भाभा को जुनून की हद तक बागबानी का शौक था. टीआईएफ़आर और बार्क की सुंदर हरियाली का श्रेय उन्हों को दिया जाता है.
इंदिरा चौधरी कहती हैं, "टीआईएफ़आर में एक गार्डेन है जिसका नाम है अमीबा गार्डेन. वो अमीबा की शक्ल में है. उस पूरे गार्डेन को उन्होंने अपने ऑफ़िस में देख कर तीन फ़ीट शिफ़्ट किया था क्योंकि उन्हें वह अच्छा नहीं लग रहा था. उन्हें परफ़ेक्शन चाहिए था.
"भाभा ने सभी बड़े बड़े पेड़ों को ट्रांसप्लांट किया. एक भी पेड़ को काटा नहीं. पहले पेड़ लगाए गए और फिर बिल्डिंग बनाई गई.
"मुझे ये चीज़ इसलिए याद आ रही है क्योंकि बंगलौर में मेट्रो बनाने के लिए हज़ारों पेड़ काट डाले गए. अब से साठ साल पहले भाभा ने सोचा था कि पेड़ों को काटने के बजाए ट्रांसप्लांट किया जा सकता है."
खाने के शौक़ीन भाभा
भाभा लीक से हट कर चलने में यक़ीन रखते थे. वाकपटुता में उनका कोई सानी नहीं था और न ही आडंबर में उनका यक़ीन था.
इंदिरा गांधी के वैज्ञानिक सलाहकार रहे प्रोफ़ेसर अशोक पार्थसार्थी कहते हैं, "जब वो 1950 से 1966 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष थे, तब वो भारत सरकार के सचिव भी हुआ करते थे. वो कभी भी अपने चपरासी को अपना ब्रीफ़केस उठाने नहीं देते थे. ख़ुद उसे ले कर चलते थे जो कि बाद में विक्रम साराभाई भी किया करते थे."
"वो हमेशा कहते थे कि पहले मैं वैज्ञानिक हूँ और उसके बाद परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष. एक बार वो किसी सेमिनार में भाषण दे रहे थे तो सवाल जवाब के समय एक जूनियर वैज्ञानिक ने उनसे एक मुश्किल सवाल पूछा. भाभा को ये कहने में कोई शर्म नहीं आई कि अभी इस सवाल का जवाब उनके पास नहीं है. मैं कुछ दिन सोच कर इसका जवाब दूंगा."
बहुत कम लोगों को पता है कि होमी भाभा खाने के बहुत शौक़ीन थे. इंदिरा चौधरी याद करती हैं कि परमाणु वैज्ञानिक एमएस श्रीनिवासन ने उनसे बताया कि एक बार वॉशिंगटन यात्रा के दौरान भाभा का पेट ख़राब हो गया. डॉक्टर ने उन्हे सिर्फ़ दही खाने की सलाह दी.
भाभा ने पहले पूरा ग्रेप फ़्रूट खाया, पोच्ड अंडों, कॉफ़ी और टोस्ट पर हाथ साफ़ किया और फिर जाकर दही मंगवाई और वो भी दो बार और ये तब जब उनका पेट ख़राब था.
(क्या थी होमी भाभा की कमी और किसने कहा था उन्हें संपूर्ण इंसान- पढ़िए चौथी और आख़िरी कड़ी में)
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