आजकल बच्चों को उनके स्कूलों से मिलने वाले हॉलिडे होमवर्क को पूरा करना किसी मिशन से कम नहीं हैं.
छठी कक्षा में पढ़ने वाली संस्कृति से गणित के फ़ार्मूलों की डिक्शनरी बनाने को कहा गया है तो दसवीं की छात्रा नंदनी को 20 पेज की सांइस मैग़जीन डिज़ाइन करनी है.
नए तरीकों के इन होमवर्क से माँ-बाप भी परेशान हैं.
रश्मि की बेटी आठवीं कक्षा में पढ़ती है. उसे थर्माकोल का एफ़िल टॉवर बनाने को कहा गया है.
वे कहती हैं, “बच्चों को ऐसे प्रोजेक्ट दे देते हैं कि मां-बाप को पसीना आ जाए. सोचिए, एफ़िल टॉवर बच्चा कैसे बनाएगा और बना भी लेगा तो ये किस काम आएगा?”
क्या है वजह ?
दिल्ली पुलिस पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्या तरुणिमा रॉय कहती हैं, "ये ख़ासतौर से पब्लिक स्कूलों में हो रहा है. बच्चों को ग्रीष्म अवकाश में ऐसे मॉडल दिए जाते हैं जिन्हें बाद में स्कूल अपने शो केस की शोभा बना सकें."
वो कहती हैं, "हमारी एक ‘टीचर ने बच्चों को कंप्यूटर का वर्किंग मॉडल बना लाने को कहा था. मैंने इसे तुरंत ख़ारिज किया."
रश्मि को एफ़िल टावर का मॉडल बनवाने के लिए काफ़ी पैसे देने पड़े.
लेकिन फिर अभिभावक शिकायत क्यों नहीं करते?
रश्मि कहती हैं, "शिक़ायत करना बेकार है. इससे स्कूल में बच्चे का ग्रेड ख़राब कर दिया जाता है."
ऐमिटी स्कूल की प्रधानाचार्या सुनीला आठले कहती हैं, "इसका बच्चों के ग्रेड से कोई लेना-देना नहीं है, होमवर्क पर बच्चों को अंक नहीं दिए जाते."
होमवर्क का कारोबार
लेकिन उनका कहना है कि इस तरह के होमवर्क से बच्चों को प्रोत्साहन मिलता है और उनकी रचनात्मकता बढ़ती है.
कुछ अभिभावकों का कहना है कि बच्चों का होमवर्क कराना एक कारोबार बन चुका है.
बीबीसी हिन्दी ने फ़ोन से ऐसी ही एक कंपनी से संपर्क किया. ‘हैसल फ़्री’ कंपनी चलाने वाली प्रीति ने बताया, “आपको हर विषय को 500-1000 रूपए देने होंगे. ईमेल के ज़रिए आपको पूरा काम मिल जाएगा. आज बता दें वर्ना बाद में पैसे बढ़ जाएंगे.”
थोड़ा मोलतोल करने पर प्रीति ने दूसरे आकर्षक ऑफ़र और स्कीमें भी पेश कीं.
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