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अहमदाबाद का काइट फेस्टिवल
डॉ कायनात काजी सोलो ट्रेवलर पतंग उड़ाना इंसान के पंछी बन दूर गगन में उड़ने की इच्छा का सजीला प्रतीक है. हमारे देश में यह अलग-अलग मौकों पर देखा जाता है. गुजरात में मकर संक्रांति के अवसर पर पतंग उड़ाने का रिवाज है. एक बड़े उत्सव के रूप में अहमदाबाद में इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल के […]
डॉ कायनात काजी
सोलो ट्रेवलर
पतंग उड़ाना इंसान के पंछी बन दूर गगन में उड़ने की इच्छा का सजीला प्रतीक है. हमारे देश में यह अलग-अलग मौकों पर देखा जाता है. गुजरात में मकर संक्रांति के अवसर पर पतंग उड़ाने का रिवाज है. एक बड़े उत्सव के रूप में अहमदाबाद में इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल के तौर पर इसे मनाया जाता है.
काइट फेस्टिवल की तैयारी महीनों पहले से होने लगती है. अहमदाबाद की गलियों में पतंग के बाजार सज जाते हैं. यहां रॉकेट, चील, गरिया, चोकरी, चांदतारा और पुछड़ पतंगों के प्रकार हैं. यहां लोग पतंग उड़ाने में जोर-शोर से भाग लेते हैं. पतंगबाजी में सामने वाले की पतंग काटकर जोर से ‘काय पो छे’ का नारा लगाते हैं. ‘काय पो छे’ का अर्थ गुजराती में ‘मैंने तेरी पतंग काट दी’ से जुड़ा हुआ है.
बदलते समय के साथ इस पारंपरिक लोक उत्सव ने विश्वव्यापी स्तर पर पहचान बनायी है. अहमदाबाद में साबरमती फ्रंट पर बड़े विशाल स्तर पर इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल का आयोजन होता है. यहां दूर-दूर से लोग भाग लेने आते हैं. एक से बढ़कर एक पतंगें नजर आती हैं. अलग-अलग रंग, आकर की ये पतंगें पांच रुपये से हजारों रुपये की कीमत वाली होती हैं.
अहमदाबाद के रसूल भाई एक डोर में 500 पतंगों को उड़ाने का कीर्तिमान कायम कर चुके हैं. मकान की छतें युवा लड़कों से भरी रहती हैं, वहीं लड़कियां भी पेंच लड़ाने से पीछे नहीं रहतीं. माहौल को रंगारंग बनाने के लिए लोग गीत-संगीत भी शामिल करते हैं.
पतंग में कंदील बांधकर सधे हाथों से उड़ाना एक महारत है. बस एक ही शर्त है- ऊंचाई कितनी भी हो जाये, लेकिन कंदील के अंदर रखी मोमबत्ती बुझनी नहीं चाहिए. अब तो एलईडी पतंगें भी खूब नजर आती हैं. अहमदाबाद में कई प्रोफेशनल काइट फ्लाइंग क्लब चलते हैं. इन क्लबों ने इस प्राचीन खेल को एक इंटरनेशनल स्पोर्ट्स के रूप में स्थापित करने में बड़ी मेहनत की है.
मकर संक्रांति हिंदू समाज में एक मात्र ऐसा त्योहार है, जो सूर्य की गति पर केंद्रित होता है. यह हर वर्ष चौदह जनवरी को मनाया जाता है. इस दिन खिचड़ी खाने का रिवाज बड़ा ही वैज्ञानिक है.
इस दिन नदियों और पवित्र सरोवर में स्नान भी किया जाता है. कहते हैं सूर्य की स्थिति बदलने से नदियों में वाष्पन की क्रिया होती है. ऐसे समय में नदी के जल में स्नान करने से रोग दूर होते हैं. इसीलिए प्रयागराज में कुंभ मेला में मकर संक्रांति के दिन पवित्र स्नान होता है. इस दिन से पवन अपनी दिशा भी बदलता है. इसीलिए शायद इस दिन पतंग उड़ाने का चलन शुरू हुआ होगा. इसी दिन से सर्दी भी घटने लगती है.
अहमदाबाद में इस उत्सव की बड़ी धूम देखी जाती है. पूरा परिवार एक जगह जमा होता है. सुबह से ही खिचड़ी, गुड़, तिल और कपड़े दान में दिये जाते हैं.
इस दिन भगवान सूर्य की पूजा होती है. महिलाएं बेसन और मेथी की डिश ‘ऊंधिया’ पकाती हैं. इस दिन गरमा-गरम जलेबी भी खायी जाती है. तिल के लड्डू बनाये जाते हैं. दादी-नानी बच्चों के लिए तिल के लड्डुओं में पैसा छुपा देती हैं, ताकि लालच में बच्चे लड्डू खायें.
गुजरात के लोग इस पर्व से जुड़ी कई पौराणिक कहानियां भी सुनाते हैं. गंगा मां को धरती पर लाने के लिए राजा भगीरथ को बड़े प्रयत्न करने पड़े थे. उनकी कड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा धरती पर आयीं और इसी दिन गंगा मां समुद्र में जाकर मिल गयीं.
इस साल काइट फेस्टिवल 6 से 14 जनवरी के बीच पूरे गुजरात में मनाया जा रहा है. गुजरात टूरिज्म द्वारा इसका आगाज अहमदाबाद स्थित साबरमती रिवर फ्रंट से किया जाता है और हर दिन गुजरात के अलग-अलग शहरों में आयोजित किया जाता है.
फेस्टिवल में भाग लेने ऑस्ट्रेलिया, बेलारूस, ऑस्ट्रिया, नेपाल, जर्मनी, कनाडा और इस्राइल की टीमें आती हैं. यहां भिन्न-भिन्न आकर-प्रकार की पतंगें ड्रैगन से लेकर डोरेमोन और शक्तिमान से लेकर छोटा भीम तक सब हवा से बातें करती हैं.
कोई अपनी बड़ी सी पतंग से सब में धौंस जमाने में लगा होता है, तो कोई अपनी पतंग के सहारे अवेयरनेस फैलाने का काम करता है. इन पतंगों के जरिये राजनीति से लेकर स्वच्छता मिशन तक के मुद्दे आसमान में तैरते नजर आते हैं. जोश और उमंग से भरे इस फेस्टिवल का इंतजार पूरे सालभर किया जाता है.
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