मेघालय, मिजोरम तथा नागालैंड में क्रिसमस की दावत स्थानीय व्यंजनों से की जाती है, जिनमें मिर्च-मसाला और चिकनाई बहुत कम रहती है.

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