नयी दिल्ली : महागठबंधन की बजाय राज्यों के हिसाब से गठबंधन बनाने की क्षेत्रीय दलों की कोशिश के बाद भाजपा इस गठबंधन से निबटने के लिए विभिन्न स्तरों पर रणनीति बनाने को विवश है. पहले संभावना थी कि भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनेगा. अगर ऐसा होता तो भाजपा इस बात को प्रचारित करती की सभी दल मोदी को हराने के लिए एकजुट हो गये हैं और इसका फायदा भी पार्टी को होता. लेकिन, विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय दलों के गठजोड़ की सूरत में भाजपा को ऐसा होता दिख नहीं रहा है.
विभिन्न सामाजिक आधार वाले दलों के साथ आने की सूरत में भाजपा को हर क्षेत्र में 50 फीसदी मत हासिल करने का प्रयास करना होगा. क्योंकि एक मजबूत विपक्ष के अलावा केंद्र सरकार के खिलाफ नाराजगी और कई राज्यों में भाजपा सरकार होने का नुकसान भी पार्टी को उठाना पड़ सकता है. ऐसी स्थिति में पार्टी हर राज्य के हिसाब से रणनीति बनाने में जुटी है. जिन राज्यों में सीधे कांग्रेस से मुकाबला है, वहां राष्ट्रीय मुद्दे हावी हो सकते हैं, लेकिन क्षेत्रीय दलों से मुकाबले की सूरत में स्थानीय मुद्दे को प्रमुखता दी जायेगी. पहले संभावना जतायी जा रही थी कि भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के नेतृत्व में महागठबंधन बन सकता है. लेकिन सपा-बसपा के बीच हुए गठबंधन से कांग्रेस को बाहर करने के बाद ऐसी संभावना खत्म हो गयी है.
राज्य स्तर पर गठजोड़ से भाजपा विरोधी मतों को करेगी गोलबंद : क्षेत्रीय दलों का मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन का एक नुकसान यह भी है कि पार्टियों के बीच आपसी विवाद राष्ट्रीय सुर्खियां बनते है और इसे भाजपा भुनाने की कोशिश भी करती है. राज्य स्तर पर गठजोड़ करने से भाजपा विरोधी मतों को गोलबंद करने में ज्यादा सहूलियत होती है. यूपी में सपा-बसपा से कांग्रेस के गठजोड़ न होने का एक कारण यह भी रहा है. 25 साल बाद एक बार फिर भाजपा को सपा-बसपा गठबंधन से मुकाबला करना होगा. उसी तरह बिहार में एनडीए का मुकाबला राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन से होगा. केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के लिए भाजपा को उत्तर प्रदेश और बिहार में पुराने प्रदर्शन को दोहराना होगा. भाजपा नेताओं का कहना है कि कई राज्यों में कांग्रेस मुकाबले में नहीं है और पार्टी का मुख्य मुकाबला क्षेत्रीय दलों से ही होगा और इसमें स्थानीय मुद्दे ही हावी रहेंगे. वहीं कांग्रेस से मुकाबले की सूरत में राष्ट्रीय मुद्दों का भी असर होता है. ऐसे में भाजपा को राज्यों में विभिन्न दलों के हिसाब से रणनीति बनानी पड़ रही है.
रथयात्रा के बदले अमित शाह करेंगे ताबड़तोड़ रैलियां
पश्चिम बंगाल में भाजपा की रथयात्रा की बात नहीं बनने के बाद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह एक नया प्लान लेकर आये हैं. अब अमित शाह रथयात्रा की जगह पूरे राज्य में जनसभाओं को संबोधित करेंगे. जानकारी के मुताबिक, अमित शाह पश्चिम बंगाल के अलग-अलग जिलों में पांच जनसभाओं को संबोधित करेंगे, जिसकी शुरुआत वह 20 जनवरी को मालदा जिले से करेंगे. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने बताया कि कोर्ट ने हमारी यात्रा का विरोध किया है, इसलिए अब इसे (रैली को) ‘गणतंत्र बचाओ सभा’ कहा जायेगा.
ममता की रैली में शामिल हो सकते हैं शत्रुघ्न सिन्हा
तृणमूल की रैली में भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा भी शामिल हो सकते हैं. सिन्हा खुलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मोदी सरकार और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की मुखालफत करते रहे हैं. वह भाजपा विरोधी नेताओं से भी मिलते रहे हैं और उन्हें दोस्त व शुभचिंतक बताते रहे हैं.
अखिलेश से मिले जमीयत अध्यक्ष मौलाना मदनी
लोकसभा चुनाव को लेकर यूपी में सपा-बसपा गठबंधन को लेकर जारी गहमागहमी के बीच देश में मुसलमानों के प्रमुख सामाजिक संगठन जमीयत उलमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने गुरुवार को सपा मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात की. यह मुलाकात वर्तमान सियासी परिप्रेक्ष्य में थी. उन्होंने दावा किया कि समाज के अन्य वर्गों के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदाय भी पूरी तरह गठबंधन के साथ है.
तृणमूल की मेगा रैली में शामिल होगी बसपा
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इस बात की पुष्टि की है कि शनिवार को कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस द्वारा बुलायी गयी विपक्ष की रैली में बसपा हिस्सा लेगी. तृणमूल कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि अभी-अभी बसपा ने इस बात की पुष्टि की है कि उसके राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा 19 जनवरी को विपक्ष की रैली में शामिल होंगे. तृणमूल नेता ने कहा कि बसपा के आने की पुष्टि के साथ ही अब यह स्पष्ट हो गया है कि सभी बड़े विपक्षी दल कांग्रेस, राकांपा, नेशनल कांफ्रेंस, सपा, आप, द्रमुक, जदएस और तेदेपा इस रैली में भाग लेंगे. हालांकि, माकपा की अगुआई में वामदलों ने रैली में नहीं जाने का फैसला किया है.
जयंत सिन्हा ने कहा- स्थिर सरकार की संभावना कम
केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने कहा कि इस बात की ‘काफी संभावना’ है कि आगामी लोकसभा चुनाव के बाद देश को संभवत: एक मजबूत और स्थिर सरकार नहीं मिल पायेगी. मंत्री ने कहा कि देश में बदलाव आया है और अब प्राथमिकता लोगों को जो बदलाव देश में आया है उसके बारे में बताने की है. सिन्हा ने एक समारोह में कहा, यदि हम ऐसी स्थिति में पहुंचते हैं जहां हमें मजबूत और स्थिर सरकार नहीं मिलती है, और जिसकी मुझे काफी संभावना लगती है.
आंध्र में चंद्रबाबू नहीं करेंगे किसी के साथ गठबंधन
टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने के मूड में नहीं है. पार्टी अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ना चाहती है. पार्टी को लगता है कि आंध्र प्रदेश में कांग्रेस को लेकर नकारात्मक माहौल है. ऐसे में पार्टी अगर उनके साथ हाथ मिलाती है तो उसे खतरा मोल लेना होगा. हाल ही में संपन्न हुए तेलंगाना विस चुनाव के दौरान कांग्रेस-टीडीपी ने हाथ मिलाया था और केसीआर की पार्टी को चुनौती देने की कोशिश की थी, लेकिन गठबंधन को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था.