मराठी भाषा के सबसे बड़े साहित्यिक कार्यक्रम अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन से साहित्यकार नयनतारा सहगल का नाम हटा दिया गया है.
11 से 13 जनवरी को यवतमाल में 92वें साहित्य सम्मेलन का आयोजन होना है. इसका उद्घाटन साहित्यकार नयनतारा सहगल को करना था और उन्हें उद्घाटन भाषण भी देना था लेकिन आयोजकों ने ऐन मौक़े पर उन्हें इस सम्मेलन में आने से मना कर दिया.
उनके इस सम्मेलन में शामिल होने पर पहली बार महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने आपत्ति जताई थी उनका कहना था कि इसका उद्घाटन किसी मराठी साहित्यकार द्वारा ही किया जाना चाहिए जबकि नयनतारा अंग्रेज़ी की लेखिका हैं.
किसानों के लिए काम करने वाले शेतकरी न्याय आंदोलन समिति ने भी नवनिर्माण सेना का समर्थन किया था.
‘असहमतियों को दबाने की कोशिश’
नयनतारा ने बीबीसी मराठी से बातचीत में कहा, "मैं इस कार्यक्रम में क्यों नहीं आ सकती इसको लेकर आयोजकों ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है. उन्होंने सिर्फ़ यह कहा है कि कुछ अपरिहार्य कारणों से इस कार्यक्रम में न आएं. असहमतियों को दबाने कि कोशिश सिर्फ़ महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि पूरे देश में हो रही है."
"महाराष्ट्र जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य में जो यह हुआ है, उससे मुझे बुरा लग रहा है. मैंने मुंबई और महाराष्ट्र में बहुत से साहित्य से जुड़े कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है लेकिन आयोजकों के इस रवैये से मैं दुखी हूं."
शेतकरी न्याय आंदोलन समिति के देवानंद पवार कहते हैं कि उनकी भूमिका सिर्फ़ इतनी ही थी कि उनका मानना था कि अंग्रेज़ी लेखक के हाथ से उद्घाटन नहीं होना चाहिए लेकिन सहगल की अवमानना का उनका उद्देश्य नहीं था, आयोजकों को इस पर पहले ही विचार करना चाहिए था और इस तरह से सहगल को ऐन मौक़े पर न आने को कहकर माफ़ी मांगनी चाहिए.
सम्मेलन के मुख्य आयोजक अखिल भारतीय मराठी महामंडल के अध्यक्ष श्रीपाद जोशी का कहना है कि महामंडल लेखकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आदर करता है लेकिन इस सम्मेलन में व्यवधान उत्पन्न करने की धमकी कुछ लोगों ने दी थी तो इसी वजह से यह फ़ैसला लिया गया था और उन्हें बुलाने का फ़ैसला स्थानीय आयोजकों ने लिया था.
साहित्य सम्मेलन के कार्याध्यक्ष रमाकांत कोलते का कहना है कि कुछ लोगों ने उनकी भाषा पर सवाल उठाए थे कि वह अंग्रेज़ी की लेखिका हैं.
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कौन हैं नयनतारा सहगल
नयनतारा सहगल जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयालक्ष्मी पंडित और रंजीत सीताराम पंडित की बेटी हैं. नेहरू परिवार से जुड़े होकर भी उन्होंने आपातकाल का जमकर विरोध किया था.
1986 में इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. सहगल प्रधानमंत्री मोदी की आलोचक रही हैं. देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दबाने और बढ़ती कट्टरता के विरोध में शुरू हुए अवॉर्ड वापसी अभियान के दौरान नयनतारा पुरस्कार वापस करने वाले साहित्यकारों में से एक थीं.
साहित्य सम्मेलन में सहगल जो भाषण देने वाली थीं उसकी प्रति बीबीसी मराठी को प्राप्त हुई है जिसमें उन्होंने देश की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता, मॉब लिंचिंग, इतिहास के पुनर्लेखन, संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता आदि जैसे मुद्दों पर जमकर हिंदुत्व विचारधारा की आलोचना की है.
अपने लिखित भाषण में नयनतारा ने अपने माता-पिता के स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका का ज़िक्र करते हुए कहा है कि उन्होंने हज़ारों स्वतंत्रता सेनानियों के साथ देश के लिए लड़ाई लड़ी क्योंकि उनमें आज़ादी को लेकर जुनून था लेकिन क्या वह जुनून आज भी है.
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उन्होंने लिखा है, "क्या हम उन पुरुष-महिलाओं का सम्मान करते हैं जो हमसे पहले चले गए हैं, जिनमें से कइयों ने लड़ते हुए जानें दी हैं ताकि भविष्य के भारतीय स्वतंत्र जी सकें. मैं यह सवाल इसलिए पूछ रही हैं क्योंकि हमारी स्वतंत्रता खतरे में है."
उन्होंने अपने भाषण में लिखा है कि लोग क्या खा रहे हैं, क्या पहन रहे हैं और उनकी क्या विचारधारा है, आज सब पर सवाल किए जा रहे हैं और धर्म के नाम पर नफ़रत के बीज बोए जा रहे हैं.
उन्होंने लिखा कि नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एंड लाइब्रेरी और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जैसे उच्च संस्थान हिंदुत्व की नफ़रत का शिकार हो रहे हैं.
नयनतारा कहती हैं कि वह हिंदू होते हुए और उनका सनातन धर्म में विश्वास होते हुए वह हिंदुत्व को कभी स्वीकार नहीं कर सकती.
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