मोदी के बजट पर मनमोहन की छाप

राजेश रपरिया वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए मोदी सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली के बजट पर मनमोहन सिंह सरकार के दर्शन और नीतियों की स्पष्ट छाप दिखाई देती है. यूपीए सरकार की ही तरह मोदी सरकार ने भी यह बजट डॉलर के लिए बनाया है यानी डॉलर की आमद कैसे बढ़ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 11, 2014 11:04 AM

मोदी सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली के बजट पर मनमोहन सिंह सरकार के दर्शन और नीतियों की स्पष्ट छाप दिखाई देती है.

यूपीए सरकार की ही तरह मोदी सरकार ने भी यह बजट डॉलर के लिए बनाया है यानी डॉलर की आमद कैसे बढ़ सकती है.

इसका मतलब ये कि यह बजट देश की आवश्यकताओं के लिए नहीं बल्कि विदेशी एजेंसियों की रेटिंग और तुष्टीकरण के लिए है.

देखिए प्रमुख मुद्दों पर ये बजट कैसे यूपीए से प्रभावित है.

विदेशी निवेश

बीमा क्षेत्र को जो एफ़डीआई के लिए खोला गया है ये कांग्रेस की शुरुआत थी जिसे मोदी सरकार ने पूरा किया है.

रक्षा क्षेत्र में जो विदेशी निवेश का रास्ता खोला गया है वह भी एक पुराना कदम है. 26 फ़ीसदी का विदेशी निवेश पहले ही एफ़आईपीबी के ज़रिए हो सकता था.

राजकोषीय घाटा

राजकोषीय घाटे का जो लक्ष्य पी चिदंबरम ने रखा था उसे अरुण जेटली ने भी अपने बजट में जगह दी है. ये लक्ष्य जीडीपी के 4.1 फ़ीसदी पर रखा गया है जो कि एक कठिन चुनौती है. इसे पूरा करने पर संदेह न सिर्फ़ देश के बल्कि विदेशी अर्थशास्त्रियों ने भी जताया है.

यूपीए जैसी योजनाएं

कई ऐसी योजनाएं हैं जिन पर यूपीए सरकार की छाप स्पष्ट दिखती है, हालांकि नाम बदल दिए गए हैं.

जैसे प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना. इसे अटल बिहारी वाजपेयी ने शुरू किया था लेकिन मनमोहन सिंह के कार्यकाल में इस योजना के तहत काफ़ी आवंटन किया गया और ग्रामीण सड़कें बनाई गई.

इसे इस सरकार ने भी जारी रखा है. भारत निर्माण के जो लक्ष्य थे उन्हें भी लगभग जारी रखा गया है हालांकि इन्हें भारत निर्माण का नाम नहीं दिया है.

सब्सिडी

दूसरी ओर डीज़ल पर सब्सिडी की यूपीए की नीति को ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फ़ॉलो किया है.

डीज़ल पर सब्सिडी वैसे करीब-करीब ख़त्म हो चुकी है, डेढ़-दो रुपए का ही अंतर बाकी बचा है लेकिन इसे ख़त्म करने की तैयारी के संकेत अरुण जेटली ने साफ़ दिए हैं.

महंगाई पर यूपीए जैसे तर्क

महंगाई के लिए भी जो तर्क दिए जा रहे हैं वो यूपीए से मिलते-जुलते हैं.

यूपीए सरकार महंगाई के लिए विदेशी कारकों को ज़िम्मेदार मानती थी अरुण जेटली का भी यही तर्क है.

महंगाई कम करने की ज़िम्मेदारी राज्यों पर छोड़ दी गई है जैसा चिदंबरम लगातार कहते थे.

इसके अलावा जीएसटी का मसला यूपीए ने उठाया था लेकिन भाजपा के विरोध के कारण लागू नहीं हो पाया. जेटली ने आश्वस्त किया है कि शायद दिसंबर तक सहमति बन जाएगी और टैक्स लागू हो जाएगा.

कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि ये बजट सिर्फ़ मोदी की संतुष्टि के लिए बना है. इससे न देश संतुष्ट हुआ है और न बाज़ार की उम्मीदें पूरी हुई हैं.

आम आदमी की जो उम्मीदें थीं कि महंगाई से राहत मिलेगी और आयकर में ज़्यादा छूट मिलेगी उसकी भी भरपाई इस बजट में नहीं हुई.

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