16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

क्या पटरी पर आयेगी रेल!

अरविंद कुमार सिंह पूर्व सलाहकार भारतीय रेल भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रेल के समक्ष इस समय कई तरह की समस्याएं हैं. बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ करने की चुनौती सबसे बड़ी है. तमाम दावों के बावजूद वर्षो से आधुनिकीकरण का काम लंबित है. आबादी में वृद्धि की तुलना में रेल नेटवर्क में विस्तार न होने के […]

अरविंद कुमार सिंह

पूर्व सलाहकार

भारतीय रेल

भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रेल के समक्ष इस समय कई तरह की समस्याएं हैं. बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ करने की चुनौती सबसे बड़ी है. तमाम दावों के बावजूद वर्षो से आधुनिकीकरण का काम लंबित है. आबादी में वृद्धि की तुलना में रेल नेटवर्क में विस्तार न होने के चलते यात्राियों और वस्तुओं का बोझ ढोने में रेल हांफ रही है. मोदी सरकार के पहले रेल बजट से पूर्व भारतीय रेल से जुड़े विविध पहलुओं, चुनौतियों और आगे की राह पर केंद्रित आज का विशेष..

एनडीए सरकार का पहला रेल बजट पेश करने जा रहे रेल मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा के सामने कई तरह की गंभीर चुनौतियां हैं. एक ओर जहां उनको संतुलित और विकासोन्मुखी रेल बजट पेश करना है, वहीं महाराष्ट्र सहित कुछ राज्यों में होने जा रहे चुनावों को ध्यान में रखते हुए कुछ लोक -लुभावन घोषणाएं भी करनी हैं, जिसे वहन करने की हालत में भारतीय रेल नहीं है. किराया वे पहले ही बढ़ा चुके हैं, लिहाजा उसे बढ़ाने की गुंजाइश नहीं है. किराया बढ़ाने को लेकर कई हलकों से विरोध हो रहा है और सदन में भी विपक्ष इस मसले पर सरकार को राहत देने के मूड में नहीं है. लिहाजा आम मुसाफिरों के लिए कुछ खास देने की विवशता भी रेल मंत्री के सामने है.

चुनावी वायदे भारी भरकम हैं और उनको पूरा करने के लिए जिन संसाधनों की दरकार है, रेलवे की वैसी माली हालत नहीं है. बीते दो दशकों में रेलवे भारी उतार-चढ़ाव से गुजरी है. नीतीश कुमार के रेल मंत्री काल में रेलवे की सुरक्षा व संरक्षा के लिए जो ठोस पहल हुई थी, उसका फायदा रेलवे को मिला. लालू प्रसाद के रेल मंत्री काल में रेलवे कई प्रयोगों से गुजरी और काफी संसाधन आये. इनकी खींची लकीर से बड़ी लकीर खींचना आसान नहीं है. भारतीय रेल की मौजूदा दशा को बेहतर बनाने के लिए कई अहम कदम उठाने की जरूरत है.

चीन से पिछड़ गयी भारतीय रेल

एक दौर था जब चीनी रेलवे से भारतीय रेल बहुत आगे थी. पर आज क्षमता में यह बहुत पीछे हो गयी है. तकरीबन 65 हजार किलोमीटर लंबे नेटवर्क वाली भारतीय रेल आजादी के बाद महज 11 हजार किमी लंबी रेल लाइनें बिछा पायी है. बढ़ते यातायात के लिहाज से हर दशक में रेलवे को दोगुनी क्षमता विस्तार की जरूरत थी, लेकिन इस तथ्य की लगातार अनदेखी करने से रेलवे पिछड़ती चली गयी. खास तौर पर आबादी से दबे यूपी और बिहार जैसे प्रांतों में बहुत कुछ करने की जरूरत है.

Undefined
क्या पटरी पर आयेगी रेल! 2

भारतीय रेल के सामने इस समय कई तरह के संकट खड़े हैं. संसाधनों की तंगी के नाते तमाम परियोजनाएं आधी-अधूरी पड़ी हैं, जबकि बजटरी सपोर्ट घटता जा रहा है. दूसरे रास्तों से धन एकत्र करने की तमाम योजनाएं जमीन पर नहीं उतर पा रही हैं. जबकि रेलवे को आज सुरक्षा, संरक्षा व आधुनिकीकरण के लिए भारी रकम चाहिए. रेलवे की 347 परियोजनाएं लंबित पड़ी हैं, जिनको पूरा करने के लिए एक लाख 78 हजार करोड़ रुपये से अधिक रकम चाहिए. रेल बजट में शामिल कई परियोजनाएं दो दशक से एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकी हैं. 12वीं योजना में संसाधनों की तंगी के नाते रेलवे को प्राथमिकताएं बदलनी पड़ी. उसकी बजटरी सहायता 40 फीसदी घटा देने से 12वीं योजना में केवल 1,392 किमी ही नयी लाइन बनाने की हालत होगी. इतनी लाइन बनाने से तेज विकास की परिकल्पना कठिन है.

खान-पान सेवाओं और साफ-सफाई में तमाम सुधारों के बावजूद हालत खराब है. पहले जब यह काम रेल कर्मचारी करते थे, तो हालत आज से बेहतर थी, क्योंकि उनकी जवाबदेही तय थी. अब शिकायतों का ढेर लगता जा रहा है, क्योंकि खान-पान यदि खराब होगी तो रेलवे की छवि पर ही असर पड़ेगा. निजी कंपनियां जो सफाई और खानपान में लगी हैं, वहां पर कर्मचारियों का भारी शोषण है. वे 14 से 16 घंटे तक काम करते हैं. ऐसे में तमाम चूक स्वाभाविक है. रेलवे में आज दो लाख 85 हजार पद खाली पड़े हैं. नियुक्तियां भरने की प्रक्रिया बेहद धीमी है. सालाना 50 हजार लोग रेलवे से रिटायर होते हैं और उनमें अधिकतर का काम किसी दूसरे सहयोगी को सौंप दिया जाता है, तो दबाव आना ही है. ऐसे में भर्ती प्रणाली में व्यापक बदलाव की जरूरत के साथ तीन साल पहले यानी एडवांस प्लानिंग जरूरी है, ताकि कर्मचारी कम न हों.

संरक्षा के लिहाज से रेलवे को तमाम परिसंपत्तियों को बदलने के साथ यात्राी और माल यातायात के बेहतर संचालन के लिए भारी रकम की दरकार है. 17 क्षेत्रीय और 68 मंडलों में विभाजित भारतीय रेल रोजाना औसतन 19,710 गाड़ियां चलाती है, जिसमें 12,335 यात्राी गाड़ियां हैं. यात्राी यातायात का सालाना घाटा अब 26,000 करोड़ रुपये हो गया है. वहीं 2008-09 में रेलवे का संचालन व्यय 54 हजार करोड़ रुपये था, जो अब 1.10 लाख करोड़ रुपये हो गया है.

कारगर नहीं रहा पीपीपी

रेलवे में सार्वजनिक निजी भागीदारी यानी पीपीपी का काफी शोर रहा है, लेकिन यह कारगर नहीं हुआ. 11वीं योजना में इससे रेलवे को योजना परिव्यय का चार फीसदी भी हासिल नहीं हुआ. जबकि बंदरगाहों में यह 80 फीसदी, हवाई अड्डों के मामलों में 64 फीसदी और सड़क क्षेत्र में भी 16 फीसदी तक रहा. इस विफलता के बाद भी 12वीं योजना में योजना आयोग ने पीपीपी के जरिये एक लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है और कई क्षेत्र पीपीपी के लिए खोल दिये हैं- जैसे चर्चगेट-विरार-मुंबई उपनगरीय रेल खंड, मुंबई-अहमदाबाद हाइस्पीड कॉरिडोर, स्टेशनों का पुनर्विकास, लॉजिस्टिक पार्क और निजी माल टर्मिनल और इंजन व रेल कोच कारखाने.

बजट अनुमान 2014-15 में 1,101 मिलियन टन माल लदान के साथ सकल यातायात प्राप्तियां 1,60,775 करोड़ होने का अनुमान है. जबकि संचालन व्यय करीब 1.10 लाख करोड़ होगा, जो 13,589 करोड़ रुपये ज्यादा है. वहीं पेंशन भुगतान में रेलवे को 27,000 करोड़ खर्च करने होंगे. यानी चुनौतियां ऐसी हैं कि सावधानी न बरती गयी, तो रेलवे कभी भी डांवाडोल हो सकती है.

आधुनिकीकरण के लिए रेलवे को पांच साल में 5.60 लाख करोड़ व संरक्षा से जुड़े कामों पर एक लाख करोड़ रुपये खर्च करने की जरूरत है. सवाल यह है कि इतना पैसा कहां से आयेगा. रेलवे को बहुत कुशलता से प्राथमिकता के आधार पर बहुत सी चुनौतियों से निपटने की जरूरत है. मौजूदा दशा के बीच रेल मंत्री से बहुत उम्मीदें नहीं की जा सकती है. वे जनाकांक्षाओं के अनुरूप रेलवे का बेहतर प्रबंधन कर लें, यही बहुत होगा.

हाइ स्पीड ट्रेन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकताओं में तेज गति की रेलगाड़ियां चलाना प्रमुख है. बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री और लोकसभा चुनाव के दौरान वे जापान, चीन आदि 15 देशों में चल रही बुलेट ट्रेनों की तर्ज पर देश में, विशेषरूप से पश्चिम रेलवे के अधिक कमाऊ (मुंबई-अहमदाबाद, मुंबई-पुणो आदि) रेल मार्गो पर ऐसी ट्रेनें चलाने की बात करते रहे हैं. जानकारों की राय में, मोदी सरकार के पहले रेल बजट में तेज गति की रेलगाड़ियों के लिए विशेष प्रावधान हो सकते हैं. कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:

– वर्ष 2012 के जुलाई महीने में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम रेल विकास निगम लिमिटेड के सहयोगी उपक्रम के रूप में भारतीय हाइ स्पीड रेल निगम लिमिटेड की स्थापना.

– हाइ स्पीड रेल निगम के विजन 2020 के अनुसार, दो स्तरों पर काम चल रहा है. पहला, ट्रंक मार्गो पर परंपरागत तकनीक के उपयोग से 160 से 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से यात्राी गाड़ियों को चलाना. दूसरा, प्रमुख शहरों को जोड़नेवाले चुनिंदा रेलमार्गो पर निजी क्षेत्र और राज्य सरकारों के सहयोग से विशिष्ट परियोजनाओं का निर्धारण, जिनमें रेलगाड़ियों की गति 350 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है.

– वर्ष 2020 तक तकरीबन दो हजार किलोमीटर लंबे कम से कम चार रेलवे कॉरिडोर का विकास और ऐसे आठ अन्य कॉरिडोरों पर काम शुरू कर देना.

– फिलहाल दिल्ली-चंडीगढ़-अमृतसर के बीच और मुंबई-अहमदाबाद के बीच कॉरिडोर विकास पर प्रारंभिक काम शुरू.

– इसी महीने की तीन तारीख को दिल्ली और आगरा के बीच तेज गति (सेमी हाइ स्पीड) ट्रेन का सफल प्रायोगिक परीक्षण हुआ और ट्रेन ने 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ने में कामयाबी पायी. दिल्ली से आगरा के बीच 200 किलोमीटर की दूरी को इस ट्रेन ने 100 मिनट में तय किया.

– देश के कई हिस्सों में इसी तरह की ट्रेन सेवा के प्रस्ताव हैं और उनका प्रारंभिक अध्ययन किया जा रहा है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें