पेरिस : संयुक्त राष्ट्र ने सोमवार को जारी एक आकलन रिपोर्ट में कहा कि मानवता उसी प्राकृतिक दुनिया को तेजी से नष्ट कर रही है, जिस पर उसकी समृद्धि और अंतत: उसका अस्तित्व टिका है. 450 विशेषज्ञों द्वारा तैयार ‘समरी फॉर पॉलिसीमेकर’ रिपोर्ट को 132 देशों की एक बैठक में मान्यता दी गई.
बैठक की अध्यक्षता करने वाले रॉबर्ट वाटसन ने कहा कि वनों, महासागरों, भूमि और वायु के दशकों से हो रहे दोहन और उन्हें जहरीला बनाए जाने के कारण हुए बदलावों ने दुनिया को खतरे में डाल दिया है. विशेषज्ञों के अनुसार जानवरों एवं पौधों की 10 लाख प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं. इनमें से कई प्रजातियों पर कुछ दशकों में ही विलुप्त हो जाने का खतरा मंडरा रहा है.
आकलन में बताया गया है कि ये प्रजातियां पिछले एक करोड़ वर्ष की तुलना में हजारों गुणा तेजी से विलुप्त हो रही हैं. जिस चिंताजनक तेजी से ये प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं, उसे देखते हुए ऐसी आशंका है कि छह करोड़ 60 लाख वर्ष पहले डायनोसोर के विलुप्त होने के बाद से पृथ्वी पर पहली बार इतनी बड़ी संख्या में प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है.
जर्मनी में ‘हेल्महोल्त्ज सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल रिसर्च’ के प्रोफेसर और संयुक्त राष्ट्र के जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतरसरकारी विज्ञान-नीति मंच (आईपीबीईएस) के सह अध्यक्ष जोसेफ सेटल ने कहा कि लघुकाल में मनुष्यों पर खतरा नहीं है। उन्होंने कहा, दीर्घकाल में, यह कहना मुश्किल है.
सेटल ने कहा, यदि मनुष्य विलुप्त होते हैं, तो प्रकृति अपना रास्ता खोज लेगी, वह हमेशा ऐसा कर लेती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रकृति को बचाने के लिए बड़े बदलावों की आवश्यकता है. हमें लगभर हर चीज के उत्पादन एवं पैदावार और उसके उपभोग के तरीके में आमूल चूल बदलाव करना होगा.
वाटसन ने कहा, हम विश्वभर में हमारी अर्थव्यवस्थाओं, आजीविका, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं जीवन की गुणवत्ता के मूल को ही नष्ट कर रहे हैं. आकलन में बताया गया है कि किस प्रकार हमारी प्रजातियों की बढ़ती पहुंच और भूख ने सभ्यता को बनाए रखने वाले संसाधनों के प्राकृतिक नवीनीकरण को संकट में डाल दिया है. संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण विज्ञान पैनल ने अक्टूबर की अपनी रिपोर्ट में ग्लोबल वार्मिंग के सबंध में इसी प्रकार की गंभीर तस्वीर पेश की थी.