मिलिए बहनों के बैंड से !

सुप्रिया सोगले मुंबई से बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए भारतीय लोक-कला और संस्कृति की चौंकाने वाली विविधता हमेशा से कौतुहल का विषय रही है. ग्लोबलाईज़ेशन ने लोक-कलाओं को दुनिया के मंच पर पहुंचने के सपने दिए. हालांकि ख़ुद भारतीय युवा पीढ़ी ने लोकसंगीत को वो तवज्जो नहीं दी. जहां आज बहुसंख्यक युवा पाश्चात्य संगीत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 22, 2014 4:07 PM

भारतीय लोक-कला और संस्कृति की चौंकाने वाली विविधता हमेशा से कौतुहल का विषय रही है. ग्लोबलाईज़ेशन ने लोक-कलाओं को दुनिया के मंच पर पहुंचने के सपने दिए.

हालांकि ख़ुद भारतीय युवा पीढ़ी ने लोकसंगीत को वो तवज्जो नहीं दी.

जहां आज बहुसंख्यक युवा पाश्चात्य संगीत की दीवाने है वही देश के पूर्वोत्तर कोने -नागालैंड से निकला है अनोखा युवा लोक गीत बैंड "टेटसेओ सिस्टर्स "

बहनों का बैंड

टेटसेओ सिस्टर्स की ख़ासियत यह है कि यह टेटसेओ परिवार की चार बहनों से मिलकर बना है. मुतसेवेलु ( मर्सी ), अज़िन (अज़ी ), कुवेलु (कुकु ), अलुन (लूलू ).

ये बहने कोहिमा में रहती है और नागालैंड के चाखेसंग आदिवासी जाति से है और वहां के लोक गीत "ली" गाते है. टेटसेओ सिस्टर्स के माता-पिता दोनों सरकारी अध्यापक रह चुके हैं और दोनों ही चर्च में गीत गाया करते थे.

घर में संगीत का माहौल होने के कारण चारों बहने भी संगीत से बचपन से जुड़ी रही। चारों बहनो ने 1994 में अपनी कला का पहला कार्यक्रम अपने स्कूल में दिया था.

इसके बाद उन्हे अपनी कला के प्रदर्शन करने के कई निमंत्रण मिलते रहे.

साल 2000 में इस बैंड को एक शो में टेटसेओ सिस्टर्स का नाम मिला.

टेटसेओ सिस्टर्स ने कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सेदारी की है.

इसमें साल 2008 में बैंकॉक में हुई नार्थ ईस्ट ट्रेड अपॉर्च्यूनिटी समिट, 2010 कॉमनवेल्थ खेलों का क्वीन बैटन रिले शामिल है.

2011 में टेटसेओ सिस्टर्स ने अपनी पहली ऐल्बम बनाई "ली चैप्टर ओने – द बिगनिंग ".

बैंड की चुनौती

जहां देश के दूसरे राज्यों में लड़कियों के बैंड बन तो जाते है पर वक़्त के साथ बिखर जाते हैं या अपना अस्तित्व खो देते है. वहीं टेटसेओ सिस्टर्स बैंड के साथ ऐसा नहीं हुआ.

बैंड की सदस्या मर्सी कहती है " शुक्र है यहाँ (कोहिमा ) में लड़का और लड़की का कोई भेद भाव नहीं है. हमें अपने भाइयों और माता पिता से काफ़ी सहयोग मिला है. पर हमारे लिए चुनौती ये है हम देश के ऐसे कोने में है जहा शो मिलना मुश्किल होता है और हम सभी विद्यार्थी है और अज़ी की शादी हो चुकी है तो हर बार एक साथ जाना मुमकिन नहीं हो पाता. कई बार हम दो लोग चले जाते है.”

मर्सी ये भी बताती हैं कि शो में पैसे तो अच्छे-ख़ासे मिलते हैं लेकिन शो हमेशा नहीं मिलते. अगर शहर से बाहर जाकर शो करना पड़े तो कई बार अपने पैसे ख़र्च करने पड़ते हैं.

नागालैंड का संगीत

उत्तर पूर्वी संगीत के जानकार आयुष्मान दत्ता और आर के सुरेश का कहना है कि " उत्तर पूर्वी संगीत की खोज हाल ही में हुई है और सांस्कृतिक संगीत का कोई लिखित या ऑडियो विज़ुअल दस्तावेज नहीं है. ये बुज़ुर्ग से दूसरी पीढ़ी को मौखिक तौर पर ही मिलती है."

आयुष्मान दत्ता कहते है की "अंग्रेज़ जब आए थे तब तक कोई प्रशासन नहीं था और यहाँ उग्र सैनिक आदिवासी रहा करते थे अंग्रेज़ों ने सभी को एक कर दिया और नागालैंड बना. कई लोगों ने ईसाई धर्म अपनाया. नागालैंड के लोक गीतों में उग्रता और युद्ध की व्याख्या होती है और लोक गीत के रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी इसे जीवित रखा है."

आयुष्मान इस बैंड के योगदान पर बात करते हुए कहते हैं,"टेटसेओ सिस्टर्स की बात करें तो उनके लोक गीत ली है जो चाखेसंग आदिवासिओ का लोक गीत है. उन्होंने ली गीत को विज्ञान में ढला है. उनकी ख्याति की वजह से अब देश के दूसरे भाग नागालैंड को भी पहचानते हैं."

युवाओं का रुख़

टेटसेओ सिस्टर्स, आर के सुरेश और आयुष्मान दत्ता तीनों मानते हैं कि 5-7 सालों में उत्तर पूर्वी संगीत में युवाओं की रूचि बढ़ी है इसका एक बड़ा कारण टीवी और इंटरनेट क्रांति है.

मर्सी का कहना है कि "आज के कई युवा अपने जड़ों से रूबरू होना चाहते हैं इसलिए लोकगीतों की लोकप्रियता बढ़ रही है."

वहीं आयुष्मान दत्ता मानते हैं कि " सरकार के पास लोकगीतों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं हैं पर उनमे और अधिक ज़मीनी काम करने की ज़रूरत है."

(बीबीसी हिंदी का एंड्रॉयड मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें. आप ख़बरें पढ़ने और राय देने के लिए हमारे फ़ेसबुक पन्ने पर भी आ सकते हैं और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

Next Article

Exit mobile version