चुनाव में नकदी की आवाजाही रोकने को सेना की जरूरत!
चुनावों में सेना की उसी तरह ड्यूटी लगनी चाहिए जिस तरह कश्मीर को बचाने के लिए सेना लगी है सुरेंद्र किशोर वरिष्ठ पत्रकार पूर्व बिहार से एक व्यक्ति जमीन खरीदने के लिए पैसे लेकर पटना आने वाला था. अब वह चुनाव के बाद ही आ पायेगा. उसे पकड़े जाने का डर है. स्वच्छ चुनाव को […]
चुनावों में सेना की उसी तरह ड्यूटी लगनी चाहिए जिस तरह कश्मीर को बचाने के लिए सेना लगी है
सुरेंद्र किशोर
वरिष्ठ पत्रकार
पूर्व बिहार से एक व्यक्ति जमीन खरीदने के लिए पैसे लेकर पटना आने वाला था. अब वह चुनाव के बाद ही आ पायेगा. उसे पकड़े जाने का डर है. स्वच्छ चुनाव को संभव बनाने की कोशिश में लगे अफसर सड़कों पर जहां-तहां गाड़ियां रोक कर जांच कर रहे हैं. एक सामान्य व्यक्ति तो उस जांच के भय से अपने जरूरी काम के लिए भी पैसे लेकर यात्रा नहीं कर रहा है. पर, ऐसी जांचों का असर कतिपय दबंग व बाहुबली वीवीआइपी नेताओं पर बहुत कम ही पड़ रहा है. ऐसी अवहेलना की खबरें पहले भी आती रहती थीं.
कुछ साल पहले उत्तर बिहार में ऐसी ही जांच की कोशिश में लगे डीएसपी और मजिस्ट्रेट को एक बड़े नेता ने सरेआम धमकाया. अपनी गाड़ी की जांच तक नहीं होने दी. उस घटना के बाद अफसर भी सहमे रहते हैं. इस बार भी पश्चिम बिहार में एक दबंग नेता ने अपनी गाड़ियों की जांच से नाराज बड़े अफसरों को भी डांट-डपट कर रोक दिया. क्या उनकी गाड़ियों में भारी नकदी रखी होती है? इच्छुक मतदाताओं में बांटने के लिए?
ऐसे नेताओं की औकात सेना ही बता सकती है, क्योंकि कहीं-कहीं अर्धसैनिक बल भी फेल है. चुनावों में सेना की उसी तरह ड्यूटी लगनी चाहिए जिस तरह कश्मीर को बचाने के लिए सेना लगी हुई है.
लोकतंत्र को भी बचा लेना चाहिए. अन्यथा ये धन पशु व वंशवादी नेता लोकतंत्र को देर-सवेर मध्य युग में ढकेल देंगे. चुनाव आयोग के अफसर इन दिनों आचार संहिता के हनन का केस जरूर कर रहे हैं, पर अंततः सजा शायद ही किसी को होती है. कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मुख्य मंत्री को लोअर कोर्ट से सजा हुई है. पर,उसे अपवाद ही माना जायेगा.
हाल में नोट व मिठाई बांटने के आरोप में उत्तर प्रदेश के एक उम्मीदवार पर मुकदमा हुआ है. इस साल 1400 करोड़ रुपये पकड़े जा चुके हैं. यह 10 मार्च से एक अप्रैल तक का ही आंकड़ा है. ये रुपये मतदाताओं के बीच बांटे जाने थे. मध्य प्रदेश, आंध्र, कर्नाटका और तमिलनाडु में अपेक्षाकृत अधिक राशि पकड़ी गयी. साथ मेंशराब और अन्य नशीले पदार्थभी. जितने पकड़े गये, उससे कई गुना अधिक बच-बचाकर मतदाताओं के पास पहुंच गये.
नेता और असत्य
कभी-कभी कुछ नेता अपने असत्य के जरिये कुछ पत्रकारों की साख को भी नुकसान पहुंचा देते हैं. कई दशक पहले की बात है. उन दिनों लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री थे. देश के एक बड़े ‘नेता जी’ पटना आये थे.
दिल्ली के एक अखबार के पटना स्थित संवाददाता ने उनसे बातचीत की. नेता जी ने कहा कि लालू ने चंद्रशेखर के आश्रम के लिए पांच लाख पौधे भिजवाए हैं. इसी कारण चंद्रशेखर इन दिनों लालू के पक्ष में बोलते हैं. बातचीत अखबार में छपी. चंद्रशेखर उस अखबार के दिल्ली स्थित ब्यूरो प्रमुख को भोंडसी आश्रम ले गये.
उन्होंने पूरे आश्रम घुमा कर दिखाया और कहा कि खोजिए कहां हैं वे पौधे जिसकी चर्चा आपके अखबार में है? पौधे नहीं मिले. उसी नेता जी ने हाल में सार्वजनिक मंच से यह आरोप लगाया कि नरेन्द्र मोदी के पिता ने इन्हें सच बोलना नहीं सिखाया. यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री सत्यवादी हैं या नहीं, पर जो नेता जी आरोप लगा रहे हैं, उन्हें तो अपना इतिहास याद कर लेना चाहिए था.
और अंत में
इस देश के नगरों-महानगरों में प्रदूषण बढ़ा रहे वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है. इससे महानगरों में जीवन प्रत्याशा घटती जा रही है. दुनिया के कुछ महानगरों में ‘घनत्व कर’ यानी कंजेशन टैक्स लगाये गये हैं.
इस चुनाव में किसी दल के नेता ने चुनावी मंच से इस समस्या का जिक्र तक नहीं किया. याद रहे प्रदूषण की सर्वाधिक मार बच्चों पर पड़ रही है. दिल्ली के लोगों की जीवन प्रत्याशा 10 साल घट गयी है. पटना का भी कमोबेश यही हाल है.