आगरा विश्वविद्यालय में खो गई वाजपेयी की डिग्री?
रोहित घोष बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किस साल एमए किया, यह अब एक पहेली बन गया है. यह बात शायद अब सिर्फ़ वाजपेयी ही जानते हैं क्योंकि आगरा विश्वविद्यालय, जहां से उन्होंने एमए की डिग्री हासिल की, उसे भी यह पता नहीं है. पूर्व प्रधानमंत्री के […]
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किस साल एमए किया, यह अब एक पहेली बन गया है.
यह बात शायद अब सिर्फ़ वाजपेयी ही जानते हैं क्योंकि आगरा विश्वविद्यालय, जहां से उन्होंने एमए की डिग्री हासिल की, उसे भी यह पता नहीं है.
पूर्व प्रधानमंत्री के शैक्षणिक प्रमाणपत्र और अंक तालिकाएं आगरा विश्वविद्यालय ने शायद खो दिए हैं क्योंकि मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने नौ महीने पहले जब वाजपेयी पर एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बनाने की सोची, तबसे उन्हें ढूंढा जा रहा है.
आगरा में रहने वाली वाजपेयी की बहन की पुत्रवधु निर्मला दीक्षित ने बीबीसी को बताया, "क़रीब नौ महीने पहले निर्मला सीतारमण ने अटल बिहारी वाजपेयी पर एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बनाने का काम शुरू किया."
"उन्होंने उन सब जगहों पर जाना शुरू किया, जहां वाजपेयी ने अपना समय बिताया है. वह उन लोगों से मिलीं, जो अटल बिहारी वाजपेयी के क़रीब हैं."
‘शायद कहीं दब गई’
उनके अनुसार वाजपेयी ने एमए की पढ़ाई के लिए 1940 के दशक में कानपुर के डीएवी कॉलेज, जो उन दिनों आगरा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था, में दाखिला लिया था.
आगरा विश्विद्यालय का नाम अब डॉ बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय हो गया है.
खुद आगरा विश्वविद्यालय में कार्यरत दीक्षित ने कहा, "वाजपेयी जी ने किस साल, 1946 में या 1947 में एमए पास किया, यह पता करने के लिए निर्मला सीतारमण ने डॉ बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय से वाजपेयी के प्रमाणपत्र और अंक तालिकाओं की प्रतियां मांगी."
"लेकिन विश्वविद्यालय तुरंत प्रतियां उपलब्ध नहीं करा पाया."
डॉ बीआर अंबेडकर यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार डॉ बीके पाण्डेय ने कहा, "ऐसा नहीं है कि हमने अटल बिहारी वाजपेयी के डिग्री प्रमाणपत्र और अंक तालिकाओं की प्रतियां खो दी हैं."
"वह प्रतियां शायद कहीं नीचे दब गई होंगी या फिर कहीं संभालकर रख दी गई होंगी. उन्हें ढूंढने का काम चल रहा है और हमें उम्मीद है कि वे मिल जाएंगी."
उन्होंने कहा कि वाजपेयी के शैक्षणिक प्रमाणपत्रों को ढूंढने के लिए विश्वविद्यालय में कार्यरत रहे पुराने लोगों को लगाया गया है.
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