विलासिता भरे जीवन से मुफ़लिसी की मौत तक

परमिंदर खटकर बीबीसी रेडियो 4 एक दशक तक महाराजा दलीप सिंह अपनी शानदार स्थिति का लुत्फ़ उठाते रहे. वह बहुत विलासिता भरी ज़िंदगी जीते थे, शाही परिवार के साथ शिकार और निशानेबाज़ी करते और पूरे यूरोप में घूमा करते. व्यक्तिगत रूप से वह सबसे अच्छे अंग्रेज़ सामंत बन चुके थे लेकिन सार्वजनिक रूप से वह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 6, 2014 12:39 PM
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एक दशक तक महाराजा दलीप सिंह अपनी शानदार स्थिति का लुत्फ़ उठाते रहे. वह बहुत विलासिता भरी ज़िंदगी जीते थे, शाही परिवार के साथ शिकार और निशानेबाज़ी करते और पूरे यूरोप में घूमा करते.

व्यक्तिगत रूप से वह सबसे अच्छे अंग्रेज़ सामंत बन चुके थे लेकिन सार्वजनिक रूप से वह अब भी ख़ुद को एक भारतीय राजकुमार के रूप में पेश करते थे.

फिर, अपनी मां से अलगाव के 13 साल बाद उन दोनों को फिर से मिलाया गया.

वह अब एक कमज़ोर बूढ़ी महिला थीं और उन्हें ब्रितानी साम्राज्य के लिए ख़तरा नहीं समझा जाता था.

वह महाराजा से इंग्लैंड में मिलीं और उन्होंने अपने बेटे को उसके खोए राज्य और उसकी सिख पहचाने के बारे में याद दिलाना शुरू किया.

दो साल बाद उनकी मौत हो गई. दलीप सिंह ने बांबा मुलर से शादी कर ली, जो क़ाहिरा में पैदा हुई थीं और बेहद आस्थावान ईसाई थीं.

उनके छह बच्चे हुए और वह एल्वेडन हॉल में रहने लगे, जो ग्रामीण इलाके सफ़क में था.

फिर से सिख

लेकिन 1870 तक महाराजा आर्थिक दिक़्क़तों में घिर गए थे. ब्रितानी सरकार से मिलने वाली पेंशन पर छह बच्चों का लालन-पालन और विलासी जीवन बिताने का मतलब यह था कि वह बुरी तरह क़र्ज़ में डूबे हुए थे.

उन्होंने सरकार से भारत में मौजूद अपनी ज़मीन और जायदाद के बारे में पूछना शुरू कर दिया और दावा किया कि पंजाब पर क़ब्ज़ा कपटपूर्ण तरीके से किया गया था.

उन्होंने भारत में अपनी जायदाद के लिए हर्जाना मांगते हुए सरकार को अनगिनत चिट्ठियां लिखीं, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ.

31 मार्च, 1886 को दलीप सिंह ने अपनी ज़िंदगी का सबसे साहसिक कदम उठाया. वह अपने परिवार के साथ समुद्र मार्ग से भारत के लिए चल पड़े और ब्रितानियों को बताया कि वो फिर से सिख बन रहे हैं और अपनी ज़मीन पर दावा करेंगे.

ब्रितानी एक और बग़ावत का ख़तरा नहीं उठा सकते थे. जब महाराजा का जहाज़ भारत के रास्ते में पड़ने वाले एडेन में रुका तो महाराजा को हिरासत में लेकर नज़रबंद कर दिया गया.

उनका परिवार ब्रिटेन लौट गया. लेकिन दलीप सिंह ने सचमुच सिख धर्म ग्रहण कर लिया.

कई साल हताशा में भटकने के बाद, जिस दौरान ब्रितानी गुप्तचर सेवा उनके पीछे लगी रही, अक्तूबर 1893 में अकेलेपन और मुफ़िलिसी में उनकी मौत हो गई.

(लेकिन क्या वजह थी कि ब्रितानी सरकार उन्हें वापस इंग्लैंड लाई और दफ़न किया. जानिए इसी कहानी के तीसरे हिस्से में)

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