दिल को देखें लियोनार्दो विंची की नज़र से

फिलिप्पा रॉक्सबी स्वास्थ्य संवाददाता, बीबीसी न्यूज़ मशहूर चित्रकार लियोनार्दो दा विंची ने जब कुछ ही दिन पहले मर गए सौ साल के एक पुरुष के दिल की चीरफाड़ की तो उन्होंने संभवतः पहली बार कोरोनरी आर्टरी डीज़ीज़ का विवरण दुनिया के सामने पेश किया. आज उस घटना के क़रीब 500 सालों से ज़्यादा समय बाद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 6, 2014 12:39 PM

मशहूर चित्रकार लियोनार्दो दा विंची ने जब कुछ ही दिन पहले मर गए सौ साल के एक पुरुष के दिल की चीरफाड़ की तो उन्होंने संभवतः पहली बार कोरोनरी आर्टरी डीज़ीज़ का विवरण दुनिया के सामने पेश किया.

आज उस घटना के क़रीब 500 सालों से ज़्यादा समय बाद पश्चिमी देशों में कोरोनरी आर्टरी डीज़ीज़ से होने वाली मौतें आम बात हैं.

लियोनार्दो विंची एक पेंटर, वास्तुकार (आर्किटेक्ट) और इंजीनियर थे. वो इंसान के शरीर की संरचना को जानने को लेकर उत्सुक रहते थे.

अच्छे दिमाग़ के मालिक

कैंब्रिज के पापवर्थ अस्पताल के कार्डियोथोएरिक सर्जन (दिल और फेफड़े का सर्जन) फ़्रांसिस वेल्स ने विंडसर के रॉयल कलेक्शन में रखे लियोनार्दो विंची के संरचनात्मक चित्रों का सात साल तक अध्ययन किया है.

फ़्रांसिस वेल्स की किताब ‘दी हर्ट ऑफ़ लियोनार्दो’ में इस कलाकार के चित्रों और शरीर के अंगों पर उनकी टिप्पणियों पर विस्तृत जानकारी दी गई है.

वैसे तो लियोनार्दो को शरीर के सभी अंगों में रुचि थी लेकिन 1507 के बाद उनका झुकाव हृदय के अध्ययन की तरफ़ बढ़ गया. तब वो 50 साल के हो चुके थे.

उन्होंने हृदय के वाल्व के कामकाज और उससे होने वाले ख़ून के संचार का बहुत बारीकी से अध्ययन किया.

वे कहते हैं कि लियोनार्दो के कई निष्कर्ष, जैसे आर्टिरियल वाल्व के खुलने और बंद होने और उनसे होकर हृदय में ख़ून के जाने का विवरण आज भी सही हैं.

हृदय रोग

लियोनार्दो के बहुत से चित्र बैल और सूअर के दिल के अध्ययन पर आधारित हैं.

इंसानी अंगों की संरचना का अध्ययन उन्होंने बहुत बाद में शुरू किया. इंसानी अंगों की चीर-फाड़ वो सर्दियों में शरीर के ख़राब होने से पहले करते थे.

आज जिस तरह हृदय का विच्छेदन किया जाता, वह यह दिखाता है कि कई मायने में लियोनार्दो इसके कामकाज को लेकर सही थे.

उन्होंने पहले ही बता दिया था कि हृदय एक मांसपेशी है और यह ख़ून को गर्म नहीं करता है.

1452 में इटली में जन्मे लियोनार्दो के जीवन में उनके चित्र प्रकाशित नहीं हो पाए थे. उनकी टिप्पणियां भी 18वीं सदी के अंत तक नहीं खोजी गई थीं.

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